चिरोटा या चक्रमर्द के नाम से जाना वाला यह पौधा कही भी देखने को मिल सकता है। खेत में , जंगल में , सड़क के किनारे यह कही भी उग आता है। इसे कई भाषाओं में अलग अलग नाम से जाना जाता है, जैसे हिंदी में इसे पवाड़ कहा जाता है, तो मराठी में टाकला। इसे अग्रेंजी में ओलिव लीव्ड केशिया कहा जाता है।
इस पौधे में कई औषधिक गुण है, जो अनेक बीमारियों का इलाज करने में पूर्ण रुप से सक्षम है। लेकिन खेती करने वाले इसे एक अर्थहीन पौधे की तरह उखाड़कर अलग कर देते हैं।
इससे कई सारे हर्बल नुस्के अपना कर अनेक रोगो से छुटकारा पाया जा सकता है। आदिवासी लोग भी इस पौधे के महत्व के बारे में विस्तार से जानते है। तो आइये जानते हैं, इस हमेशा उपलब्ध रहने वाले पौधे के गुणों के बारे में.
यह पौधे अक्सर बारिश के मौसम में उग आते हैं, इसकी पत्तियां अठ्ठनी आकार की और तीन जोड़े में ही होती है। और इस पर गोल और पतली फल्लिया भी लगती है।
आदिवासी लोग इस पौधे की पत्तियों को तोड़कर इसे सब्जी के रूप में ग्रहण करते हैं। उनका यह मानना है, कि इसकी पत्तियों में बहुत अधिक पोषक तत्व होते हैं। यही कारण है, कि हर आदिवासी की यह मन पसंद सब्जी होती है।
चिरोटा के बीजों को पानी में पीस कर अगर दाद पर लगाया जाये, तो वह ठीक हो जाता है। इतना ही नहीं खाज या खुजली होने पर भी इसका प्रयोग करने से फ़ायदा मिलता है।
जिन बच्चों को कृमि की शिकायत रहती है, उनके लिए १० ग्राम चिरोटा के बीजों को एक कप पानी में मिलकर उबाल लें। इस काढ़े को बच्चों को पिलाने से पेट में कृमि शौच के जरिये बाहर निकल जाएगी।
पीलिया रोग हो जाने पर चिरोटा की ५० ग्राम पत्तियों को दो कप पानी में तब तक उबलें, जब तक वह एक कप न रह जाये। इस काढ़े को पिने से निश्चित ही आपको लाभ होगा।
कुछ जगह आदिवासी लोग तो इसे टूटी हुई हड्डियों को जोड़ने के लिए भी चिरोटा की पत्तियों का इस्तेमाल करते हैं।
वह लोग मुर्गी के अंडे के पिले भाग में चिरोटा की पत्तियों को मिलाते देते हैं। जिससे यह एक लेप के रूप में तैयार हो जाता है। अब इस लेप को टूटी हुई हड्डी पर लगाया जाता है।
इतना ही नहीं चिरोटा का उपयोग खेती के कार्यो में भी करते हैं। इसे खाद के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। अगर चिरोटा में गौ मूत्र और नीम की पत्तियां मिलाकर सब्जी की फसल पर डाला जाये, तो यह एक कीटनाशक का काम करती है।
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