बचपन के वो दिन तो सबको याद ही होंगे जब गर्मियों की छुट्टियों में दो ही लालच सबको होते थे. स्कूल बंद होते ही सीधे नानी के घर जाना और वहाँ सबके साथ बैठ कर खूब सारे आम खाना. उसी बचपन में यह भी जाना था कि फलों का राजा आम होता है और बड़े होकर पता चला कि आमों की प्रजाति में राजा ‘ अल्फ़ोंसों ‘ भी होता है.
भारत में हर दो कोस पर बोली का स्वरूप बदल जाता है और इसी प्रकार अल्फ़ोंसों का नाम भी पूरे भारत तो क्या विश्व में भी एक नहीं है. हम जानते हैं कि भारत में पायी जाने वाली आम की प्रजातियों में अल्फ़ोंसों को सबसे बेहतरीन आम माना जाता है. अल्फ़ोंसों नाम अँग्रेजी भाषा का दिया हुआ नाम है. महाराष्ट्र में इसे ‘हाफूस’ कहा जाता है तो कर्नाटक में ‘आपुस’ और गुजराती में ‘हफुस’ कहते हैं. विदेशी भूमि की पहली पसंद होने के कारण यूरोपीय भाषा में भी इसे एक अलग नाम ‘अलफ़ानसो’ के नाम से जाना जाता है. जो इस बात को सिद्ध करता है कि भारत ही नहीं विदेशों में भी अल्फ़ोंसों को बेहद पसंद किया जाता है.
दरअसल अल्फ़ोंसों एक पुर्तगाली सैनिक की भारत को देन है. ‘अलफ़ानसो दी अलब्रुक’ नामक एक पुर्तगाली सैनिक को बागवानी का बहुत शौक था और उसने ही गोवा (भारत) में आमों की कई प्रजातियां उगाई थीं. प्रयोग के तौर पर उन्होंने एक पेड़ पर आम की कई क़िस्मों को ग्राफ्टिंग के जरिये उगाने की कोशिश करी और उसमें वो सफल भी हुए. अल्फ़ोंसों उसी प्रयोग का नतीजा है.
वजन में 150 से 300 ग्राम के बीच के इस आमों के राजा की हर बात निराली होती है. इसका मीठा-रसीला स्वाद और महकती खुशबू सबसे अलग होता है. कहते हैं एक घर में खाये जाना वाला अल्फ़ोंसों पूरे मोहल्ले को अपने होने का पता देता था. पक जाने के एक हफ्ते बाद भी यह राजा ठाठ से राज करता है. इसी गुण के कारण इसका निर्यात करना सरल होता है.
इसकी कीमत भी आम नहीं है. यह एकलौता ऐसा आम है जो किलों के बजाय दर्जन के हिसाब से बेचा जाता है. आमों के सरताज को हर भूमि और हर प्रकार की जलवायु पर नहीं उगाया जा सकता है. केवल महाराष्ट्र के कोंकण इलाके के सिंधुगन जिले में देव गढ़ तहसील की भूमि और जलवायु ही आमों के बादशाह को माफिक आती है. बहुत से लोगों ने इसे दूसरी जगह उगाने की कोशिश करी लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.
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अल्फ़ोंसों की शेल्फ लाइफ, उसकी शहद जैसी मिठास और दूर तक जाने वाली खुशबू सब आमों में सबसे अच्छी होती है और यही कारण इसे विदेशियों की पहली पसंद बनाता है. अलफोंसो की दीवानगी की हद तो तब दिखाई दी जब 2014 में यूरोपीय संघ ने भारत से अलफोंसो के एक्सपोर्ट पर रोक लगा दी तो यह मामला ब्रिटेन की संसद में भी उठाया गया और 2016 में यह प्रतिबंध हटा लिया गया. अब फिर से सभी विदेशी रेस्तराओं में अलफोंसो अलग-अलग डेजर्ट्स में अपना स्वाद और खुशबू बिखेरने लगा है. अब तो ऑनलाइन भी इसे मंगाया जा सकता है.
तो इन गर्मियों में आप भी अलफोंसो आम का मज़ा उठाएं और गर्मियों को भरपूर एन्जॉय करें
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