अमरनाथ गुफा में महादेव शिव का वास है। यह हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह तीर्थ जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 145 किमी दूर, समुद्र तल से 3888 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ स्वत: ही हिम शिवलिंग का निर्माण होता है। अमरनाथ मंदिर व यात्रा का इतना महत्व क्यों है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख मिलता है।
माना जाता है, कि एक बार माता पर्वती ने भगवान शिव से अमरता के रहस्य के बारे में जानने की उत्सुकता प्रकट की। पहले तो भगवान शिव ने बताने से मना कर दिया, परंतु माता पर्वती के बार-बार अनुरोध करने पर वे मान गये। लेकिन इसे कोई और न जान पाये, इसलिए भगवान शिव और माता पार्वती एकांत के लिए हिमालय पर्वत श्रेणियों की ओर चल दिये। भगवान शिव ने गोपनीयता बनाएं रखने के लिए सबसे पहले पहनगाम में नंदी (बैल) का त्याग किया, फिर अपनी जटाओं से चंद्रमा को चंदनबाड़ी में मुक्त किया, गले से सर्पों को शेषनाग चोटी पर और गणेश को महागुणस की पहाड़ी पर छोड़ देने का निश्चय किया। इसके बाद पंचतरणी पर पंच तत्व- धरती, वायु, आकाश, अग्नि व जल का परित्याग कर भगवान शिव ने माता पर्वती के साथ एक गुफा के अंदर प्रवेश किया है। वहाँ भगवान शिव ध्यान मुद्रा में लीन हो गये , तथा आस-पास अग्नि को प्रज्वलित कर दिया, ताकि अन्य कोई प्राणी इस रहस्य को न जान पायें और फिर माता पार्वती को अमरता का रहस्य बताना प्रारंभ किया।
लेकिन महादेव शिव के आसन के नीचे कबूतर के अंड़ें इस अग्नि से भस्म नहीं हुए और उनमें से निकलकर कबूतर के जोड़े ने पूरी कथा को सुनकर अमरत्व का मंत्र जान किया। आज भी तीर्थयात्रियों को गुफा के अंदर कबूतर का जोड़ा दिखाई देता हैं, जिन्हें अमर पक्षी माना जाता है। चूंकि अमरता के रहस्य का वर्णन इस गुफा के अंदर हुआ था, इसलिए इसे अमरनाथ गुफा कहा जाने लगा।
इस गुफा में स्वत: बर्फ से चार से पाँच आकृतियों का निर्माण होता है, जिनका आकार अलग-अलग देवी-देवताओं से मेल खाता है। मुख्य आकृति शिव या बाबा अमरनाथ को दर्शाती है,
शिवलिंग का क्या महत्व होता है? क्यों की जाती है शिवलिंग की पूजा?
इसके दाएं तरफ की आकृति को भगवान गणेश माना जाता है और बाएं की आकृति को माता पार्वती के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है, कि इस गुफा में बाबा अमरनाथ के दर्शन से अर्जित पुण्य कांशी विश्वनाथ के दर्शन से दस गुना व संगम प्रयाग से 100 गुना अधिक फलदायक होता है। बाबा अमरनाथ के दर्शन से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और मनुष्य को सभी तीर्थों के फल के बराबर पुण्य अर्जन होता है।
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