1857 में भारत की स्वाधीनता का प्रथम संग्राम हुआ था। 90 वर्ष लंबे इस संग्राम में हजारों भारतीय युवक-युवतियाँ शहीद हुए। सदियों लंबी इस भयानक रात के बाद आखिरकार वो सुबह आ गयी, जिसका हर भारतवासी को इंतेजार था। 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र बन गया। जब लाल किले पर पंडित नेहरू ने भारत का राष्ट्रिय तिरंगा फहराया, तब हर भारतीय के चेहरे पर मुस्कान थी, और दिल में एक नयी आशा। पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जिन्होनें अपना पूरा जीवन भारत की स्वाधीनता संग्राम पर न्योछावर कर दिया था, वो इस सबसे महत्वपूर्ण दिल्ली से नदारद थे। क्यों? कहाँ चले गए थे बापू?
15 अगस्त 1947 से कुछ वक्त पहले, दिल्ली से हजारों मील पूर्व, दंगाइयों ने खूनी होली का खेल शुरू कर दिया था। जिन्ना के डायरेक्ट एक्सन प्लान का पहला बड़ा खामियाजा भुगता बंगाल के नोखाली नाम के एक जिले ने। नोआखाली में हिन्दू अल्पसंख्यक थे। दंगाई मुसलमानों ने यहाँ कत्ल-ए-आम शुरू कर दिया और हजारों मासूम हिंदुओं की हत्या कर दी। बापू के हिन्दू-मुसलमान एकता के स्वप्न पर यह सीधा वार था। सो बापू ने दिल्ली से नोआखाली जाने का फैसला कर लिया।
नेहरू सहित सभी बड़े नेताओं ने गांधीजी को रोकने का भरसक प्रयास किया। उन्हें समझा रहे थे कि ‘इन गुंडे-मवालियों के सामने जाने का कोई फायदा नहीं है।’ पर बापू ने मन बना लिया था। दिल्ली से रवाना होते समय गांधीजी ने इन नेताओं को कुछ यूं जवाब दिया:
नोआखाली पहुँच जब वहाँ का दृश्य देखा, तो बापू की आँखों में आंसू आ गए। जहां नजर जाती, वहाँ कोई लाश दिखती। गांधीजी ने चप्पल पहनना भी बंद कर दिया। “यह तो एक शमशान भूमि है”।
जिले में बापू ने गाँव-गाँव का भ्रमण किया। जिस भी गाँव में जाते, किसी मुसलमान के घर में ही ठहरते। हर गाँव में हिन्दू-मुस्लिम ग्राम रक्षा समिति बनाई। हिन्दू प्रतिनिधि का चुनाव मुसलमान करते थे और मुसलमान प्रतिनिधि का चुनाव गाँव के हिन्दू।
गांधीजी का जादू चलने लगा। भटियारपुर गाँव में जिन मुसलमानों ने एक हिन्दू मंदिर को नष्ट कर दिया था, उन्होनें ही पुन: उस मंदिर को संवारा।
दंगे भारत और पश्चिम पाकिस्तान बार्डर इलाकों में भी हो रहे थे। और वहाँ तो पूरी ब्रिटिश सेना दंगों को नियंत्रित करने में लगी हुई थी। पर पूर्वी पाकिस्तान में अकेले बापू ने जो कमाल किया, वो पूरी सेना मिलकर भी पश्चिम पाकिस्तान-पंजाब क्षेत्र में नहीं कर पायी।
जब 15 अगस्त का दिन निकट आने लगा, तब नेहरूजी ने गांधीजी को पत्र भेज कर आमंत्रित किया। उन्होनें अपने पत्र मे गांधीजी से कहा, “आप देश के राष्ट्रपिता हैं और देश के पहले स्वधिनता दिवस पर तिरंगा फहराने और आजादी का जश्न मनाने के लिए आपको वहाँ उपस्थित होना ही चाहिए।”
इस पत्र के जवाब देते हुए गांधीजी ने कहा कि जब उनके देशवासी सांप्रदायिकता कि आग में झुलस रहे हैंतो मैं आजादी का जश्न भला कैसे मना सकता हूँ। 15 अगस्त 1947 को जब पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था, तब गांधीजी नोआखाली के एक छोटे से गाँव में किसी दुखियारे को मरहम दे रहे थे।
ऐसे कमाल के थे हमारे बापू। उनके 150वें जन्मदिन पर बापू को मेरा शत शत नमन।
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