अगर आज हम अपने प्राचीन ग्रन्थों पर नज़र डालें तो देखते हैं कि परशुराम, गांधारी, दुर्योधन के चरित्रों ने एक वस्तु के बल पर इतिहास को बदलने का प्रयास किया था। परशुरामजी ने क्षत्रियों से मुक्त करने का प्रण लिया और “एक लंगोट धारी” कहाए।
इसी प्रकार गांधारी ने अपने पुत्र के शरीर को वज्र समान कठोर बनाकर उसे अजेय बनाने के लिए निर्वस्त्र अपने सम्मुख आने का निर्देश दिया। लेकिन श्रीकृष्ण द्वारा समझाये जाने पर दुर्योधन ने लंगोट पहनकर गांधारी के इस प्रयास को निष्फल कर दिया और उसका शरीर लंगोट से ढका होने के कारण पूरा वज्र नहीं हो सका।
इन प्रमाणों से पता लगता है कि प्राचीन काल में शिशु के अधोवस्त्र के रूप में धोती और कैशोर्य में लंगोट पहनाया जाता था। लेकिन समय की बदलती धारा ने धोती और लंगोट के स्थान पर नवजात शिशु से लेकर 2-3 वर्ष तक के बालक-बालिकाओं के लिए डायपर का प्रावधान कर दिया। आजकल हर माँ अपने नवजात शिशु के आगमन की तैयारी में आधुनिकतम डायपर लेना पसंद करती हैं।
लेकिन समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी बच्चों के लिए लंगोट या डायपर में से कौन सा अधिक सही है, के सवाल में उलझा हुआ है। आइये इस लेख के माध्यम से इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करते हैं:
कपड़े के लंगोट या सुविधा की दृष्टि से हम इन्हें भी कपड़े के डायपर कह सकते हैं, दरअसल सूती, टैरी क्लोथ या फ्लैनल के बने होते हैं। भारतीय मौसम को ध्यान में रखते हुए कपड़े के नेपि या डायपर के गुण इस प्रकार देखे जा सकते हैं:
1. सूती कपड़े में हर तरह की नमी सोखने की क्षमता होती है। इसलिए गर्मी और नमी के मौसम में बच्चा सूखा रहता है।
2. कपड़े के नेपि बच्चे के मल और मूत्र को पूरी तरह से सोख लेता है जिस कारण इसका प्रभाव बच्चे की स्किन पर नहीं होता है।
3. कपड़े के नेपि पहनने से किसी प्रकार के रेशेज या लाल निशान व खुजली जैसी समस्या नहीं होती है। इस प्रकार यह नवजात शिशु के लिए भी पूरी तरह से सुरक्शित होते हैं।
4. कपड़े के नेपि बनाने में किसी प्रकार के हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं होता है। इसलिए इनसे किसी भी मौसम में कभी भी बच्चों को केमिकल रियक्षन जैसी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।
5. कपड़े के नेपि का मूल्य हमेशा सस्ता रहता है और यह कोई भी आसानी से बाज़ार से खरीद सकता है।
6. कपड़े के नेपि को घर में धोकर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता है।
7. कपड़े के नेपि कुछ परिवारों में एक से अधिक बच्चों के द्वारा भी इस्तेमाल किए जाते हैं।
8. जर्मनी में किए गए शोध के अनुसार बच्चों के गुप्तांगों का तापमान शेष शरीर से अधिक होता है। कपड़े के नेपि में इस तापमान को व्यवस्थित करने की क्षमता होती है। जिससे बच्चे को किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं होने पाता है।
9. सूती कपड़े के कारण बने होने के कारण कपड़े के नेपि में से हवा का आवागमन सरल हो जाता है और बच्चे के शरीर में पसीना नहीं आता है।
10. कपड़े के नेपि में बच्चों को थोड़ी देर के लिए गीलेपन का एहसास होता है। इससे वे अपने माता-पिता को थोड़े समय में ही मल-मूत्र त्यागने का संकेत देने का काम भी सरलता से सीख जाते हैं। इस प्रकार कह सकते हैं कि इससे बच्चों कि पोटी ट्रेनिंग अपने आप हो जाती है।
1. कपड़े के नेपी को धोने और सुखाने में समय की बरबादी होती है।
2. घर से बाहर या किसी फंक्शन में कपड़े के नेपी सुविधाजनक नहीं होते हैं।
3. बच्चे के एक बार मल-मूत्र त्यागते ही कपड़े के नेपी को बदलने की जरूरत होती है। इसे बाद के लिए टाला नहीं जा सकता है। हर बार ऐसा करना संभव नहीं होता है।
आधुनिक समय में विज्ञापन में दिखाये जाने वाले नवजात शिशु से लेकर ठुमकते और डगमगाते बच्चे सुंदर डिस्पोज़ेबल डायपर में दिखाई देते हैं। इसलिए हर माँ अपने बच्चे को ऐसा ही हँसता-मुसकुराता देखने के लिए इन डायपर के फायदे इस प्रकार बताती हैं:
1. इन डायपर का इस्तेमाल बहुत आसान होता है और इन्हें प्रयोग करने के बाद कहीं भी आसानी से फेंका जा सकता है।
2. एक बार डायपर पहना देने के बाद बच्चे द्वारा मल-मूत्र से न तो अपने और न और किसी के कपड़े खराब करने की परेशानी का सामना करना पड़ता है।
3. डिस्पोज़ेबल डायपर बाज़ार की हर दुकान में हर स्थान पर मिल जाते हैं इसलिए घर से बाहर होने पर भी इन्हें लेना मुश्किल नहीं होता है।
4. अच्छी क्वालिटी के डिस्पजेयबल डायपर जिस तकनीक से बनते हैं उसके कारण बच्चों को स्किन में खुजली या जलन की शिकायत होने की संभावना कम हो जाती है।
1. इन डायपर्स के देर तक बंधे रहने के कारण कुछ बच्चे असहज होकर मल-मूत्र को अपने में ही नियंत्रित कर लेते हैं। इससे उनके स्वास्थ्य पर खतरा खड़ा हो जाता है।
2. डिस्पोज़ेबल डायपर के निर्माण में जिन रसायनों और पदार्थों, विशेषकर प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। इससे बच्चों को गुप्तांगों में जलन, खुजली की परेशानी जिसे अब “डायपर रेशेज” कहा जाता है, का सामना नियमित रूप से करना पड़ता है।
3. पूरा दिन डायपर बंधा रहने के कारण बच्चों को यूरिन इन्फेक्शन या गुपतंगों के इन्फेक्शन की परेशानी भी हो जाती है।
4. प्लास्टिक और रसायन से बने ये डायपर पर्यावरण की दृष्टि से घातक सिद्ध होते हैं। इन डायपर्स को न तो जलाया जा सकता है और न ही इन्हें बहाया जा सकता है और न ही इन्हें दबा कर डिकम्पोज़ किया जा सकता है। क्योंकि हर सूरत में इनसे विषैली और हानिकारक गैसों का विस्तारण होता है।
5. अधिकतम डायपर निर्माता अपने प्रोडक्ट के निर्माण में लगी सामग्री का पूरा खुलासा नहीं करते हैं। वो यह नहीं बताते हैं कि इन डायपर का ऊपर का हिस्सा पेट्रोलियम गैस से बनी पोलिथिलीन का बना होता है। इसी प्रकार इसके अंदर का हिस्सा पोरीप्लिन गैस से बना थर्मोप्लास्टिक से बना होता है। इसके बीच का हिस्सा भी नरम लकड़ी के फाइबर से बनाया जाता है जिसमें पानी सोखने कि क्षमता होती है। इसमें 5 ग्राम टोकसीन्स होते हैं जो स्किन के लिए हर प्रकार से हानिकारक होते हैं।
6. इन डायपर्स को रंगने वाली डाई में भी हानिकारक तत्व होते हैं जो बच्चे कि स्किन पर खुजली कर देते हैं।
7. इन डिस्पोज़ेबल के बनाने के लिए जिस लकड़ी के बुरादे और पैट्रोलियम गैस का इस्तेमाल होता है, उन्हें औधोयोगिक और कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। इस प्रकार यह डायपर्स प्रकर्ति के महत्वपूर्ण संसाधनों का ह्रास कर रहे हैं।
8. डिज़्पोजेबल डायपर की कीमत लंबे समय में बहुत अधिक हो जाती है जिसके कारण इनका प्रयोग एक समय बाद जेब पर भारी लगने लगता है।
9. इन डायपर के लंबे प्रयोग से बच्चो को पोटी ट्रेनिंग देना काफी कठिन हो जाता है क्योंकि बच्चे इस काम की सरलता और अपने आप हो जाने वाले क्रम को तोड़ना पसंद नहीं करते हैं।
10. डिज़्पोजेबल डायपर में वोलटाइल ओर्गेनिक कंपाउंड का प्रयोग होता है। इन कम्पाउंड्स का मूल तापमान कमरे के सामान्य तापमान में भी काफी अधिक मात्रा में रहता है। इसका प्रयोग डायपर में नमी सोखने की क्षमता के लिए किया जाता है। इस कारण इनके लंबे और नियमित प्रयोग से छोटे बच्चों की इमम्युनिटी सिस्टम में छेद हो जाता है और वे जल्दी-जल्दी बीमार होने लगते हैं।
आप अपने बच्चे के लिए कपड़े के नेपी का प्रयोग करना चाहें या डिज़्पोजेबल डायपर का, यह निर्णय तो आपकी सुविधा और सरलता पर निर्भर करता है। लेकिन सुझाव यही है कि जहां तक हो सके, उस चीज़ के इस्तेमाल से बचना चाहिए जिसमें बच्चे को किसी भी प्रकार के नुकसान होने की संभावना होती है। हर स्थिति में बच्चे का स्वास्थ्य सर्वोपरि होता है।
➡ अगर आप अपने बच्चे के लिए डायपर खरीदते हैं, तो यह डायपर शॉपिंग गाइड अवश्य पढ़ लें।
खूबसूरत और चमकता चेहरा पाने की ख्वाहिश तो हर किसी की होती है लेकिन चेहरे…
मेथी एक ऐसी चीज़ है जो दिखने में छोटी होती है पर इसके हज़ारों फायदे…
यूं तो नवरत्न अकबर के दरबार में मौजूद उन लोगों का समूह था, जो अकबर…
वैसे तो गहरे और चटकदार रंग के कपडे किसी भी मौसम में बढ़िया ही लगते…
डैंड्रफ एक ऐसी समस्या है जो आपके बालों को तो कमज़ोर बनाती ही है, साथ…
हमारी त्वचा बहुत ही नाजुक होती है। यदि इसकी सही तरह से देखभाल नहीं की…