जबसे सभ्यता में नारी ने श्रृंगार करना आरंभ किया है, नख-शिख श्रृंगार उसके अस्तित्व का अभिन्न हिस्सा बन गया है। शरीर के हर अंग को अलग-अलग आभूषणों और तरीक़ों से सजाने के लिए उत्सव और रस्मों का सहारा लिया। सोलह शृंगार में चौथे स्थान पर आने वाली मेहँदी को हर दुल्हन अपने शरीर पर बड़े शौक से सजाती है। सावन के झूले और तीज के गाने बिना मेहँदी की महक के अधूरे हैं।
करवाचौथ का श्रृंगार मेहँदी के बिना बिल्कुल अधूरा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है, कि जिस मेहँदी से आप श्रृंगार कर रही हैं, वो दरअसल कब से अस्तित्व में आई है और इसका इतिहास क्या है। आइये आज आपको बताते हैं।
नारी के सौन्दर्य को दुगुना करने में हिना या मेहँदी का बहुत बड़ा हाथ है। लेकिन कब से मेहँदी, सौन्दर्य सामग्रियों के मेकअप का ज़रूरी हिस्सा बनी है, इस बारे में शायद ही कोई जानता हो। वेद-पुराणों की मानें, तो मेहँदी का सीधा संबंध दुर्गा माँ के महाकाली रूप से माना जाता है। कहते हैं, एक बार असुरी शक्तियों ने देवलोक पर आक्रमण करके चारों ओर अशांति फैला दी थी। उस समय देवताओं की मदद करने के लिए माँ दुर्गा ने महाकाली माँ का अवतार लियाऔर असुरों का नाश करना शुरू किया।
अपने रौद्र रूप में महाकाली रक्त में सनी हुई बहुत भयंकर प्रतीत हो रहीं थीं। कहा तो यह भी जाता है, कि उनके इस रूप से देवलोक और पृथ्वी लोक में भी भय का वातावरण बन गया । तब माँ काली के रौद्र रूप को शांत करने के लिए सभी देवगण देवराज इन्द्र के पास गए। लेकिन इन्द्र के द्वारा असमर्थता प्रकट करने पर सभी महादेव शिव की शरण में गए। भगवान शिव ने उनकी सहायता करने का आश्वासन दिया और देवी काली के पास गए। उन्होनें माँ काली को उनके रौद्र और भयंकर रूप की वास्तविकता से परिचित करवाकर उन्हें शांत होने की प्रार्थना की। तब माँ दुर्गा ने अपनी मर्जी से एक और देवी को प्रकट किया जो सौम्य, शांत और सुंदर थीं। बाद में देवी के इस रूप को सुर-सुंदरी कहा गया। देवी दुर्गा ने सुर-सुंदरी को एक औषधि के रूप में उनके हाथ पैरों में लगकर उनके चित्त को शांत करने का आग्रह किया।
देवी सुर-सुंदरी ने माँ दुर्गा के रूप को औषधि बनकर लाल रंग से सजा दिया। देवी दुर्गा अपने इस काया-कल्प को देखकर बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होने यह वरदान दिया की जिस तरह तुमने मेरे चित्त को आराम दिया है और मेरे सौन्दर्य को बढ़ाया है, उसी प्रकार संसार की प्रत्येक नारी तुम्हें अपने शृंगार में यही स्थान देगी। तब से मेहँदी या हिना को नारी शृंगार में सबसे अच्छा स्थान मिला ।
मेहँदी किसी भी रंग में हमारे जीवन में आती है, अपने संग हमेशा खुशी, सौभाग्य और स्वास्थ्य का रूप लेकर ही आती है।
एक औषधि के रूप में मेहँदी निम्न प्रकार से काम आती है:
1. शरीर के हार्मोन्स को संतुलित रखती है;
2. रक्त-संचार को नियमित करती है ;
3. मस्तिष्क और चित को शांत करती है ;
4. मेहँदी के पौधे का हर भाग किसी न किसी रोग को दूर करने के काम आता है;
5. रक्त साफ करती है।
सुहाग और सौभाग्य की निशानी मेहँदी हो या हिना अपना रंग आपके हर कष्ट का निवारण करने की क्षमता रखती है।
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