पुरी का जगन्नाथ मंदिर किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है। भगवान् जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), उनकी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम इस मंदिर के प्रमुख देवी-देवता हैं। उड़ीसा की पहचान और गौरव श्री जगन्नाथ पुरी मंदिर, लोगों की अनन्य आस्था का केंद्र है।
इस मंदिर का निर्माण कार्य कलिंग के राजा ‘श्री अनंतदेव चोडगंगदेव’ ने शुरू जरूर करवाया था लेकिन इसे वर्तमान रूप में पूरा करवाने के श्रेय उड़ीसा के शासक ‘अनंग भीमदेव’ को जाता है।
पुरी के जगन्नाथ मंदिर में बलराम, कृष्ण और सुभद्रा के विग्रह स्थापित हैं, जिन्हें इस मंदिर के अधिष्ठाता देवगणों के रूप में पूजा जाता है। हर साल इनकी रथयात्रा बहुत धूमधाम से निकाली जाती है, जो जगप्रसिद्ध है और इस रथयात्रा में भाग लेने लोग बहुत दूर दूर से आना अपना सौभाग्य समझते हैं।
ऐसी मान्यता है कि मालवा के राजा ‘इंद्रद्युम्न’ को भगवान् विष्णु ने सपने में दर्शन देकर भगवान् की लकड़ी की मूर्ति का निर्माण करवाने का आदेश दिया। ऐसे में राजा इंद्रद्युम्न ने भगवान् विष्णु के लिए कठोर तप करके मूर्ति के निर्माण के लिए उपयुक्त लकड़ी के बारे में जानने की इच्छा जताई। इसपर भगवान् विष्णु ने राजा को पुरी के समुद्र तट पर जाने और वहां मूर्ति बनाने के लिए उपयुक्त लकड़ी का लट्ठा मिलने की बात कही। राजा ने भगवान् के कहे अनुसार ही काम किया। इसके बाद भगवान् विष्णु और विश्वकर्मा बढ़ई कारीगर और मूर्तिकार के रूप में राजा से मिले और उस लट्ठे से एक महीने में ही भगवान् की मूर्तियां बनाने का प्रस्ताव रखा लेकिन साथ ही बढ़ई और मूर्तिकार बने विष्णु और विश्वकर्मा ने राजा के सामने यह शर्त भी रखी कि वे दोनों एक महीने तक एक कमरे में बंद होकर मूर्तियों का निर्माण करेंगे। इस दौरान कोई भी किसी भी कारण से उस कमरे में नहीं आएगा। राजा द्वारा शर्त मान लेने पर उन्होंने एक कमरे में बंद होकर उस लट्ठे से भगवान् की मूर्तियां बनाने का काम शुरू कर दिया। लेकिन जब कुछ दिन तक किसी भी तरह की कोई आवाज़ उस कमरे से नहीं आयी तो राजा ने उत्सुकतावश उस कमरे में झाँक लिया और तभी कमरे से कारीगर दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल आया। उस समय तक मूर्तियों के हाथ और नीचे का हिस्सा नहीं बना था। राजा को अपनी जल्दबाज़ी पर बहुत दुःख हुआ, लेकिन बाद में ईश्वराज्ञा से इन्हीं तीनों अधूरे विग्रहों को मंदिर में स्थापित किया गया और उसी रूप में उन्हें तबसे पूजा जा रहा है।
भगवान् जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम की मूर्तियां हर बारह साल में एक बार बदली जाती हैं। ख़ास और बहुत दिलचस्प बात यह है कि इन मूर्तियों का निर्माण हर बारह साल में जिस लट्ठे से होता है उसे असल में आज तक किसी ने देखा ही नहीं है। मूर्तियां बदलने के दौरान पुजारियों की आँखों पर पट्टी और हाथों पर कपड़ा ढका जाता है, जिससे मूर्तियां बदलने का स्त्रोत आज तक भी अज्ञात ही है और उसे देखने का प्रयास मृत्यु को आमंत्रित करने वाला माना जाता है।
बहरहाल तमाम मान्यताओं और किवंदितियों के बीच यह सत्य है कि भगवान् जगन्नाथ,सुभद्रा और बलराम की मूर्तियां लकड़ी की हैं और देश-विदेश के भक्तों की अपार श्रद्धा और स्नेह की केंद्र हैं।
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