हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष में 14 वे दिन अर्थात चतुर्दशी को रूप चतुर्थी का चतुर्दशी मनाई जाती है । इस वर्ष की बात करे तो 18 अक्टूबर को रूप चतुर्थी मनाई जाएगी। पाँच दिवसीय दीपावली पर्व के दूसरे दिन रूप नर्क चतुर्दशी, रूप चौदस , रूप चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन व्रत रखा जाता है, पूजन होता है और श्रृंगार भी किया जाता है।
यह मान्यता है कि रूप चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा करने से सुंदरता का वरदान प्राप्त होता है। इस बात का पौराणिक कथाओं में भी उल्लेख किया गया है।
मान्यता के अनुसार एक बार की बात है , हिरण्यगर्भ राज्य में एक योगि निवास करते थे। वह श्री कृष्ण के परम भक्त थे। अपने प्रभु की कृपा दृष्टि पाने के लिए उन्होंने कई वर्ष तक कठोर तप किया। वह प्रभु को पाना चाहते थे तो उन्हें समाधी लेना ही उचित मार्ग समझा। समाधी लेने के पश्चात उन्हें कई परेशानियां झेलनी पड़ी।
उनके शरीर को बहुत कष्ट हुए और उनका स्वास्थ्य और उनका स्वस्थ्य शरीर भी दुर्बल हो गया था। इसके कारण योगिराज बहुत चिंतित थे। उसी वक़्त नारदजी भ्रमण के लिए निकले थे। मुनिवर को चिंतित देखकर उन्होंने उनसे पुछ लिया कि योगिराज आपकी चिंता का क्या कारण है। तब योगी जी ने कहा में अपने प्रभु को पाने के लिए भक्ति में लीन था उसी कारण मेरे शरीर की यह दशा हुई है।
तब नारदजी ने कहा कि आपने आपका मार्ग का चुनाव तो सही किया था लेकिन अपने देह आचरण का पालन नही किया। इसी कारणवश यह सब हुआ।
फिर नारदजी ने उन्हें कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की चतुर्दशी का व्रत करने के लिए कहा। यह व्रत श्री कृष्ण जी को आराध्य मानकर रखा जिसके पश्चात उन्हें उनका पहले जैसा स्वास्थ्य पुनः प्राप्त हुआ ।
तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा और इस दिन सभी लोग यह व्रत रख कर श्री कृष्ण जी से सौंदर्य का वरदान प्राप्त करना चाहते है ।
इस दिन सुबह जल्दी उठकर अपने शरीर पट उबटन लगाकर स्नान किया जाता है । व्रत रखकर पूजा की जाती है और शाम होने पर पूरे घर को दीपक से रोशन किया जाता है।
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