अनुष्का शर्मा ने अपनी शादी के रिस्पेशन में जो लाल रंग की बनारसी साड़ी पहनी थी, वो तो आपको याद ही होगी। सव्यसाची के लेबल में बनी बनारसी साड़ी ने विराट कोहली का ही नहीं हर जवान दिल की धड़कन को बड़ा दिया था। आज फैशन जगत में बनारसी साड़ी भारतीय सभ्यता की पहचान बनी हुई है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारी अपनी बनारसी साड़ी का मूल जन्म भारत में नहीं हुआ था।
बनारसी साड़ी का जन्म कुछ लोग मुगल शासकों के साथ मानते हैं जबकि सत्यता थोड़ी इससे आगे हैं । ऋग्वेद में भी सोने-चाँदी के तारों से बुने कपड़ों का ज़िक्र आता है जो बनारसी कपड़े की पहचान है। उस समय इस कपड़े से भगवान की पोशाकें तैयार की जाती थीं।
बौद्ध धर्म और महाभारत कालीन साहित्य में भी इस प्रकार के वस्त्रों का ज़िक्र है जिन्हें कीमती तारों से तैयार किया जाता है। इस प्रकार यह माना जा सकता है कि बनारसी कपड़े की गंगा का उद्गम तो भारत ही है। यह अलग बात है कि राजमहल से बाहर निकाल कर आम जनता तक बनारसी कपड़े को लेकर जाने का श्रेय मुगल बादशाह अकबर को जाता है।
अकबर, जिसे जीवन के हर पहलू का आनंद लेने की कला आती थी, ने तलवार से लेकर कालीन तक की बुनावट में इन्हीं सोने-तारों का प्रयोग करना शुरू किया था। अकबर ने इन बुनकरों को इनके प्राचीन स्थल काशी नगरी जिसे आज वाराणसी या बनारस कहा जाता है, में स्थापित करना शुरू कर दिया। इसके साथ ही अकबर ने इस कला में ईरान, इराक, बुखारा आदि के कारीगरों को भी शामिल करके बनारसी कपड़े में विभिन्नता ला दी थी। इस प्रकार कहा जा सकता है कि बनारसी साड़ी का जन्म बेशक गंगा किनारे वाराणसी में जाता है लेकिन इसमें विदेशी कारीगरों का भी बराबर का योगदान रहा है।
बनारसी साड़ी की पहचान इसके धागों के साथ बुने गए तरह-तरह के डिजाइन हैं। यह डिजाइन बेल-बूटी से शुरू हुआ था जिसमें अकबर के लाये हुए कारीगरों ने विभिन्नता उत्पन्न कर दी थी। इसके बाद पशु-पक्षी भी डिजाइन का अंग बन गए। लेकिन प्र्मुखता बूटी को ही दी गई। रेशम के तारों के साथ सोने-चाँदी के तारों को मिलाकर ताने-बाने में बनारसी साड़ी की बुनावट को नया रंग दिया गया। प्रसिद्ध कवि कबीर जी ने तानों-बानों में कपड़ा बुनते हुए जीवन के रंगो को बताने वाले दोहों की रचना की थी। रेशम के कपड़ों के साथ ही कुछ समय बाद मुस्लिम बुनकरों ने डाबी और जेकार्ड का प्रयोग करना शुरू कर दिया था। इस प्रकार बनारसी साड़ी को बुनने वाले गुजराती, राजस्थानी और मारवाड़ी बुनकरों के साथ मुस्लिम बुनकरों ने अपने हुनर भी दिखाये हैं।
कपड़े की दुकान में रखी बनारसी साड़ी को इसके अलग तरह से बनाए डिजाइन से होती है। किसी भी बनारसी साड़ी में जो डिजाइन दिखाई देते हैं, वो हैं:
बूटी: इसे मूल रूप से बनारसी साड़ी की पहचान माना जाता है। छोटी-छोटी आकृति में बनी बूटियों कपड़े की ज़मीन तैयार करती हैं। यह एक रंग से लेकर पाँच रंग जिसे पंचरंगा कहा जाता है, तक के रूप में तैयार होती है।
बूटा: बूटी के डिजाइन को थोड़े बड़े आकार में बूटा कहा जाता है। फूल-पत्तों के आकार से बने बूटे जब साड़ी के किनारे पर उकेरे जाते हैं तो इसे ‘कोनिया’ कहा जाता है।
बेल: धारीदार फूल और ज्यामितीय आकृति से बने डिजाइन को बेल कहा जाता है। इसके अलावा पंक्तिबद्ध बूटी या बूटे को भी बेल कहा जाता है।
जाल: ताने-बाने से बनी आधारभूत डिजाइन को जाल कहा जाता है। इस जाल के अंदर विभिन्न प्रकार के डिजाइन तैयार किए जाते हैं।
झालर: साड़ी के बॉर्डर को सजाने के लिए जिस डिजाइन को तैयार किया जाता है उसे झालर कहा जाता है।
ऑनलाइन बाज़ार में बनारसी साड़ी खरीदना अब आपकी उँगलियों का खेल है। अमेज़न पर मिलने वाली बनारसी साड़ियों की कुछ बानगी आपके लिए यहाँ दिखा रहे हैं:
भारतीय दुल्हन लाल रंग की बनारसी साड़ी में सजकर शोभा पाती है। अमेज़न पर यह साड़ी आपको यहाँ से मिल सकती है:
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बनारसी साड़ी में ज़री का काम इसकी पहचान है और जब यह काम मोटिफ डिजाइन में किया जाता है तब साड़ी की रौनक देखते ही बनती है:
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शिफॉन में बनी यह डिजिटल डिजाइन वाली बनारसी साड़ी शादी हो या पार्टी, हर जगह अपना रंग जमा सकती है:
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क्रेप में बंधेज का डिजाइन भारत की गंगा-जामुनी संस्कृति को दिखाने में सक्षम है;
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भारत के मौसम में कॉटन की साड़ी अपना अलग ही महत्व रखती है। कॉटन जेकोर्ड साड़ी किसी भी गर्मी की शाम को होने वाले फंक्शन की जान बन सकती है:
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बनारसी साड़ी में जाल का काम हर मौके पर पहने जाने वाली साड़ी का रूप होता है:
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बनारसी साड़ी को हमेशा नया बनाए रखने के लिए आप निम्न उपाय कर सकतीं हैं:
1. बनारसी साड़ी को हमेशा कॉटन या मलमल के कपड़े में लपेट कर इस तरह रखें कि उसमें हवा का गुज़र बना रहे।
2. साड़ी कि ज़री को नमी और परफ्यूम कि खुशबू से हमेशा बचा कर रखें। नहीं तो इससे ज़री के काला होने का डर रहता है।
3. साड़ी के फ़ोल्ड या तह बदलते रहें, नहीं तो साड़ी के काटने का डर होता है।
4. बनारसी साड़ी के संग नेप्थ्लिन बोल्स को कभी भी सीधे नहीं रखें , हमेशा कपड़े कि पोटली बना कर ही रखें।
5. भारी-बनारसी साड़ी को कभी भी घर में साफ करने कि कोशिश न करें।
इन उपायों को अपना कर आप अपनी भारी बनारसी साड़ियों को सहेज कर रख सकतीं हैं और समय आने पर अगली पीढ़ी को विरासत के रूप में भी सौंपी जा सकती है।
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