लोहड़ी – इस पर्व का नाम सुनते ही पंजाब की मस्ती और शोख़ी आँखों के सामने आ जाती है। रात को ढ़ोल और भांगड़े के साथ मस्ती करते हुए लोहड़ी के गीत गाना ही लोहड़ी की पहचान बनी हुई है। लेकिन क्या आप लोहड़ी का वास्तविक अर्थ और इस त्योहार के मनाए जाने का कारण जानते हैं? तो आइये बताते हैं कि लोहड़ी क्यों मनाई जाती है:
“लोहड़ी” शब्द के अर्थ के बारे में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। कुछ लोगों के मतानुसार लोहड़ी संत कबीर की पत्नी लोहनी के नाम पर मनाया जाता है। कालांतर में यह शब्द बिगड़ कर लोहड़ी बन गया।
जबकि अधिकतर लोगों का मानना है कि लोहड़ी तीन अक्षरों के संयोग से बना शब्द है। ये शब्द हैं : ल (लकड़ी) + ओह (सूखे उपले) + ड़ी (रेवड़ी) । लोहड़ी पर्व पर इन्हीं तीनों वस्तुओं के उपयोग होने के कारण यह मान्यता अधिक उपयुक्त मानी जा सकती है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार पौष मास के अंतिम दिन (मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व) सूर्य के अस्त होने के बाद लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है। सामान्य रूप से यह जनवरी मास के 12 या 13 तारीख को होता है। इस वर्ष 2019 में रविवार 13 जनवरी को लोहड़ी पंजाब, हरयाणा और दिल्ली सहित पूरे देश में हर्षोल्लाश के साथ मनाई जाएगी।
लोहड़ी पर्व को मनाए जाने का प्रमुख कारण तो पंजाब में मक्का की फसल का तैयार होना है। इस कारण इस फसल का स्वागत करने के लिए इसे अग्नि का भोग लगाया जाता है।
लेकिन वर्षों से इस त्योहार को मनाए जाने के पीछे एक कहानी का होना माना जाता है। यह कहानी दुल्ला भट्टी नाम के व्यक्ति से जुड़ी है।
दुल्ला भट्टी गाँव में रहने वाले एक वीर युवक थे, जो अकबर के समय में पंजाब इलाके में रहते थे। उस समय वो अमीरों से धन लूटकर उसे गरीबों में बाँट दिया करते थे । इसके अलावा हिन्दू लड़कियों को, जिन्हें जबर्दस्ती खरीदा-बेचा जाता था, मुक्त करवाकर उनका बिना दहेज के विवाह भी करवाते थे। इस प्रकार वे पंजाब राज्य के अलिखित नायक बन गए थे। इन्हीं दुल्ला भट्टी का आभार व्यक्त करने के लिए यह लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है, जिसमें उनके नाम के गीत भी गाये जाते हैं।
वैसे तो पंजाबी समुदाय के लिए लोहड़ी बहुत बड़ा त्योहार होता है , लेकिन जिस घर में किसी की शादी हो या घर में किसी बच्चे का जन्म हुआ हो, तब यह बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है।
इसे मनाने के लिए लोग जगह-जगह से लकड़ी इकट्ठे करके एक ढ़ेरी के रूप में उन्हें खड़ा कर देते हैं। समय आने पर इसमें अग्नि का प्रवेश करवाया जाता है जिसमें मूँगफली, रेवड़ी और मक्का के दानों का भोग लगाया जाता है। इस अग्नि के चारों ओर ढ़ोल और नाच के साथ सब लोग अपना हर्ष प्रकट करते हैं।
पंजाब के कुछ ग्रामीण इलाकों में लोहड़ी से कुछ पहले बच्चे यह गाना भी गाते दिखाई दे सकते हैं :
इस गीत में दो लड़कियां जिनका नाम सुंदर और मुंदर था, उनका जिक्र हुआ है। कहानी के अनुसार उनके कोई अपना न था, केवल एक चाचा था जो उन्हें एक जमींदार के हाथ बेचना चाहता था। लेकिन जब दुल्ला भट्टी को इस बात की खबर लगी तब उन्होनें पिता बनकर इन लड़कियों का कन्या दान किया था। लेकिन सब कुछ बहुत जल्दी में होने के कारण वह उनके विवाह में केवल सवा किलो शक्कर ही दे पाता है। लेकिन सिपाही उसे पकड़ कर दुल्ला भट्टी को फांसी दे देते हैं।
लोहड़ी के पर्व पर लोग मूँगफली और रेवड़ी अधिक खाते हैं। यह सब चीजें इस ऋतु में सेहत के लिए बहुत लाभकारी होती हैं। तिल और गुड़ न केवल स्वाद देते हैं बल्कि शरीर को अतिरिक्त ऊर्जा भी देते हैं। इससे हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। अग्नि के चारों ओर उत्साह और ऊर्जा होता है जिसका सीधा प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है और शरीर में प्रवेश करने वाले किटाणुओं का नाश हो जाता है।
तो आइये 13 जनवरी 2019 के लिए लोहड़ी मनाने की तैयारी शुरू कर दें।
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