श्राद्ध पक्ष के समाप्त होते ही माँ दुर्गा के आगमन की तैयारी शुरू हो जाती है। लेकिन 2020 में श्राद्ध पक्ष के खत्म होने के बाद दुर्गा पूजन करने के लिए हमें एक महीने का इंतजार करना होगा। क्योंकि इस वर्ष प्रतिपदा तिथि 17 अक्टूबर 2020 को है। श्राद्ध पक्ष और नवरात्रि के बीच एक महीने का अंतराल 19 साल बाद दिखाई देगा, इसके पहले भी वर्ष 2001 में और उससे पहले 1982 में ऐसा देखा गया है। आइये इस अंतर के पीछे तथ्य को खोजने की कोशिश करते हैं।
महालय और नवरात्रि के बीच एक महीने का अंतर अश्विन में अधिक मास आने के कारण हुआ है। 2020 में अधिक मास अश्विन में आ रहा है। अधिक मास में कोई भी शुभ मुहूर्त नहीं होता और न ही कोई शुभ कार्य किए जाते हैं, इसलिए अधिक मास की समाप्ति के बाद ही नवरात्रि का प्रारम्भ होगा।
2020 में अधिक मास का आना कोई संयोग नहीं है। अधिक मास किस वर्ष में कौन से माह में आता है इसके लिए एक पद्धति निर्धारित की गयी है।
इस पद्धति के अनुसार जिस वर्ष में अधिक मास आ रहा है उसका विक्रम संवत संख्या में आपको 24 को जोड़ना है। इसके बाद उस संख्या को आपको 160 से भाग देना है। अगर शेष 2, 21, 40, 59, 78, 97, 135, 143 और 145 रहा तो अधिक मास अश्विन माह में आएगा।
जैसे उदाहरण के तौर पर इस वर्ष 2020 की विक्रम संवत वर्ष संख्या है 2077 (क्योंकि विक्रम संवत अंग्रेजी कैलंडर से 57 साल आगे चलता है) इसलिए 2020 में 57 साल जोड़ने पर 2077 आएगा। अब इस संख्या में आपको 24 जोड़ना है। 2077 में 24 जोड़ने पर आपको 2101 मिलेगा। इसे 160 से भाग देने के बाद 21 शेष बचता है। इसलिए इस वर्ष में अधिक मास अश्विन माह में होगा।
इसी प्रकार से 2001 वर्ष का आकलन करने पर 2 शेष मिलता है और 1982 का करने पर 143 शेष बचेगा। इसलिए वर्ष 2001 और 1982 में भी अधिक मास अश्विन माह में था और महालय (श्राद्ध पक्ष) और नवरात्रि में एक माह का अंतर हुआ था।
हिन्दू पंचांग में वर्ष की गणन सूर्य और चन्द्र की चाल पर की जाती है जिसे सौर वर्ष और चन्द्र वर्ष कहा जाता है। एक सौर वर्ष में 365 दिन, 15 घड़ी/घटी (1 घड़ी = 24 मिनट, 15 घड़ी = 24*15 = 360 मिनट, अर्थात 6 घंटे), 22 पल (एक पल 24 सेकंड का होता है) और 57 विपल (एक पल का साठवाँ भाग) का होता है। वहीं चन्द्र वर्ष 354 दिन, 22 घड़ी/घटी, 1 पल और 23 विपल का होता है। इस प्रकार से देखा जाए तो दोनों (सौर वर्ष और चंद्र वर्ष) में हर साल 10 दिन 53 घड़ी/घटी, 21 पल का अंतर है जो लगभग 11 दिन का हो जाता है।
सरल भाषा में कहा जाए तो हर साल सौर वर्ष और चन्द्र वर्ष के बीच 11 दिन का अंतर होता है। तीन वर्ष बाद यह अंतर लगभग एक महीने के बराबर हो जाता है। और इस अंतर में समानता लाने के लिए तीन साल बाद एक अतिरिक्त महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं।
इस प्रकार आपको तीन साल के अवधि के बाद अधिक मास देखने को मिलता है जैसे अंग्रेजी कैलंडर में हर चार साल में एक दिन एक्सट्रा हो जाता है और लीप ईयर आता है।
इस मास के अंदर कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते। मुंडन, विवाह, गृह प्रवेश और आदि मांगलिक कार्यक्रम के लिए भी इस महीने को शुभ नहीं जाता है। इसलिए इस माह को मलमास के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मास में कोई भी शुभ कार्य नहीं होते थे। इसलिए कोई भी देवता गण इन माह में अपनी पूजा नहीं करवाना चाहते थे और न इस महीने के देवता नहीं कहलाना चाहते थे। यही सब कारणों से दुखी होकर मल मास ने विष्णुजी से प्रार्थना की। तब श्री हरी ने इस माह को अपना नाम दे दिया और कहा कि इस माह में जो भी व्यक्ति पूजा-पाठ करेगा या दान-पुण्य का कार्य करेगा उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाएंगे। इसलिए ही इस माह में कई जगह भगवत कथा सुनी जाती है।
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