जब बात पारंपरिक भारतीय पहनावे की आती है, तो महेश्वरी साड़ी का एक खास स्थान है। महेश्वरी साड़ी, यानी कि भारतीय हथकरघा शिल्प का एक नायाब नमूना, जो कि मध्य प्रदेश राज्य से आता है। मध्य प्रदेश का महेश्वर नामक शहर इस साड़ी की जन्मस्थली रहा है।
जीवंत, चटकीले रंग और धारीदार या चेकनुमा बॉर्डर के कारण पूरे भारत में ख्याति प्राप्त है महेश्वरी साड़ी को। महेश्वरी साड़ी को बुनने के लिए 300 काउंट के अत्यंत बारीक सूत का इस्तेमाल होता है।
शुरुआत में तो यह साड़ी केवल रेशमी कपड़े से ही बनायीं जाती थी। पर जैसे जैसे तकनीक में सुधार हुआ और बाज़ार में मांग बढ़ने लगी वैसे वैसे उच्च गुणवत्ता वाली सूती महेश्वरी साड़ियाँ भी बनायी जाने लगी।
इतिहास के झरोखे से
महेश्वरी साड़ी का इतिहास बड़ा ही दिलचस्प है। नर्मदा नदी के किनारे बसे इस महेश्वर नगर को होल्कर वंश की शासक देवी अहिल्याबाई ने अपनी राजधानी बनाया था (इससे पूर्व राजधानी इंदौर थी)।
कहा जाता है कि एक बार रानी अहिल्याबाई के महल में कुछ राजसी मेहमान पधारने वाले थे। उन्हें उपहार स्वरुप साड़ी भेंट करने के लिए देवी अहिल्याबाई ने विशेष बुनकरों को सूरत, मालवा, हैदराबाद आदि शहरों से बुलवाया। देवी अहिल्याबाई ने इस साड़ी की डिजाईन में गहरी दिलचस्पी दिखाई और इसे तैयार करने में उनका विशेष योगदान रहा। इसी कारणवस इन साड़ियों का नामकरण अहिल्याबाई की राजधानी महेश्वर के नाम पर हो गया।
लोकप्रियता के शिखर पर हैं महेश्वरी साड़ियाँ
महेश्वरी साड़ी शुरुआत में केवल राजा रजवाड़ों के परिवारों तक ही सीमित थी। धीरे- धीरे ये न केवल भारत में, बल्कि विश्व पटल पर भी अपनी खुबसूरती की छाप छोड़ने लगी।
आजादी के बाद जब राजा-महाराजा का दौर ख़त्म हुआ, तो महेश्वरी साड़ी की मांग भी गिरने लगी। साथ ही, इस कला का भी पतन होने लगा। १९७८ में होलकर परिवार के वंशजों ने इस कला को फिर से पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया। इसके लिए उन्होंने एक NGO की भी स्थापना की। इस NGO की बदौलत महेश्वरी साड़ी को फिर से अपनी खोयी पहचान मिली और वो राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में फिर से छाने लगी।
मध्यप्रदेश तो इन साड़ियों का जन्म स्थल है ही पर मध्यप्रदेश के अलावा महाराष्ट्र में भी ये साड़ियां बहुत लोकप्रिय हैं। कोल्हापुर और नागपुर में इन साड़ियों का बड़ा थोक बाज़ार है। वहां विवाह के रस्म के दौरान दुल्हन को अनिवार्य रूप से यह साड़ी पहनाई जाती है। इंदौर, बड़ौदा और ग्वालियर के राज परिवारों में तो आज भी ये साड़ियाँ राजशाही का प्रतीक मानी जाती हैं।
शाम दावे, इका जैसे फैशन डिज़ाइनरों ने भी महेश्वरी साड़ी को फैशन स्टेटमेंट बनाने में मत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
विशेषताएं और विविधताएं
पहले पहल इन्हें बनाने में केवल रेशम का इस्तेमाल होता था। अब इन्हें बनाने के लिए कॉटन, रेशम और ऊन का भी इस्तेमाल होता है।
महेश्वरी साड़ी की डिजाईन का प्रेरणा स्रोत महेश्वर नगर का स्थानीय वास्तु रहा है। महेश्वर के किले, महल, मंदिर आदि की नक्काशी को बुनकरों ने बड़े ही खुबसूरत अंदाज़ में धागों में ढाला है। फलस्वरूप कुछ प्रमुख डिजाईन जो महेश्वरी साड़ी में आम तौर पर देखने को मिलती हैं, वो यूँ हैं:
- ईंट डिजाईन
- हीरा डिजाईन
- चटाई डिजाईन
- चमेली का फूल डिजाईन
महेश्वरी साड़ी हमेशा प्लेन होती है जबकि इसकी बॉर्डर पर फूल, पत्ती, बूटी आदि की सुन्दर डिजाईन होती है। पल्लू पर हमेशा दो या तीन रंग की मोटी या पतली धारियां होती हैं। इन साड़ियों की एक विशेषता इसके पल्लू पर की जाने वाली पाँच धारियों की डिजाइन – 2 श्वेत धारियाँ और 3 रंगीन धारियाँ (रंगीन-श्वेत-रंगीन-श्वेत-रंगीन)।
➡ उत्तर में बनारसी तो दक्षिण में ?
आपको बॉर्डर पर हंस, बेल फूल, जय फूल, मयूर, चाँद, तारे आदि कई रुपंकानों का सुन्दर चित्रण भी देखने को मिलेगा।
माहेश्वरी साड़ियों को पारंपरिक तौर पर प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता था, पर अब औद्योगीकरण के दौर में इन्हें तैयार करने के लिए कृत्रिम रंगों का ही प्रयोग होता है। बाज़ार की मांग को देखते हुए अब ये कई रंगों में बनायीं जाने लगी हैं। प्राकृतिक रंगों के इस्तेमाल में एक दिक्कत यह भी है कि इसमें रंगों के विकल्प गिने चुने ही मिलते हैं। जहाँ पहले इनके निर्माण में सुनहरे रेशमी धागों का इस्तेमाल होता था, वहीँ अब उनकी जगह पर ताम्बे के आवरण युक्त कृत्रिम धागों का प्रयोग किया जाता है।
जहाँ तक रंगों की बात है, तो आपको ये साड़ियाँ किसी भी रंग में मिल जाती हैं। रानी, अंगूरी, बैंगनी, गहरा भूरा, सुनहरा और गहरा नीला आदि महेश्वरी साड़ी खरीदते वक़्त महिलाओं के पसंदीदा रंग होते हैं।
भारत एक ग्रीष्म-ऋतु प्रधान देश है। ऐसे मौसम में कांजीवरम या बनारसी साड़ियाँ पहनने में आरामदायक नहीं होती, लेकिन माहेश्वरी साड़ियाँ हल्की होती हैं, और बिलकुल हमारे मौसम के अनुकूल हैं।
महेश्वरी साड़ियों के विभिन्न प्रकार:
1) चंद्रकला
2) बैंगनी चंद्रकला
चंद्रकला और बैंगनी चंद्रकला, यह अधिकतर प्लेन डिजाइन की होती हैं। जबकि नीचे दिये हुए तीन प्रकार की साड़ियों में आपको धारियाँ दिखेंगी (चेक्क्स या स्ट्राइप्स)
3) चंद्रतारा
4) बेली
5) परबी
रख- रखाव
महेश्वरी साड़ी से जुड़ी सारी जानकारी तो हम आपको दे ही चुके हैं। तो चलते-चलते इसके रख- रखाव से जुडी जानकारी भी आपको दे देते हैं।
- २-३ बार सादे पानी से धोने के बाद ही अपनी महेश्वरी साड़ी को डिटर्जेंट से धोएं। धोने के लिए सिर्फ माइल्ड डिटर्जेंट का ही इस्तेमाल करें।
- यदि साड़ी पर ज़ड़ी का काम है तो उसे केवल ड्राई क्लीन ही करवाएं।
- अपनी महेश्वरी साड़ी को हमेशा छांव में ही सुखाएं।
- साड़ी को ज्यादा देर तक पानी में भिगो कर न रखें।
- साड़ी को हमेशा हलके हाथों से धोएं। इसे जोड़ से न रगड़ें न निचोड़ें।
- प्रेस करते वक़्त ज्यादा गरम आयरन का इस्तेमाल न करें।
- साड़ी को हैंगर पर लटका कर अलमारी में रखें, समेट कर नहीं।
खरीददारी
महेश्वरी साड़ी थोड़ी महँगी होती है। एक अच्छी साड़ी २००० रुपये से नीचे नहीं मिलती। पर यह एक अच्छा निवेश भी साबित हो सकती है। यह हाथ से बुनी पारंपरिक साड़ी है, इसलिए यह कभी भी आउट ऑफ़ फैशन नहीं हो सकती।
यह बहुत हलकी और हवादार होती है। भारतीय गर्मियों के लिए भी उप्युक्त है। यह महिला को सौम्य और मनोहर लुक देती है।
जो महिलायें पारंपरिक भारतीय साड़ियाँ पहनना पसंद करती हैं उनके लिए तो ये वरदान हैं। भारी-भरकम और भड़कीली कान्चिवरम और बनारसी साड़ी हर महिला नहीं पसंद करती। कान्चिवरम और बनारसी साड़ी शादी- ब्याह आदि को छोड़ कर हर मौके पर पहनी भी नहीं जा सकती। इसके विपरीत महेश्वरी को आप बर्थडे पार्टी, ऑफिस गेट टूगेदर, सगाई, पर्व- त्यौहार आदि हर मौके पर बड़ी आसानी से पहन सकती हैं।
यदि यह लेख पढने के बाद आप महेश्वरी साड़ी खरीदने की सोच रही हैं तो बता दें इसके लिए आपको मध्य प्रदेश जाने की ज़रूरत नहीं। आपको बेहतरीन महेश्वरी साड़ियाँ अपने ही शहर में साड़ी के किसी अच्छे शोरूम में या फिर ऑन लाइन साइट्स पर आसानी से मिल जाएँगी!
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