जैन धर्म एक स्वतंत्र व भारत का प्रचीनतम धर्म है। लेकिन कुछ लोगों का मानना है, कि यह हिन्दू धर्म का ही हिस्सा है और भगवान महावीर द्वारा इसकी स्थापना की गई । मगर यह बात पूर्णत: गलत है, महावीर स्वामी ने तो जैन धर्म का आधुनिक समय में प्रवर्तन किया था न की जैन धर्म की स्थापना । महावीर स्वामी जी जैन धर्म के चौबासवें तीर्थंकर थे और उनसे पहले 23 तीर्थंकर हो चुके थे, जिनके नाम क्रमश: इस प्रकार है- श्री ऋषभदेव जी, श्री अजितनाथ जी, श्री संभवनाथ, श्री अभिनंदननाथ जी, श्री सुमतिनाथ जी, श्री पद्मप्रभु जी, श्री सुपार्श्वनाथ जी, श्री चंद्रप्रभु जी, श्री पुष्पदंत जी, श्री शीतलनाथ जी, श्री श्रेयांशनाथ जी, श्री वासुपूज्य जी, श्री विमलनाथ जी, श्री अनंतनाथ जी, श्री धर्मनाथ जी, श्री शांतिनाथ जी, श्री कुंथूनाथ जी, श्री अरहनाथ जी, श्री मल्लिनाथ जी, श्री मुनिसुव्रतनाथ जी, श्री नमीनाथ जी, श्री नेमिनाथ जी, श्री पार्श्वनाथ जी । इन सभी तीर्थंकरों ने समय-समय पर अवतरित होकर धर्म तीर्थ का प्रवर्तन किया।
3000-3500 ईसा पूर्व भी जैन धर्म के होने के ऐतिहासिक प्रमाण मिले है। सिंधु घाटी की सभ्यता की खोज ने जैन धर्म की प्राचीनता पर नया प्रकाश डाला है। यहॉ से मिले प्रमाण यह सुनिश्चित करते है, कि सिंधु घाटी के लोगों की जैन धर्म में आस्था थी। मोहनजोदडो एवं हडप्पा की खुदाई में मिली मोहरों पर नग्न मानव आकृतियां पाई गई है, तो जैन तीर्थंकर की मानी जाती है। साक्ष्य के रूप में एक अभिलेख भी मिला है, जिसमें सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ जी का वर्णन किया हुआ है। कायोत्सर्ग मुद्रा में योगियों की मूर्तियां का मिलना उस समय जैन धर्म की मौजूदगी को और अधिक प्रमाणित करता है। मोहनजोदडो से पायी गई मोहरों पर जो विशिष्ट छाप है, वो मथुरा की प्रचीन जैन कला से काफी मेल खाती है। प्राचीनतम भारतीय इतिहास में जैन परम्परा की इस मौजूदगी को कई इतिहासकारों द्वारा स्वीकारा गया है। यह इस बात को और सुदृढ़ करता है कि जैन धर्म का अस्तित्व आर्य काल से पहले का है।
वैदिक काल में भी जैन धर्म के स्पष्ट साक्ष्य मिलते है। ऋग्वेद में प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी से लेकर 22वें तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमि जी तक का उल्लेख मौजूद है। यजुर्वेद में भी तीन तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी, श्री अजितनाथ जी एवं श्री अरिष्टनेमि का वर्णन मिलता है। इसके अलावा अथर्वेद में व्रात्यों के संप्रदाय का विवरण मिलता जो हिन्दू परम्परा के न होकर जैन या श्रमण संस्कृति के है। यह भी माना गया है, कि जिन महाव्रात्य के बारे में अथर्वेद में बताया है, वो प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी ही है।
बोद्ध साहित्य में भी जैन धर्म को एक अति प्राचीन धर्म के रूप में मान्यता दी गई है और जैन तीर्थंकरों का उल्लेख किया गया है। बोद्ध किताब, मनोरथपुरानी में श्री पार्श्वनाथ जी के कई पुरूष व महिला अनुयायियों के नाम उल्लेखित है, जिनमें गौतम बुद्ध के करीबी रिश्तेदार वप्पा का नाम भी है। साहित्य में यह भी उल्लेख किया गया है, कि बोद्ध धर्म की स्थापना से पहले गौतम बुद्ध जैनचर्या के अनुसार ही ध्यान व तपस्या किया करते थे।
इन सब साक्ष्यों से यह प्रमाणित होता है, कि जैन धर्म का अस्तित्व बहुत पुराना है और महावीर स्वामी जी ने वर्तमान समय में इसका व्यापक प्रचार-प्रसार किया, न कि जैन धर्म की स्थापना ।
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