टीवी पर धारावाहिक या सीरियल देखने का शौक कुछ लोगों को इतना ज्यादा होता है कि जब ये सीरियल प्रसारित होते हैं तो वे सारा काम-धाम छोड़ कर इन्हें देखने बैठ जाते हैं। सीरियल को लेकर सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है लेकिन भारतीय टेलीविजन के इतिहास में कुछ ऐसे सीरियल्स बने हैं, जिन्होंने प्रसारण के समय सफलता के नए कीर्तिमान गढ़े और आज भी उनका पुनर्प्रसारण उतने ही चाव से देखा जाता है। जानते हैं, ये 10 सीरियल कौन-कौनसे हैं, जिन्हें टीवी की दुनिया में सबसे ज्यादा पसंद किया गया है…
एक तरह से देखा जाए तो भारतीय टेलीविजन पर प्रसारित होने वाला यह पहला सोप ओपेरा यानी टीवी सीरियल था, जिसने 80 के दशक में लोगों के दिलों में खूब जगह बनाई थी। एक निम्नमध्यम वर्गीय परिवार की कहानी से दर्शक इस कदर जुड़ गए थे कि कइयों ने इसे देखने के लिए टीवी तक खरीदे, जो कि उस जमाने में एक लग्जरी हुआ करता था। बसेसर राम(विनोद नागपाल), भागवंती (जयश्री अरोड़ा), लल्लू (राजेश पुरी), बडक़ी (सीमा भार्गव), छुटकी (लवलीन मिश्रा), मंझली (दिव्या सेठ ), दादाजी (लाहिरी सिंह), इमरती (सुषमा सेठ)जैसे किरदारों को रचा था प्रख्यात लेखक मनोहर श्याम जोशी ने। इस सीरियल को बनाने का विचार तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री वसंत साठे को अपने मेक्सिको की यात्रा के दौरान आया था। इस सीरियल की खास बात थी दादा मुनि यानी अशोक कुमार का हर एपिसोड के अंत में आना और एक कटाक्ष करना।
इस सीरियल की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसकी मुख्य कलाकार तुलसी विरानी ऊर्फ स्मृति इरानी आज केंद्र सरकार में मंत्री हैं। स्टार प्लस पर प्रसारित होने वाला यह सीरियल अब तक सबसे लंबे चलने वाले सीरियल्स में से एक है। सीरियल की कहानी तुलसी विरानी यानी स्मृति ईरानी की थी, जिसकी शादी गुजरात के रईस खानदान में हो जाती है। परिवार के बाकी लोग तुलसी को स्वीकार कर लेते हैं लेकिन सास सविता विरानी उसके लिए तमाम मुश्किलें खड़ा करती रहती हैं लेकिन आखिरकार तुलसी अपनी सास का दिल जीतने में काययाब हो जाती है। तुलसी के पति मिहिर विरानी के रूप में भी अमर उपाध्याय की हैसियत भी उन दिनों टीवी के सुपर स्टार की तरह हो गई थी। एकता कपूर का बालाजी टेलीफिल्म्स भी इसी सीरियल के बाद कामयाबी की नई ऊंचाइयों पर चढ़ा था।
बालाजी टेलीफिल्म्स का यह सीरियल भी स्टार प्लस पर प्रसारित हुआ था और बालाजी इन दिनों फिर से इसे नए कलाकारों के साथ बनाकर टेलीकास्ट कर रहा है। कसौटी जिंदगी की, कहानी थी या इसके दूसरे वर्जन को देखते हुए कहें कि है, प्रेरणा और अनुराग बासु की, जो एक दूसरे से बेइंतिहा प्यार करते हैं लेकिन उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर हो जाता है। अनुराग की शादी होती है कोमोलिका से और प्रेरणा की मिस्टर बजाज से। इसके बाद समय का पहिया कुछ ऐसा घूमता है कि वे फिर से मिलते हैं और कहानी उनके नाती-पोतियों तक जाती है। पहले वाले सीरियल में प्रेरणा का किरदार श्वेता तिवारी और अनुराग बासु का किरदार सेजान खान ने निभाया था। बाद में सेजान की जगह हितेन तेजवानी आ गए थे। सीरियल की खलनायिका कोमोलिका के रूप में थीं ऊर्वशी ढोलकिया तो मिस्टर बजाज बने थे रोनित राय।
भारतीय टेलीविजन का शायद ही ऐसा कोई दर्शक होगा, जिसने सीरियल तारक मेहता का उल्टा चश्मा न देखा हो। इस सीरियल के तीन हजार एपिसोड पूरे होने को आए लेकिन इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है।
यह सीरियल गुजराती लेखक तारक मेहता के ‘दुनिया ने ऊन्धा चश्मा’ उपन्यास पर आधारित है। असित मोदी निर्देशित सीरियल में तारक मेहता का किरदार शैलेष लोढ़ा ने निभाया है। यह कहानी मुंबई की गोकुलधाम सोसायटी की है, जहां जेठालाल गढ़ा(दिलीप जोशी), बबीता जी(मूनमून दत्ता), आत्मराम भिड़े(मंदार चंदवादकर), माधवी भिड़े(सोनालिका जोशी), पोपटलाल (श्याम पाठक) आदि रहते हैं। नट्टू काका, डॉ. हाथी, टप्पू और उनकी सेना, रोशन सिंह, बाघा छोटी-छोटी घटनाओं से सभी के साथ मिलकर हंसाते हैं। हालांकि दया गढ़ा (दिशा वकानी) जो अपने खास अंदाज में गरबा करती हैं, काफी दिन से सीरियल में नजर नहीं आ रही हैं।
सुषमा सेठ, शेखर सुमन, नवीन निश्चल, भावना बलसावर, फरीदा जलाल, शम्मी आंटी, ऊर्वशी ढोलकिया जैसे कलाकारों से भरा यह कॉमेडी सीरियल भला किसे याद नहीं होगा। हाल में इसे लॉकडाउन में दूरदर्शन पर फिर से दिखाया भी गया था, इस दौरान फिर से इसे काफी लोगों ने देखा।
देख भाई देख कहानी थी दीवान परिवार की, जिसकी तीन पीढिय़ां मुंबई के बाहरी इलाके में एक बंगले में साथ रहती थीं। शेखर सुमन इस सीरियल से पहले केवल फिल्में ही कर रहे थे लेकिन आर्थिक तंगी ने उन्हें छोटे पर्दे पर कदम रखने पर मजबूर किया और शेखर सुमन ने जितना सोचा नहीं था, उससे कहीं बढक़र लोकप्रियता उन्हें इस सीरियल के दौरान हासिल हुई। परिस्थिति जन्यहास्य, परिवार में छोटे-बड़ों की नोंक-झोंक, तीन पीढिय़ों की बॉन्डिंग वाले इस सीरियल का निर्देशन अंजू महेंदु्र ने किया था और जया बच्चन इसकी निर्माता थीं।
एकता कपूर पहले इस सीरियल को लेकर जी टीवी के पास गई थीं लेकिन जी को यह आइडिया पसंद नहीं आया तो वह स्टार प्लस पर ले सीरियल को ले आईं। इस सीरियल ने साक्षी तंवर को नई पहचान दी और यह सीरियल भी सबसे लंबे चलने वाले सीरियल में से एक बना। लोगों को आदर्श बहू पार्वती अग्रवाल यानी साक्षी इतनी पसंद आईं कि हर कोई ऐसी ही आदर्श बहू अपने घर में चाहने लगा था। जब इस सीरियल की लोकप्रियता में गिरावट आई तो एकता ने दो बार इसमें लीप लेकर नई पीढ़ी कहानी में जोड़ दी। हर भारतीय महिला पार्वती की जगह खुद को देखती थी, जो शुरुआत में फैसले नहीं कर पाती थी लेकिन बाद अपने परिवार की रक्षा के लिए बड़े से बड़े निर्णय ले लिए। पार्वती के पति के रूप रूप में ओम अग्रवाल की भूमिका किरण कर्माकर ने निभाई थी।
विभाजन की त्रासदी, आजादी का जश्न, दो पीढिय़ो में विचारधारा का टकराव – इस सीरियल के लिए कामयाबी की वो इबारत लिख गया, जो अमिट हो गई। इसके पटकथा लेखक भी मनोहर श्याम जोशी थे, जो इससे पहले एक और कामयाब सीरियल हम लोग लिख चुके थे। इसका निर्देशन किया था उस वक्त के जाने-माने फिल्म निर्देशक रमेश सिप्पी ने (जी हाँ, शोले वाले रमेश सिप्पी!), इसलिए सीरियल का कैनवास भी काफी बड़ा था और तकनीकी रूप से भी काफी समृद्ध था।
करीब 50 साल के कालखंड में फैली यह एक उच्चमध्यमवर्गीय पंजाबी परिवार की कहानी थी, जिसे विभाजन के बाद लाहौर से भारत आना पड़ता था। शो के किरदार मास्टर हवेली राम (अलोक नाथ), लाजोजी (अनीता कंवर), भाई आत्मानंद (गोगा कपूर), लाला गैंडामल (सुधीर पांडे, वीरावली (किरण जुनेजा), रज्जो (नीना गुप्ता), बृषभान (विजयेंद्र घाटगे) आज भी लोगों के जेहन में ताजा हैं।
नब्बे के दशक का सबसे चर्चित शो था तारा, यह एक ऐसा सीरियल था, जिसमें संभवत: पहली बार किसी महिला को केंद्रीय पात्र बनाया था। तारा की भूमिका अदा करने वाली नवनीत निशान के छोटे बालों वाली हेयर स्टाइल उन दिनों भी काफी प्रचलन में आ गई। तारा को आप सबसे पहला ‘बोल्ड’ सीरियल भी कह सकते हैं, जिसमें अपनी तमाम परेशानियों से अकेली जूझती हुई एक शक्तिशाली बिजनेसवुमन तारा को एक शादीशुदा पुरुष दीपक सेठ (आलोकनाथ) से प्यार हो जाता है। दीपक के बच्चे तारा से सख्त नफरत करते हैं। तारा सीरियल छोटे पर्दे पर पांच साल तक चलने वाला पहला सीरियल था, अपने समय में टीआरपी में पहले पायदान पर रहा था। सीरियल में रत्ना पाठक शाह, अमिता नांगिया, नेहा शरद, देवेन भोजानी, शेफाली शेट्टी, ग्रुषा कपूर भी अहम किरदारों में नजर आए थे।
ये जो हैं जिंदगी, थोड़ी खट्टी थोड़ी, फिर भी इसे जीने का एक अलग ही है मजा…महान गायक कलाकार किशोर कुमार के गाए इस टाइटल ट्रेक से सजे सीरियल ये जो है जिंदगी ने लोगों ने खूब हंसाया था। इसे लिखा था व्यंग्य की दुनिया के जाने-माने लेखक शरद जोशी ने। इसकी कहानी के तीन मुख्य किरदार थे, रंजीत वर्मा (शफी ईनामदार), अपने पति रंजीत से हर छोटे-बड़े मुद्दों पर लड़ाई करने वाली रेनू वर्मा (स्वरूप संपत) और रेनू का बेरोजगार, कुंवारा भाई राजा (राकेश बेदी)। सतीश शाह इस सीरियल की जान थे तो हर एपिसोड में अलग-अलग किरदारों में नजर आते थे। आज भी इस सीरियल को देखेंगे तो लगेगा ही नहीं कि आप करीब 22 साल पुराना सीरियल देख रहे हैं, यह आपको आज भी अपनी जिंदगी से जुड़ा नजर आएगा। इसकी सफलता के बाद सीरियल का दूसरा सीजन भी बना, लेकिन वह उतनी लोकप्रियता हासिल नहीं कर सका।
लेखक आर के नारायण की कहानियों पर आधारित इस धारावाहिक का निर्देशन कन्नड़ अभिनेता और निर्देशक शंकर नाग ने किया था। सीरियल की कहानियां आरके नारायण की कहानियों के संकलन वन हॉर्स एंड टू गोट्स, मालगुडी डेज, स्वामी एंड हिज फ्रेंड्स, वेंडर ऑफ स्वीट्स से ली गई थीं। सीरियल की एक खासियत यह भी थी, इसमें हाथ से बने स्केचों का इस्तेमाल किया गया था, जिसे आरके नारायण के भाई और प्रख्यात कार्टूनिस्ट आर.के. लक्ष्मण ने बनाया था।
स्वामी और दोस्त की कहानियां एक दस साल के बच्चे स्वामीनाथन या स्वामी की जिंदगी पर आधारित थीं। स्वामी स्कूल से बच कर अपने दोस्तों के साथ मालगुडी (एक काल्पनिक जगह) में घूमता रहता था। स्वामी का किरदार निभाने वाले मंजूनाथ ने बाद में फिल्म अग्निपथ में अमिताभ के बचपन का किरदार भी निभाया था। इस सीरियल के कुल चार सीजन बने थे। पहला 1986, दूसरा 1987 में, तीसरा 1988 में और चौथा 2006 में। गिरीश कर्नाड, शंकर नाग, दीना पाठक, देवेन भोजानी इसके कई एपिसोड्स में नजर आए थे।
यह धारावाहिक इतना मशहूर हुआ कि…..
बाद में मालगुडी डेज सीरियल की लोकेशन को यादगार बनाए रखने के लिए कर्नाटक के शिवामोग्गा जिले के आरासालु रेलवे स्टेशन का नाम भारतीय रेलवे ने मालगुडी रेलवे स्टेशन रख दिया था।
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