पौराणिक कथा के अनुसार जब धरती पर आसुरी शक्तियों का आतंक बढ़ गया, तब धरती माँ अपने दुःख दूर करने के लिए विष्णु जी के पास गईं। विष्णु भगवान धरती माँ की प्रार्थना सुनकर बहुत दुखी हुए और धरती माँ को वचन दिया- “हे देवी धरती ! दुखी मत हो, मैं शीघ्र ही कृष्ण रूप में धरती पर जन्म लेकर सभी आसुरी शक्तियों का नाश कर तुम्हें उनके अत्याचार और पाप से मुक्ति दिलाऊँगा।”
उस समय कंस के अत्याचार से मथुरा की प्रजा आतंकित एवं भयभीत रहती थी।
कंस का आतंक
कंस छल से अपने पिता उग्रसेन को कारागार में कैद करके स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा था और उसके अत्याचार में दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ोत्तरी होती जा रही थी, जिससे प्रजा में आतंक एवं भय के बादल मंडराते रहते थे।
किन्तु कंस अपनी बहन देवकी से बहुत स्नेह करता था। जब देवकी विवाह के योग्य हुई तो कंस ने देवकी का विवाह महाराज वासुदेव से कर दिया।
अपनी बहन को मथुरा से विदा करते वक्त कंस के विषय में आकाशवाणी हुई कि देवकी की आठवीं संतान हीं कंस का वध करेगी। इसे सुनकर कंस भयभीत हो गया और देवकी को मारने का निर्णय लिया।
तब वासुदेव ने कंस से याचना की कि वो देवकी को जान से न मारे , वे अपनी प्रत्येक संतान को जन्म लेते ही उसे कंस के सुपुर्द कर देंगे। कंस मान गया और उसने देवकी और वासुदेव को मथुरा के कारागार में कैद कर लिया।
इसके पश्चात वासुदेव शर्त्तानुसार अपनी 6 संतानों के जन्म लेते ही उन्हें कंस को सौंपता गया। किन्तु जब सातवें संतान के जन्म लेने की बारी आई, तो भगवान श्री कृष्ण ने अपनी माया से उसे वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया। इस प्रकार बलराम का जन्म रोहिणी के गर्भ से हुआ।
कृष्ण का जन्म
इसके बाद आठवें संतान, श्री कृष्ण, के जन्म के समय कारागार के सभी द्वारपाल निद्रा में लीन हो गए और मथुरा के जेल के सातों द्वार खुल गए। वासुदेवजी ने मौके का फायदा उठाते हुए श्री कृष्ण को नन्द के घर पहुँचा दिया और तब से माता यशोदा ने ही कृष्ण का लालन-पालन किया।
इधर मथुरा में कंस के लिए आकाशवाणी हुई कि उसे मारने वाला जन्म ले चुका है। इस भविष्यवाणी से भयभीत होकर कंस ने कई बार कृष्णा के वध का प्रयत्न किया किन्तु हर बार असफल हुआ। फिर जब कृष्ण सोलह साल के हुए तो उनका वध करने के आशय से कंस ने बलराम और कृष्ण को मथुरा आने का आमंत्रण दिया।
कृष्ण द्वारा कंस के अत्याचार का अंत
मथुरा की धरती पर कृष्ण और बलराम के पैर पड़ते ही उथल-पुथल मच गयी। कंस के प्रियजन कंस के वध की आशंका से भयभीत हो गए। कंस के शस्त्रागार में बलराम और कृष्ण प्रवेश कर गए और वहाँ पर उपस्थित पहरेदारों को मौत के घाट उतार दिया, जिससे चारों ओर उपद्रव कायम हो गया और अत्याचारी शक्तियों का अंत होते देख लोगों के बीच कृष्ण की जय जयकार होने लगी। यह देख कंस क्रोधित हो गया और अपने पहलवानों को बलराम और कृष्ण की हत्या करवाने के लिए हाथी से कुचलवाने की आज्ञा दे दी।
कृष्ण द्वारा सभी असुरों का नाश होता देख कंस ने अपने सेवकों को आज्ञा दी, “वासुदेव के दुश्चरित्र लड़कों को नगर से बाहर कर दो, दुर्बुधि नन्द को कैद कर लो और गोपों का सारा धन छीन लो, वासुदेव को मार डालो और उग्रसेन मेरा पिता होते हुए भी शत्रुओं के पक्ष में है, अतः उसे भी मार डालो।”
कंस की ये बातें सुन कर कृष्ण भगवान क्रोधित होकर कंस को मारने के लिए उससे युद्ध करने लगे और क्षण भर में ही कंस का वध कर दिया। इसके बाद कृष्ण ने उग्रसेन को मथुरा राज्य सौंप दिया एवं वासुदेव और देवकी को कैद से मुक्त करवाया।
इस प्रकार भगवान् श्री कृष्ण ने, धरती माँ को आसूरी शक्तियों के अत्याचार से मुक्त करके, धरती पर अपने अवतरण के उद्देश्य को पूरा किया।