धर्म और संस्कृति

राहुकाल में क्या क्या कार्य बिल्कुल नहीं करने चाहिए?

हिन्दू ज्योतिष काल के अनुसार राहु काल 90 मिनट की अवधि का वह अशुभ समय होता है जो  सप्ताह के सातों दिन सूर्योदय से सूर्यास्त के मध्य अलग अलग समय में शुरू होता है।  

आइये, अब हम जयपुर स्थित ज्योतिष परिषद एवं शोध संस्थान निर्देशक ज्योतिषाचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़ से राहुकाल के संदर्भ में प्रचलित कथा सुनते हैं।

पंडितजी ने हमें बताया  कि समुद्र मंथन के समय जब अमृत कलश लेकर भगवान धनवंतरी प्रकट हुए, तो देवों और दानवों में सर्वप्रथम अमृतपान करने को लेकर विवाद छिड़ गया। अमृत प्राप्ति के प्रति इनके बीच बढ़ती कलह को अमंगल का संकेत मानते हुए धनवंतरी जी ने भगवान विष्णु का स्मरण कर देवों और दानवों के मध्य हो रहे झगड़े को समाप्त करने की प्रार्थना की। ज्योतिषाचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़  ने बताया कि दानव अमृतपान करके कहीं अमर न हो जाएं, यह सोचकर सृष्टि की रक्षा के प्रति नारायण की भी चिंता बढ़ने लगी और परिस्थिति को अति संवेदनशील मानते हुए श्रीविष्णु ने विश्वमोहिनी रूप धारण किया। उन्होंने दानवों को मोहित करके स्वयं के द्वारा देवों और दानवों में अमृत का बराबर-बराबर बंटवारा करने का प्रस्ताव रखा, जिसे दैत्यों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। दोनों पक्ष पंक्तिबद्ध होकर अलग-अलग बैठ गए।

दैत्यों का सेनापति राहु बहुत बुद्धिमान था। वह वेश बदलकर देवताओं की पंक्ति में जा बैठा।  जैसे ही राहु ने अमृत पान किया, सूर्य और चन्द्र ने उसे पहचान लिया, जिसके परिणाम स्वरूप नारायण ने सुदर्शन चक्र से राहु का गला काट दिया। अमृत की कुछ बूंदें राहु के गले से नीचे उतर चुकी थीं और वो अमरत्व प्राप्त कर चुके थे।

राहु के सर कटने के काल को ‘राहुकाल’ कहा जाता है, जो अशुभ माना जाता है। तभी से इस काल को देव-दानव दोनों ही अशुभ मानते हैं। इस काल में आरम्भ किए गए कार्य-व्यापार में काफी दिक्कतों के बाद कामयाबी मिलती है। अतः इस काल में कोई भी नया कार्य आरम्भ करने से बचना चाहिए।

कौन हैं राहु-केतु?

राहु के शरीर के सिर के भाग को राहु और गले से नीचे के भाग को केतु कहा गया। राहु के रक्त की जो बूँदें पृथ्वी पर गिरीं, वो प्याज बनीं तथा केतु के रक्त की बूंदों से लहसुन की उत्पत्ति हुई। चूँकि प्याज-लहसुन में इनके अमृतमय रक्त की बूँदें मिल चुकीं थी, इसलिए ये भी अमृततुल्य माने गए और इन दोनों खाद्य पदार्थों में अनेकों रोंगों को शमन करने की शक्ति आ गई, जिसे आज के वैज्ञानिक युग में भी हर कोई स्वीकार करता है।

सप्ताह के विभिन्न दिनों में राहू काल का समय:

राहु काल प्रत्येक वार को अलग अलग समय में प्रारम्भ होता है। यह काल कभी प्रातः काल, कभी दोपहर, तो कभी सांध्य काल के समय आता है। यह सदैव सूर्यास्त के पहले ही होता है।

  • रविवार : सायं 4:30 से 6:00 बजे तक।
  • सोमवार : प्रात:काल 7:30 से 9:00 बजे तक।
  • मंगलवार : अपराह्न 3:00 से 4:30 बजे तक।
  • बुधवार : दोपहर 12:00 से 1:30 बजे तक।
  • गुरुवार : दोपहर 1:30 से 3:00 बजे तक।
  • शुक्रवार : प्रात:10:30 से दोपहर 12:00 तक।
  • शनिवार : प्रात: 9:00 से 10:30 बजे तक।

राहु काल में कौन-कौन से कार्य नहीं करने चाहिए, जानिए… 

ज्योतिषाचार्य पंडित पुरूषोत्तम गौड़ के अनुसार  राहु काल को उचित समय नही माना गया है। 

राहु तामसी असुर है। राहु का कोई सिर नहीं है और वह आठ काले घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर सवार हैं। राहु काल का विशेष विचार रविवार, मंगलवार तथा शनिवार को आवश्यक माना गया हैं। बाकी दिनों में राहु काल का विशेष प्रभाव नहीं होता है।

ज्योतिषाचार्य पंडित पुरुषोत्तम गौड़ के अनुसार राहु काल की अवधि में निम्न कार्य वर्जित माने गए हैं। 

  1. राहु काल में नए व्यवसाय का शुभारंभ नहीं करना चाहिए।
  2.  राहु काल में विवाह, सगाई या गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य नहीं करते हैं।
  3. इस काल में किसी वस्तु की खरीदी-बिक्री करने से भी बचना चाहिए क्योंकि इससे हानि भी हो सकती है।
  4. इस काल में शुरू किया गया कोई भी शुभ कार्य बिना बाधा के पूरा नहीं होता, इसलिए वह  कार्य न ही करें तो बेहतर है।
  5. राहु काल के दौरान अग्नि, यात्रा,  लिखा पढ़ी व बहीखातों का काम नहीं करना चाहिए। 
  6. राहु काल में वाहन, मकान, मोबाइल, कम्प्यूटर, टेलीविजन, आभूषण या अन्य कोई भी बहुमूल्य वस्तु नहीं खरीदनी चाहिए।
  7. इस काल में धार्मिक कार्य, यज्ञ आदि नहीं किए जाते हैं।
  8. इस काल में किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए यात्रा भी नहीं करते हैं।
Renu Gupta

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