हिंदू कैलेंडर के मुताबिक महीने के 30 दिनों को चंद्रमा की कला के आधार पर 15 दिन शुक्ल पक्ष और 15 दिन कृष्ण पक्ष के रूप में बांटा गया है। हिंदू महीने के 15वें दिन शुक्ल पक्ष के आखिरी दिन को पूर्णिमा कहते हैं इस दिन उत्तरी भारत में पूरा चांद निकलता है। साथ ही चंद्रमा पूरे आकार में दिखाई देता है।
इस दिन कोई न कोई हिंदू पर्व या व्रत अवश्य मनाया जाता है। पूर्णमासी के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा का प्रावधान है। मान्यता है कि इस दिन भगवान मानव रूप में अवतरित हुए थे।
चंद्रमा की कलाएं
वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो चंद्रमा केवल एक उपग्रह है, जिसे सूर्य की किरणों से रोशनी मिलती है। इस दिन सूरज और चांद समसप्तक होते हैं। पूर्णिमा के दिन चांद की कई कलाएं होती हैं। अमावस्या (न्यू मून) में चांद बहुत छोटा और नाम मात्र दिखाई देता है। अमावस्या के दर्शन करने से अगर आप कोई नया काम करने जा रहे होते हैं तो परिस्थितियां आपके पक्ष में ही रहती हैं।
वहीं वैक्सिंग मून में चंद्रमा बढ़ता हुआ नजर आता है। अमावस्या के बाद जब चंद्रमा बढ़ता है तो यह सफलता को दर्शाता है। फिर पूर्णिमा जिसमें पूरा चांद निकलता है। आमतौर पर पूरे चांद को नाकारत्मक माना जाता है। अगर आप पूर्णमासी को कोई नया काम शुरू करते हैं तो वह काम जरूर पूरा होता है। वेनिंग मून के दौरान चंद्रमा धीरे-धीरे घटने लगता है इस घटते चांद में आपको किसी व्यक्ति से भी छुटकारा पाने में मदद मिलती है।
वहीं साल 2019 में निम्नलिखित पूर्णिमा व्रत पड़ रहे हैं। पूर्णिमा व्रत चतुर्दशी के दिन से शुरु कर दिया जाता है।
21 जनवरी 2019 (सोमवार), पौष पूर्णिमा व्रत
हिंदू कलैंडर के हिसाब से पौष माह शुरु हो चुका है। पौष में पड़ने वाली पूर्णमासी का बहुत महत्व है। इस दिन भक्तगण संगम में डुबकी लगाते हैं। माना जाता है कि इस दिन संगम में नहाने से पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
19 फरवरी(मंगलवार), माघ पूर्णिमा व्रत
माघ महीने की पूर्णिमा के दिन माघी पूर्णिमा मनायी जाती है। इस दौरान कुंभ मेला लगता है, जिसे हर 12 साल बाद आयोजित किया जाता है।
20 मार्च (बुधवार),फाल्गुन पूर्णिमा व्रत
बसंत ऋतु के आने का प्रतीक है फाल्गुन पूर्णिमा। यह फाल्गुन के महीने में पूरा चांद दिखने के दिन मनाई जाती है। हिंदू धर्म में इस दिन को होली भी कहते हैं। इससे पहली रात को होलिका दहन किया जाता है। और परेवा को लोग रंग खेलते हैं।
19 अप्रैल (शुक्रवार),चैत्र पूर्णिमा व्रत
चैत्र महीने की पूर्णमासी को हनुमान जयंती मनाने का प्रावधान है। इस दिन को हनुमान जी के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है।
18 मई (शनिवार), वैशाख पूर्णिमा व्रत
वैशाख महीने की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। जिन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की थी।
17 जून (सोमवार), ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत
इस पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत किया जाता है। यह पूजन विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए करती हैं और वैवाहिक जीवन में सुख की कामना करती हैं।
16 जुलाई (मंगलवार), आषाढ़ पूर्णिमा व्रत
इस दिन भारत वर्ष में गुरू पूर्णिमा का आयोजन किया जाता है। आषाढ़ महीने के पूरा चंद्रमा दिखाई देने वाले दिन मनाया जाता है। इस दिन रथ यात्रा निकाली जाती है।
15 अगस्त (बृहस्पतिवार), श्रावण पूर्णिमा व्रत
हर बार श्रावण मास की पूर्णिमा को हमारे देश में रक्षाबंधन मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाईयों की कलाई में रक्षासूत्र बांधती हैं और उनसे अपनी रक्षा का वचन लेती हैं।
13 सितम्बर(शुक्रवार), भाद्रपद पूर्णिमा व्रत
भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से श्राद्ध पक्ष शुरु हो जाते हैं। इस दिन दान करने का महत्व होता है। इस दिन चांद उत्तर भाद्रपदा या पूर्व भाद्रपदा नक्षत्र में होता है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं। साथ ही भगवान सत्यनारायण की पूजा का भी प्रावधान है।
13 अक्टूबर(रविवार), अश्विन पूर्णिमा व्रत
अश्विन पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन रात में जागरण करके माँ लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है।इस पूर्णिमा की मध्य रात्रि में दूध की खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखी जाती है। इसमें चांद की किरणें पड़ती है जिन्हें अमृत के समान माना जाता है। यह खीर काफी गुणकारी और लाभदायक होती है।
12 नवम्बर(मंगलवार), कार्तिक पूर्णिमा व्रत
हिंदू धर्म में इस पूर्णिमा के दिन को देव दीपावली के रूप में भारतवर्ष में मनाया जाता है। इस दिन कार्तिक भगवान और विष्णु जी का पूजन-अर्चन का किया जाता है। इस दिन हर तरफ दीपक जलाए जाते हैं ताकि अंधकार मिट जाए। इस दिन लोग जागरण करवाते हैं।
11 दिसम्बर (बुधवार), मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत
मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन उपवास और पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस दिन भगवान विष्णु का पूजन-अर्चन किया जाता है। इस दिन स्नान करके सफेद वस्त्र धारण करके इसके बाद ऊँ नमो नरायाण मंत्रा का उच्चारण करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
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