भारत में हर प्रान्त की अपनी अलग परंपरा है . कहीं कोई परंपरा निभाई जाती है, तो कहीं कुछ और . इन सभी प्रांतो को जोड़े हुए अपना भारत एक राष्ट्र बना है. एक ऐसा देश जहाँ हर समुदाय के लोग अपनी मान्यताओं के साथ सद्धभावना से रह रहे है.
हमारे देश में इतने पर्व त्यौहार हैं, कि विदेशी इसे फेस्टिवल कंट्री भी कहते हैं.
ऐसा ही एक त्यौहार है बोल चौथ या जिसे बहुला चौथ भी कहते है.
जिस प्रकार तमिलनाडु में पोंगल के समय किसान गौमाता को पूजते हैं,ठीक उसी तरह गुजरात के किसान लोग बोल चौथ पर्व को मनाते है. ये पर्व श्रवण महीने में नागपंचमी से ठीक एक दिन पूर्व मनाया जाता है.
इस दिन को लोग अपनी गायों को आभार व्यक्त करते है और उनकी पूजा करते है.महिलाएँ इस दिन व्रत रखती हैं, ताकि उनके घर में सुख शांति समृद्धि बनी रहे . बहुला चौथ के दिन लोग सुबह सुबह उठकर अपने गायों को नहलाते हैं, गौशाला को साफ़ करते है. वो ये सुनिश्चित करते हैं,कि इस दिन उनके पशु साफ़ सुथरे रहें.
चावल से बने पकवान उन्हें भोग लगाए जाते हैं और उनके स्वस्थ की मंगल कामना की जाती है .
मान्यता है, की बहुला नामक एक गाय थी, जो एक दिन अपने बछड़े को दूध पिलाने के लिए अपने घर वापस आ रही थी, कि रास्ते में उनका सामना एक शेर से हुआ. वो शेर उन्हें अपना शिकार बनाना चाहता था. बहुला ने ये वचन दिया, कि अपने बछड़े को दूध पिलाने के पश्चात वो अवश्य लौटेगी और उनकी मनोकामना को पूर्ण करेगी.
इसी आश्वासन के साथ शेर ने भी उनको जाने की अनुमति दे दी. अपने वचन को निभाने के लिए बहुला फिर वापस शेर के समक्ष आई, ताकि वो उसका शिकार कर सके. उनके वचन निभाने कि प्रतिबध्दता को देख कर शेर ने उनका शिकार नहीं किया.
ये पर्व पशुओं की किसानों के प्रति जो निष्ठा और प्रतिबध्दता है उसका सम्मान करता है. एक और मान्यता ये भी है, कि इसे भगवन श्री कृष्णा के पशुओं के प्रति जो प्रेम था, उसके उपलक्ष में मनाया जाता है.
किसानों के लिए तो मवेशी ही उसके धन संपत्ति हैं. ये वो साथी हैं, जो किसी भी परिस्थिति में उनका साथ नई छोड़ते और सदैव निष्ठापूर्वक अपने मालिक की सेवा करते हैं.
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