हिन्दु धर्म की मान्यतानुसार शक्तिपीठों को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। हिन्दु धर्म के अनुसार ऐसा माना जाता है कि एक बार देवी सती के पिता राजा दक्ष द्वारा शिव भगवान का अपमान कर दिए जाने के कारण देवी सती से यह सहन नही हुआ एवं उन्होंने इस अपमान का बदला लेने के लिए यज्ञ कुंड में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
तब भगवान शिव ने क्रोध में आकर राजा दक्ष का सर धड़ से अलग कर दिया। शिवजी देवी सती के वियोग में उनके शरीर को अग्निकुंड से निकालकर पूरी पृथ्वी पर तांडव नृत्य किया | तब देवी सती ने भगवती रूप धारण किया व शिवजी से बोली कि मेरे इस पार्थिव शरीर के प्रत्येक अंग एवं मेरे आभूषण पृथ्वी पर जहाँ-जहाँ गिरेंगे वहाँ पवित्र शक्तिपीठों की स्थापना की जाएगी।
अतः ऐसा माना जाता है कि देवी सती के अंगों व आभूषणों के द्वारा लगभग 51 महाशक्तिपीठों की स्थापना हुई। परन्तु भागवत के अनुसार इन पीठों की संख्या 108 बताई गई है। इन्हीं पीठों में महाशक्तिपीठ है असम का कामाख्या पीठ, जिसको समस्त शक्तिपीठों में विशेष स्थान प्राप्त है।
असम का कामाख्या पीठ
गुवाहाटी, असम का कामाख्या पीठ भारत का प्रसिद्ध शक्तिपीठ माना गया है। यह कामाख्या देवी का प्रसिद्ध मंदिर है जो १६वी शताब्दी में स्थापित किया गया था. । यहाँ के लोग देवी सती को ‘कामाख्या’ के नाम से जानते है। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ कोई देवी की मूर्ती तो स्थापित नही है परंतु कामाख्या मंदिर के गर्भगृह में एक शिलाखंड स्थापित है, जो देवी कि योनि को चित्रित करता है। इसे लाल रंग से ढका जाता है एवं लाल रंग या रक्तवर्ण के वस्त्र पहनाए जाते है।
यहाँ समीप ही एक विश्व प्रसिद्ध पुष्करिणी तालाब है जिसे सौभाग्य कुंड भी कहा गया है, ऐसी मान्यता है कि जो भी व्यक्ति अपनी कोई भी मनोकामना पूरी करना चाहता है वह इस तालाब की परिक्रमा कर ले। इससे उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे एवं उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। कामख्या मन्दिर को प्राचीनकाल में कामरूप एवं धर्मराज्य आदि नामों से भी जाना जाता था। इस प्रदेश में और भी कई प्रसिद्ध पीठ है परन्तु कामाख्या पीठ की मान्यता सर्वाधिक है।
क्यों कामाख्या पीठ को माना जाता है सबसे शक्तिशाली?
कालिका पुराण के अनुसार कामाख्या मंदिर वह स्थान है जहाँ सती और शिवजी विश्राम के लिए आते थे और यहीं पे सती की ‘योनि’ गिर गई थी जब शिवजी उनके शव के साथ नाच रहे थे। इसीलिए कामाख्या शक्तिपीठ को सबसे शक्तिशाली पीठ माना गया है।
माना गया है कि यह पर्वत तीन श्रंखलाओ में बंटा हुआ है। इन तीन श्रृंखलाओं में ब्रह्म पर्वत, शिव पर्वत एवं विष्णु पर्वत विध्यमान है। इस पर्वत पर त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश का वास माना जाता है। मंदिर के ठीक सामने 12 स्तंभ है। ऐसा कहा जाता है कि इन स्तंभों में देवी माँ की मूर्ती दिखाई देती है। यह पीठ एक अंधकारी गुफा के भीतर बना हुआ है अतः प्रकाश के लिए पीठ के सामने दीपक प्रज्वलित किया जाता है।
मासिक धर्म:
प्रति वर्ष आषाढ़ (जून) के महीने में कामाख्या देवी का मासिक चक्र होता है. इस दौरान देवी कि योनि से रक्त बहता है और काफी लोगों कि मान्यता है कि इस दौरान ब्रह्मपुत्र नदी का जल लाल रंग का हो जाता हैक्योंकि देवी कामाख्या ऋतुमती होती हैं, इसी कारण मंदिर को बंद कर दिया जाता है और किसी भी भक्त को दर्शन कि अनुमति नहीं होती. लेकिन इस दौरान मंदिर के बाहर आयोजित होता है ‘अम्बुवासी’ मेला.
अम्बुवासी’ मेला
अम्बुवासी’ मेला तांत्रिक शक्ति का प्रमुख मेला है और इन तीन दिनों के लिए कामाख्या और गुवाहाटी में दुनिया भर के तांत्रिकों का सबसे बड़ा जमावड़ा होता है. तंत्र-शास्त्र में रूचि रखने वाले देश-विदेश से इस मेले में सम्मिलित होते हैं.
कामदेव और कामाख्या
यह भी मान्यता है कि जब कामदेव ने अपना पुरुषुत्व खो दिया था, तब कामाख्य पीठ में आकर देवी कि योनि पूजा से ही उन्होनें अपना खोया पुरुषुत्व फिर से प्राप्त किया. यह भी एक कारण है कि इस मंदिर को इतना शक्तिशाली माना जाता है.
इस मंदिर की कई विशिष्ट मान्यताओं के कारण यह समस्त शक्तिपीठों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यहाँ आया हुआ कोई भी श्रद्धालु खाली हाथ वापस नही जाता है। अर्थात कामाख्या माता उसकी हर मनोकामना पूर्ण करती है। मान्यता है कि यहाँ कामाख्या माता साक्षात् विराजमान है एवं जो भी यहाँ आकर उनकी पूजा करता है उसे माँ भगवती के चरणों में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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