अक्सर महिलाओं को यह पता नहीं होता कि उनके लिए क्या कानून और अधिकार हैं। इसी के अभाव में उन्हें समुचित न्याय नहीं मिल पाता। एक महिला के लिए बेहद जरूरी है उन्हें सारे कानून और अधिकार पता हों। जानते हैं कि कौन-कौन से कानून के बारे में जानना आपके लिए बेहद जरूरी है…
कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व लाभ सिर्फ सुविधा नहीं बल्कि उनका अधिकार भी है। मातृत्व लाभ संशोधन अधिनियम, 2017 के तहत कंपनी के लिए महिलाकर्मी को 26 सप्ताह का सवैतनिक अवकाश देना अनिवार्य है। 50 से अधिक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों में बच्चों के लिए क्रेच भी होना जरूरी है। मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के अनुसार कोई भी कंपनी किसी भी महिला को उसके गर्भवती होने पर उसे ऑफिस से नहीं निकाल सकता है।
सीआरपीसी की धारा 160 (ए) के तहत एक महिला गवाह को अपने निवास स्थान पर ही अपना बयान दर्ज करवाने का अधिकार है। भारतीय कानून के अनुसार किसी भी महिला को पुलिस स्टेशन चलकर बयान दर्ज करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। ऐसे ही महिला आरोपी से पूछताछ के दौरान एक महिला अधिकारी की उपस्थिति होना अनिवार्य है।
बलात्कार की शिकार महिला जिला मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज करवा सकती है। वहां किसी और व्यक्ति की उपस्थिति नहीं होनी चाहिए। पुलिस अधिकारी और महिला कांस्टेबल के साथ बयान रिकॉर्ड कर सकती है। पुलिस अधिकारियों को महिला की निजता को बनाए रखना होता है। पीड़िता का नाम और पहचान भी गोपनीय रखनी होती है ताकि सार्वजनिक न हो।
महिलाओं को यह पता होना चाहिए कि कानूनी मदद लेने का अधिकार होता है। महिला की मांग पर एक प्रक्रिया के तहत राज्य सरकार मुफ्त में कानूनी सहायता मुहैया कराती है। कई बार पुलिस स्टेशन में उसके बयान को तोड़-मरोड़ कर लिखने की आशंका रहती है। महिला किसी सक्षम अधिकारी के समक्ष बयान दर्ज करने की मांग कर सकती है।
महिलाएं बलात्कार, छेड़छाड़ की घटना को तुरंत दर्ज कराने की बजाय बाद में एफआइआर दर्ज करा सकती है। इससे पुलिस इनकार नहीं कर सकती है। ऐसी घटना से सदमे में जाना स्वाभाविक है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने घटना के बाद शिकायत दर्ज करने के बीच काफी वक्त बीतने के बावजूद मामला दर्ज कराने का अधिकार दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार हर कार्यालय में एक महिला समिति होनी चाहिए, जिसका नेतृत्व महिला करे। उसमें पचास फीसदी महिलाएं होनी चाहिए। ऑफिस में साक्षात्कार के लिए आई महिला उत्पीड़न होने पर समिति के समक्ष शिकायत दर्ज करा सकती है। पीड़िता घटना के तीन माह में भी समिति से शिकायत कर सकती है।
आइपीसी की धारा 294 व 509 महिलाओं को उत्पीड़न एवं छेडख़ानी से बचाती है। पीडि़ता अपनी शिकायत ऑनलाइन भी दर्ज करवा सकती है। भारतीय कानून के अनुसार किसी भी उम्र की महिला को सार्वजनिक रूप से प्रताड़ि करना, परेशान करने के उद्देश्य से अपमानजनक टिप्पणी अथवा भद्दा इशारा करना कानून अपराध है। यह धारा महिलाओं की ऐसी परिस्थितियों में रक्षा करती है।
भारत में जीरो एफआइआर के तहत महिलाएं किसी भी थाने में अपनी शिकायत दर्ज करवा सकती हैं। पुलिस स्टेशन ऐसा करने से मना नहीं कर सकते। निर्भया कांड के बाद आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 में जीरो एफआइआर का प्रावधान किया गया। इसमें भी पीड़िता का बयान दर्ज किया जाता है। घटित अपराध को लिखित रूप में दर्ज करवाना होता है।
महिलाओं की सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए साल 2005 में ‘प्रोटेक्शन ऑफ वीमन फ्रॉम डॉमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट’ बनाया गया था। कानून के तहत अगर कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को शारीरिक या मानसिक रूप से हानि पहुंचाता है तो तीन साल से अधिक सजा हो सकती है घरेलू हिंसा में महिलाएं खुद पर हो रहे अत्याचार के लिए सीधे न्यायालय से गुहार लगा सकती हैं, इसके लिए वकील को लेकर जाना जरुरी नहीं है। अपनी समस्या के निदान के लिए पीड़ित महिला. वकील प्रोटेक्शन ऑफिसर और सर्विस प्रोवाइडर में से किसी एक को साथ ले जा सकती है और चाहे तो खुद ही अपना पक्ष रख सकती है। इसमें तलाकशुदा पत्नी भी घर में रहने की दावेदार है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही एक अहम फैसले में कहा कि कोई तलाकशुदा महिला रिश्तेदारों के स्वामित्व वाले साझा घर में भी रहने का दावा कर सकती है। यानी वह पति के घर के अलावा ऐसे रिश्तेदार के घर (जो ससुराल से संबंधित हो) में भी रहने के लिए दावा कर सकती है जहां वह पति के साथ कुछ समय तक स्थायी रूप से रही हो। पीठ ने अधिनियम की धारा 2 (एस) में दी गई साझा घर की परिभाषा की भी व्याख्या की है।
केरल हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान माना है कि पत्नी शादी के बाद जो दहेज साथ लाती है उस पर शादी के वैधानिक रूप से समाप्त हो जाने के बाद भी वह दावा कर सकती है। यानी किसी विवाह के कानूनी रूप से समाप्त हो जाने के बाद भी पति को पत्नी के दहेज और संपत्तियों के संबंध में विश्वास में रखने वाला व्यक्ति (होल्ड इन ट्रस्ट) ही समझेंगे, मालिक नहीं माना जाएगा।
मामले में केरल उच्च न्यायालय की पीठ का कहना था कि ऐसे मामलों में जहां पति-पत्नी का तलाक हो चुका हो, लिमिटेशन एक्ट 1963 की धारा 10, जो ट्रस्ट और ट्रस्टियों के विरुद्ध समय सीमा अवधि (लिमिटेशन पीरियड) के आवेदन से राहत देती है, विवाह के समाप्त होने के बावजूद तलाकशुदा पत्नी की संपत्ति पर लागू रहेगी। यानी पति या ससुराल वालों को दिए दहेज या अन्य संपत्ति पर दावे के संबंध में तलाक के बाद भी लिमिटेशन पीरियड शुरू नहीं होगा।
कार्यस्थल पर किसी महिला के साथ कोई गंभीर अपराध (जैसे रेप या यौन उत्पीडऩ या हिंसा) हो तो इसकी सूचना तुरंत पुलिस को देनी होती है। जानकारी होने के बाद भी अगर मालिक या प्रभारी द्वारा सूचना नहीं दी जाती तो उनके खिलाफ भी एफआइआर दर्ज होती है।
आइपीसी की धारा 376-च: इस धारा के तहत हुए अपराध गैर-जमानती होते हैं। ऐसा करने पर प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट के सामने सुनवाई होती है। आरोप साबित होने पर 3 साल की कैद और जुर्माना अथवा दोनों किया जा सकता है।
हाल ही सुप्रीम कोर्ट की ओर से महिलाओं के पक्ष में महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए गए हैं। इन्हीं में से एक है कि वैवाहिक और महिलाओं से जुड़े कानूनी मामलों में गुजारा-भत्ता (अगर देय है), आवेदन के दाखिल करने की तारीख से ही देना सुनिश्चित किया जाएगा।
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अगर कोई महिला अपने पति से कानूनी प्रक्रिया के तहत तलाक लिए बिना ही कथित रूप से अन्य नई ग्रहस्थी शुरू करती है तो सामाजिक रूप से यह गलत हो सकता है। लेकिन इस आधार पर उक्त महिला को अपने छह साल के नाबालिग बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने से वंचित नहीं किया जा सकता है।
‘प्रोटेक्शन ऑफ वीमन फ्रॉम डॉमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट के तहत अगर शादी होने के दौरान या शादी के बाद दहेज के लिए तानाकशी भी नहीं कर सकते। इतना ही नहीं, पत्नी को जबरन शारीरिक संबंध बनाने या अश्लील सामग्री देखने के लिए भी विवश नहीं कर सकते।
इलाहाबाद हाइकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए ‘यूपी रिक्रूटमेंट ऑफ डिपेंडेंट ऑफ गवर्नमेंट सर्वेंट्स डाइंग इन हार्नेस रूल्स-1974 ‘ को स्पष्ट किया। न्यायालय ने कहा कि इस नियम के तहत किसी व्यक्ति की बेटी का अनुकंपा आवेदन सिर्फ इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता कि वह शादीशुदा है। ऐसा करना किसी भी स्थिति में न्यायोचित नहीं हो सकता।
सोशल मीडिया के युग में इंटरनेट पर महिलाओं की सुरक्षा और निजता को सुरक्षित रखने के लिए भी कुछ कानून बनाए गए हैं। आए दिन होने वाले साइबर अपराधों और ऑनलाइन बुलीइंग के मामलों को देखते हुए हर महिला को इन कानूनों की जानकारी होनी चाहिए। ऐसा ही एक कानून है सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आइटी एक्ट) की धारा 67 और 66-ई। यह धारा किसी भी व्यक्ति की इजाजत के बिना उसकी निजी तस्वीरें खींचने, प्रकाशित और प्रसारित करने से रोकता है। इस कानून को महिलाओं के पक्ष में और मजबूत करने के लिए आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 की धारा 374-सी भी बनाई गई है। इस धारा के तहत किसी महिला की सहमति के बिना उसकी निजी तस्वीर या वीडियो खींचने/बनाने या इंटरनेट पर किसी भी माध्यम से प्रसारित करने का कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है।
भारतीय दंड संहिता व्यभिचार धारा 498 के तहत कोई भी लड़का किसी शादी शुदा महिला के साथ अपने संबंध रखता है तो उस पर क़ानूनी कार्यवाही हो सकती है। लेकिन उस महिला पर कोई भी क़ानूनी कार्यवाही नहीं होगी।
यदि कोई वयस्क लड़का या लड़की अपनी मर्जी से लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं तो उनके ऊपर घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत यह गैरकानूनी नहीं होगा कि इन दोनों से पैदा होने वाली संतान भी गैर कानूनी नहीं हो सकती। इसके अलावा संतान को अपने माता पिता की संपत्ति में हक भी प्राप्त होगा।
भारतीय दंड संहिता 498 के तहत किसी भी शादीशुदा महिला को दहेजके लिए प्रताड़ित करना कानूनन अपराध है। अब दोषी को सजा के लिए कोर्ट में लाने या सजा पाने की अवधि बढाकर आजीवन कर दी गई है।
विवाहित या अविवाहित महिलाओं को अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा पाने का हक है। इसके अलावा विधवा बहू को भी अपने ससुर से संपत्ति में हिस्सा पाने की भी हकदार है। हिन्दू मैरेज एक्ट 1955 के सेक्शन 27 के तहत पति और पत्नी दोनों की जितनी भी संपत्ति है, उसके बंटवारे की भी मांग पत्नी कर सकती है। पत्नी का स्त्रीधन पर भी पूरी अधिकार है। वहीं कोपार्सेनरी राइट के तहत उन्हें अपने दादाजी या अपने पुरखों द्वारा अर्जित संपत्ति में से भी अपना हिस्सा पाने का पूरा अधिकार है।
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Nice