हिन्दू धर्म अति प्राचीन धर्मों में से एक है। इस धर्म में समय -समय पर परमात्मा के गुणों से युक्त सद्पुरुषों का आगमन होता रहा है। जिनसे जुड़ी कथाएं हिन्दू धर्म की पारंपरिक धरोहर बन गयीं है। ये सभी कथाएं मानवता के हित में दान -पुण्य एवं सदाचरण करने की प्रेरणा देती हैं।
ऐसी ही मान्यताओं पर आधारित पर्व है अक्षय तृतीया। इस तिथि से अनेक कथायें जुड़ी हुईं हैं। जो समाज में सदभाव एवं सदाचार के प्रसार के लिए दान पुण्य करने को प्रेरित करती है। इस वर्ष 7 मई 2019 को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा। आइये जाने अक्षय तृतीया पर्व को मनाये जाने का कारण एवं पूजन की विधि क्या है ?
अक्षय तृतीया की मान्यता
वैसाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है। अक्षय का अर्थ है कभी नष्ट न होने वाला। अतः इस दिन सद्कर्म दान, पूजा आदि करने की मान्यता है। ताकि इन अच्छे कर्मों के फलस्वरूप कभी नष्ट न होने वाले पुण्य की प्राप्त हो सके।
इस तिथि को अक्षय कहने का कारण इससे जुड़ी अनेक पौराणिक शुभ घटनाएं एवं कथाएं हैं। उनमें कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं निम्नलिखित हैं::
● इस दिन से हीं बदरीनाथ तीर्थस्थल के कपाट दर्शन के लिए खुल जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि बद्रीनाथ मंदिर में स्थित श्री हरि विष्णु भगवान के दर्शन करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
● वर्ष में एक बार अक्षय तृतीया को हीं वृन्दावन के श्री बांके बिहारी मंदिर में स्थित श्री हरि की मूर्ति के चरण भक्तों के दर्शन के लिए खोले जाते हैं। वर्ना वर्ष भर बांके बिहारी के चरण कपड़े से ढक कर रखा जाता है।
● इसी तिथि को महाभारत युद्ध का अंत एवं त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। इस लिए धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि को युगादि तिथि कहा जाता है।
● इसी तिथि को श्री हरि नारायण पृथ्वी पर नर-नारायण परशुराम एवं हयग्रीव के रूप में अवतरित हुए थे।
● इसी दिन ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार उत्पन्न हुए थे।
● इसी तिथि को जैन धर्म के प्रथम तीर्थाकर भगवान ऋषभदेव ने 400 दिनों की तपस्या पूरी करने के बाद गन्ने के रस को ग्रहण किया था।
● इन सभी पौराणिक एवं धार्मिक शुभ घटनाओं का इसी तिथि को घटित होना, इस दिन को महत्वपूर्ण बना देता है।
अक्षय तृतीया का सांस्कृतिक महत्त्व
● पौराणिक धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन सभी प्रकार के शुभ कार्य को प्रारम्भ किया जा सकता है।
● अक्षय तृतीया के मुहूर्त में गृह प्रवेश, विवाह, गृह,वाहन आदि खरीदने के लिए किसी नक्षत्र या समय का विचार करना आवश्यक नहीं होता है।
● इस दिन बहुमूल्य धातु विशेषकर सोने के सिक्के, गहने आदि खरीदने की परम्परा है। जिसके पीछे आजीवन समृधि बनी रहेगी, ऐसी मान्यता जुड़ी हुई है।
अक्षय तृतीया को दान करने की मान्यता
● इस तिथि से ग्रीष्म ऋतु (गर्मी के मौसम) की शुरुआत होती है। अतः गर्मी के मौसम के अनुकूल वस्तुएं पंखे, सत्तू, पानी रखने का पात्र, अनाज, गुड़, गन्ना आदि दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
● इस दिन ब्राह्मणों को पूजा एवं दान का विशेष महत्त्व होता है। इसका कारण सभ्यता के आरम्भ में ब्राह्मणों को गुरु का दर्जा दिया गया था। गरु ज्ञान के द्वारा जीवन जीने की कला सिखाता है। इसलिए गुरु को परमात्मा से उच्च स्थान दिया गया है। इसी कारण हिन्दू धर्म में किसी भी व्रत त्यौहार में ब्राह्मण को दान देने की प्रथा प्रचलित है।
● इस तिथि को वृद्ध ,विकलांग गरीब व्यक्तियों को भी दान देने का महत्व है।
अक्षय तृतीया से जुड़ी कथा
अक्षय तृतीया तिथि को दान देने की मान्यता से जुड़ी अनेक पौराणिक कथाये प्रचलित हैं उनमें से एक कथा इस प्रकार है
प्राचीन काल में धर्मदास नामक वैश्य था। जो प्रत्येक अक्षय तृतीया को गंगा स्नान के पश्चात श्री लक्ष्मी नारायण की विधिवत पुष्प, दीप ,धूप, नैवेद्य (नौ प्रकार की पूजा सामग्री) आदि के द्वारा पूजन के पश्चात ब्राह्मणों और गरीबों में सोना,अनाज एवं वस्त्र आदि दान किया करता था।
वृद्ध हो जाने पर धर्मदास अनेक शारीरिक कष्ट से घिर जाने के बावजूद अक्षय तृतीया को किये जाने वाले धर्म कर्म का पालन करता रहा। फलस्वरूप पुनर्जन्म होने पर वह कुशावती राज्य का राजा बना। इसके बाद पुनः जन्म लेने पर वह महान शासक चन्द्रगुप्त मौर्य बना।
मान्यता है कि अक्षय तृतीया को किये गए पूजा,दान आदि सद्कर्मो के कारण हीं धर्मदास को अक्षय पुण्य का फल प्राप्त हुआ।
इस कथा से सन्देश प्राप्त होता है कि अक्षय तृतीया को किये गए दान का फल पुनर्जन्म में भी प्राप्त होता है। अर्थात दान का पुण्य कभी समाप्त न होकर अक्षय हो जाता है।
अक्षय तृतीया की पूजा विधि
● इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के पश्चात श्री लक्ष्मी नारायण की पूजा करने की मान्यता है। इसका कारण इस दिन विष्णु भाद्वान नर नारायण के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुए थे।
● श्री हरि लक्ष्मी नारायण को कमल का फूल, धूप, चन्दन,दीप आदि से पूजा करना चाहिए नैवेद्य में अक्षत, सत्तू, जौ, गेंहूँ, ककड़ी, भीगे चने आदि का भोग लगाया जाता है।
● इस अवसर पर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना विशेष फलदायक होता है। इसके अतिरिक्त विष्णु पुराण या सच्चे मन से भगवान का नाम लेना भी पुण्य फल प्रदान करता है।
● पूजा के पश्चात ब्राह्मणों और ग़रीबों में अपने सामर्थ्य अनुसार ग्रीष्म ऋतु की गर्मी से बचने के लिए जल पात्र, छतरी, पंखा, अंगरखा, सत्तू , गुड़, चना आदि दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
● अक्षय तृतीया को सत्तू और गुड़ खाने और दान करने की परम्परा है। इसका कारण सत्तू और गुड़ खाने से गर्मी के दिनों में पेट में ठंडक रहती है। जिससे गर्मी के कारण पेट खराब नहीं होता है।
विभिन्न प्रदेशों में पर्व का आयोजन
● बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया पर्व को पूर्णिमा तक मनाया जाता है।
● राजस्थान में इस पर्व के अवसर पर बारिश के लिए प्रार्थना की जाती है। लड़के पतंग उड़ाते है।
● मालवा में मीट्टी के घड़े के ऊपर खरबूज के बीज एवं आम के पल्लव (पत्ते ) रखकर पूजा की जातो है।
● विवाहित महिलायें एवं कुँवारी कन्याये इस अवसर पर गौरी जी की पूजा करने के पश्चात गुड़, भीगे चने एवं फल आदि का दान करती हैं।
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