नवाबों का शहर लखनऊ अपनी शानो-शौकत के लिए काफी मशहूर है। यह शहर अपनी संकरी व रंगीन गलियों की वजह से आपको भूल भुलैया का अहसास कराती हैं। भूल भुलैयों वाले इस शहर से क्या खुद बाहर निकलना संभव है? आइए जानते हैं इस शहर के भूलभुलैया की कुछ रोचक बातें।
लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा और उसका भूलभुलैय्या
चित्र: Tale of 2 BackPackers
एक छोटी उम्र से ही लखनऊ के भूलभुलैये को लेकर मेरे मन में कौतुहल था। लेकिन एक अर्सा लग गया मुझे लखनऊ के शानदार शाही इमामबाड़ा और उसके साथी भूलभुलैय्या को देखने में।
कहते हैं की खुद नवाब साहब अपनी बेगमों के साथ भूलभुलैय्या में आँख-मिचौली का खेल खेला करते थे। यह बात सही है कि नहीं, मुझे नहीं पता, पर हाँ, भूलभुलैय्या का आख़िरकार अनुभव करने के बाद कह सकता हूँ कि लुकाछिपी खेलने के लिए दुनिया में इससे अधिक रोमांचक जगह कोई नहीं हो सकती। अगर ढूंढने वाला वाकई यहां अपने सभी साथियों को ढूंढ निकालता है, तो मैं तो उसे बेजिझक लुकाछिपी का वर्ल्ड चैंपियन मान लूँगा!
भूल-भुलैय्या का आर्किटेक्चर
शाहजहानाबाद (आज की पुरानी दिल्ली) के एक मशहूर आर्किटेक्ट हाफिज खिफायत उल्लाह साहब ने इस इमारत का डिज़ाइन किया था।
नवाब असफ़ौदुल्लाह की फरमाइश थी कि जो मुख्य दरबार बने, उसमें बीच में कोई भी खंबा नहीं होना चाहिए। उस जमाने में यह एक बहुत ही नायाब और मुश्किल काम था, और इसको अंजाम देने के लिए किफ़ायतुल्लाह ने छत और उसके ऊपर के निर्माण को अत्यधिक खोखला बनाने का फैसला किया, और इसी ने जन्म दिया भूलभुलैय्या को।
भूलभुलैय्या में लगभग एक हजार गलियाँ और 489 एक जैसे दिखने वाले दरवाजे हैं। ऐसे में यहाँ खो जाना स्वाभाविक है। तो कोई आखिर इससे बाहर कैसे निकले?
भूलभुलैय्या से बाहर निकलने का रास्ता
थोड़ी सी अकल्मन्दी से काम लिया जाये, तो यहाँ से बाहर निकालना इतना मुश्किल भी नहीं। सूर्य की रोशनी की तरफ ध्यान दें, और उसकी तरफ बढ़ते रहें। थोड़ी देर में आप खुद-ब-खुद बाहर आ जाएंगे।
एक और चीज़ गौरतलब है – वो है यहाँ की सीढ़ियाँ। कुछ सीढ़ियाँ जो नीचे की तरफ जा रही हैं, वो असल में आपको गुमराह करेंगी। इसलिए सूर्य की रोशनी की तरफ ध्यान दें, और अगर ऐसा करने में आपको ऊपर जाने वाली सीढ़ियों पर चढ़ना पड़े, तो चढ़ जाइए।
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