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वीरवार व्रत कथा और पूजा की सम्पूर्ण विधि

भगवान बृहस्पति को प्रिय वीरवार (बृहस्पतिवार या गुरुवार) का व्रत अत्यंत लाभकारी एवं सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला माना जाता है। आइए आज हम  इस व्रत की सम्पूर्ण कथा एवं पूजा विधि से आपको अवगत करवाते हैं।

वीरवार व्रत कथा

 

एक धनवान दानी राजा दान-धर्म में लीन होकर पुण्य का अर्जन करता था। परन्तु उसकी पत्नी को यह सब पसंद नहीं था। वह किसी भी तरह इन सब से छुटकारा पाना चाहती थी।

एक बार जब राजा वन में शिकार के लिए गया, तब वृषस्पति भगवान साधु का रूप धारण कर भिक्षा मांगने राजा की पत्नी के पास गए। राजा की पत्नी ने उनसे कहा कि ” मुझे यह दान-धर्म कर धन लुटाना पसंद नहीं हैं। आप कुछ ऐसा करें कि यह सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से जीवन यापन करूं।”

साधु ने महिला को धन का महत्व बताया और धन को दान-धर्म इत्यादि कार्यों में लगाने को कहा। हालांकि राजा की पत्नी पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। यह देख साधु ने उसे धन से मुक्ति पाने का उपाय बताया।

साधु ने महिला को बृहस्पतिवार के दिन गोबर से घर की जमीन को पोतने, अपने बालों को पीली मिट्टी से धोने, राजा से हजामत बनाने को कहने, मांस-मदिरा आदि का सेवन करने और कपड़ों को धोबी से धुलाने की सलाह दी।

सोलह सोमवार व्रत विधि 

साधु ने सलाह देते हुए कहा कि निरंतर 7 बृहस्पतिवार ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। ऐसा कहकर साधु का रूप धारण किए बृहस्पतिदेव अंतर्धान हो गए।

उस दिन के बाद रानी ने 7 बृहस्पतिवार वैसा ही किया जैसा साधु ने उसे करने को कहा था। उसके बाद से राजा-रानी और समस्त दास-दासियाँ दो समय के भोजन के लिए भी दर-दर भटकने लगे।

कई दिनों भूख से व्याकुल हो एक दिन रानी अपनी छोटी बहन के घर गई। वहां उसने अपनी बहन को बृहस्पति भगवान का व्रत करते हुए देखा। उससे सब विधि-विधान जानकर वह घर आई और बृहस्पति भगवान का पूजन किया। जिससे उसका सब धन पहले की भांति उसे पुनः प्राप्त हो गया। इसके बाद उसने अपनी गलती का प्रायश्चित करते हुए बृहस्पति भगवान से क्षमा मांगी। इसके बाद से वह हर बृहस्पतिवार सम्पूर्ण विधि-विधान सहित भगवान बृहस्पति का पूजन कर दान-धर्म करने लगी।

वीरवार व्रत पूजन विधि 

प्रातः काल पीला वस्त्र धारण कर पीला पुष्प, चने की दाल, पीला कपड़ा, पीला चन्दन, धूप, दीप, तुलसी पत्र और केले आदि से बृहस्पति भगवान की पूजा की जाती है। पूजन के बाद बृहस्पति व्रत कथा सुनकर प्रसाद ग्रहण किया जाता है। व्रत के दिन एक समय ही भोजन करें। भजन में बिना नमक की चने की दाल खाएं। इस तरह से पूरी श्रद्धा और विश्वास से यह व्रत संपन्न करने से बृहस्पति भगवान की कृपा आप पर बनी रहेगी।

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