विवाह के उपरांत हर विवाहिता सोलह श्रृंगार के तहत सिर से लेकर पैर तक कोई न कोई सुहाग चिन्ह जैसे बिंदी, पायल, चूड़ी, सिंदूर आदि अवश्य धारण करती है। हमारे प्राचीन शास्त्रों में कहा गया है कि घर परिवार की मान प्रतिष्ठा की धुरी महिला को घर में भी सोलह श्रृंगार कर रहना चाहिए।
सोलह श्रृंगार का उल्लेख ऋग्वेद में भी किया गया है, जिसके अनुसार सोलह शृंगार मात्र सौंदर्य वर्धन नहीं करता, वरन भाग्य भी चमकाता है। भारतीय संस्कृति में नववधू के लिए भी सोलह श्रृंगार करना अति शुभ एवं अनिवार्य माना जाता है।
पुराणों के अनुसार महिलाओं द्वारा सोलह शृंगार घर परिवार में सुख एवं समृद्धि लाने के उद्देश्य से किया जाता है।
तो आइए आज जानते हैं सोलह श्रृंगार के तहत आने वाली सुहाग की सोलह निशानियों और उनके उपयोग संबंधित प्रचलित धार्मिक एवं वैज्ञानिक मान्यताओं के विषय में।
दोनों भौहों के मध्य कुमकुम अथवा सिंदूर से लगाई जाने वाली बिंदी स्वयंभू शिव जी के तीसरे नेत्र का प्रतीक मानी जाती है।
हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों के अनुसार बिंदी हमारी तीसरी आंख का प्रतीक है। दो आंखें सूर्य एवं चंद्रमा मानी जाती हैं, जो वर्तमान एवं भविष्य दृष्टा होती हैं। बिंदी त्रिनेत्र के प्रतीक के तौर पर भविष्य में आने वाले संकेतों की ओर इंगित करती है।
इस के अनुसार ललाट पर बिंदी लगाने से दोनों ग्रहों के मध्य स्थित आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाता है। परिणाम स्वरूप शरीर की सभी गतिविधियां सुचारू रूप से संपन्न होती हैं ।
भारत के करीबन प्रत्येक प्रांत में महिलाओं द्वारा विवाह के उपरांत सिंदूर को सुहाग चिन्ह के रूप में धारण किया जाता है। विवाह के मौके पर पति अपनी भावी जीवन संगिनी की मांग में सिंदूर सजा कर आजीवन उसका साथ निभाने की प्रतिज्ञा करता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार सुहागनें अपने पति की दीर्घायु की कामना से अपनी मांग में सिंदूर लगाती हैं ।
लाल सिंदूर को मस्तिष्क के मध्य स्थित मांग में भरा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस स्थान पर ब्रह्मरंध्र नामक ग्रंथि होती है। सिंदूर में मौजूद पारा धातु इस ब्रह्मरंध्र ग्रंथि के लिए बेहद फायदेमंद होती है और मानसिक तनाव दूर करने में सहायक होती है।
काजल नेत्रों का श्रृंगार है। महिलाएं इसे नेत्रों के सौंदर्य में वृद्धि करने के लिए अपनी आंखों में लगाती हैं।
प्रचलित धार्मिक मान्यता है कि काजल लगाने से महिला बुरी नजर से बची रहती है।
हमारे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार घर में शुद्ध घी एवं कपूर से तांबे के पात्र पर बना काजल नेत्रों को स्वस्थ रखता है और आंखों की बीमारियों को दूर रखता है।
मेहंदी के बिना विवाहिता का सिंगार अधूरा कहलाता है। विवाह के समय दुल्हन और विवाह में सम्मिलित सभी परिवार कुटुंब की महिलाएं अपने हाथों एवं पैरों में मेहंदी की आकर्षक डिजाइन बनाती हैं।
जन मान्यता है कि दुल्हन की मेहंदी जितनी लाल और गहरे रंग की रचती है, उसे पति का उतना ही अधिक प्यार मिलता है।
वैज्ञानिक मान्यता है कि मेहंदी की ठंडी तासीर और सुगंध महिलाओं को तनाव रहित एवं ऊर्जावान बनाए रखने में मददगार साबित होती है।
दुल्हन का श्रृंगार बिना गजरे के फीका प्रतीत होता है। दक्षिण भारत की महिलाएं तो अपनी वेणी अथवा जूड़े में रोजाना जूही के फूलों का गजरा लगाती हैं ।
इस मान्यता के अनुसार जूही के फूल समृद्धि और सौभाग्य का सूचक माने जाते हैं।
मोगरे अथवा चमेली के फूलों की सुगंध नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है, जिससे स्त्रियों का मानसिक तनाव कम होता है और उन्हें मानसिक शांति का अनुभव होता है।
महिलाएं मांग टीका अपने विवाह अथवा अन्य सामाजिक आयोजनों पर अपनी मांग में पहनती हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार मांग टीका स्त्री के यश एवं सौभाग्य का द्योतक होता है। इसका प्रतीकात्मक अर्थ है, स्त्री को अपने जीवन से जुड़े लोगों का हमेशा ख्याल रखना है।
मांग टीका स्त्रियों के शारीरिक तापमान को नियंत्रित करता है, जिससे उनकी सोच समझ एवं फैसले लेने की योग्यता में वृद्धि होती है।
विवाह की प्रथम रस्म यानी सगाई का श्रीगणेश भावी वर-वधू एक दूसरे को अंगूठी पहना कर ही करते हैं।
धार्मिक मान्यता के अनुसार अंगूठी दांपत्य जीवन में पति-पत्नी के शाश्वत प्रेम का प्रतीक है।
वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार अनामिका अंगुली सीधे हृदय एवं मस्तिष्क से जुड़ी होती हैं। अतः इस अंगुली में अंगूठी पहनने से उस पर दबाव पड़ता है जिससे हृदय व मस्तिष्क दोनों स्वस्थ रहते हैं।
पैरों का आभूषण चांदी की बनी पायल सबसे शुभ एवं उत्तम मानी जाती है।
भारतीय संस्कृति में विवाहिता स्त्री को घर की लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है। अतः घर में समृद्धि संपन्नता बनाए रखने के लिए स्त्रियां पायल पहनती है।
पायल के निरंतर त्वचा पर रगड़ खाने से शरीर को स्वस्थ रखने वाले प्रेशर पॉइंट पर दबाव पड़ता है, जिससे रक्त संचार सामान्य बना रहता है और शरीर के ऊर्जा के स्तर में इजाफा होता है।
बिछिया विवाहित महिलाओं का एक प्रिय आभूषण है ।
इसके अनुसार पैरों की अंगुलियों में बिछिया धारण करने से घर में समृद्धि का वास होता है।
पैर की दूसरी अंगुली में बिछिया पहनने से वहां स्थित सायटिक नर्व की एक नस पर दबाव पड़ता है, जिससे उनके युटेरस, ब्लैडर एवं आंतों में रक्त प्रवाह तेज हो जाता है ।
हार अथवा मंगलसूत्र महिला के श्रृंगार का अभिन्न अंग हैं।
सोने अथवा मोतियों का हार और मंगलसूत्र सुहागन महिला का अपने जीवन सहचर के प्रति वचनबद्धता का प्रतीक माना जाता है।
गले एवं इसके निकटस्थ क्षेत्रों में कुछ ऐसे प्रेशर पॉइंट्स होते हैं जिन पर दबाव पड़ने से शरीर के कई अंगों को बेहद फायदा पहुंचता है।
आजकल बाजूबंद पहनने का प्रचलन लगभग खत्म सा है लेकिन प्राचीन काल में यह महिलाओं का प्रिय गहना हुआ करता था ।
बाजूबंद के संबंध में धार्मिक मान्यता है कि महिलाओं के बाजूबंद पहनने से परिवार के धन की रक्षा होती है।
इसके अनुसार बाजूबंद बांह के प्रेशर पॉइंट पर दबाव डालकर रक्त संचार में वृद्धि करने में मददगार होता है।
सोने के कंगन और काँच, लाख अथवा हाथी दांत की चूड़ियां अठारहवीं सदी के शुरुआती वर्षों से सुहाग की निशानी मानी जाती रही हैं ।
चूड़ी एवं कंगन विवाहित दंपत्ति के सौभाग्य एवं संपन्नता के द्योतक होते हैं।
हाथों में चूड़ियां अथवा कंगन पहनने से कलाई एवं निकटस्थ हिस्सों के प्रेशर पॉइंट्स पर दबाव पड़ता है, जिससे रक्त का परिसंचरण सुचारू रूप से होता है और परिणाम स्वरूप स्वास्थ्य लाभ होता है।
कमरबंद कमर में पहना जाने वाला सोने अथवा चांदी का वह गहना है जिससे नवयौवनाओं की कृषकाय काया और आकर्षक प्रतीत होती है।
स्त्रियों के लिए चांदी का कमरबंद पहनना शुभ एवं सौभाग्य वर्धक माना जाता है ।
वैज्ञानिक मान्यता है कि चांदी का कमरबंद पहनने से कमर पर स्थित प्रेशर पॉइंट पर दबाव पड़ता है जिससे स्त्रियों को मासिक धर्म एवं गर्भावस्था में होने वाली सभी तरह की पीड़ा में आराम मिलता है।
कर्णफूल सुहागनों एवं अविवाहित महिलाओं दोनों का प्रिय आभूषण माना जाता है। बिरली ही कोई महिला होगी जो अपने कानों में यह गहना धारण नहीं करती।
इसे पहनने से अनिष्ट शक्तियों से कानों की रक्षा होती है।
इसके अनुसार हमारी कर्णपाली (ईयर लोब ) पर ऐसे अनेक प्रेशर पॉइंट्स होते हैं जिन पर दबाव पड़ने से किडनी एवं मूत्राशय का स्वास्थ्य बना रहता है और मासिक धर्म संबंधित पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
नाक में नथ और लौंग बिना पहने सुहागिनों का शृंगार पूरा नहीं माना जाता।
हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार नथ को पार्वती माता को आदर देने की भावना के तहत पहना जाता है।
कान छिदवाने से महिला को एक्यूपंचर का लाभ प्राप्त होता है। परिणाम स्वरूप स्वास्थ संबंधित परेशानियों से राहत मिलती है।
महिलाओं द्वारा सोने अथवा चांदी की नथ अथवा लौंग नाक में धारण करने से इन धातुओं के निरंतर संपर्क से उन्हें इनके लाभप्रद गुणों का फायदा मिलने लगता है।
नव वधू के लिए लाल रंग का विवाह का जोड़ा शुभ माना जाता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार लाल रंग मंगल एवं सौभाग्य सूचक होता है।
इस दृष्टिकोण से लाल रंग भावनाओं को नियंत्रित कर स्थिरता प्रदान करता है।
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