महर्षि पतंजलि का परिचय :
पतंजलि के जन्म के समय के विषय में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वानों के मतानुसार ये काशी में दूसरी शताब्दी में मौजूद थे। किम्वदंती के अनुसार इनका जन्म गोनार्द (कश्मीर) अथवा (गोंडा) में उत्तर प्रदेश में माना जाता है। बाद में ये उत्तर प्रदेश के काशी के नगरकूप में निवास करने लगे थे।
इनकी माता का नाम गोणिका था। इनके पिता के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। पतंजलि के जन्म के विषय में ऐसी मान्यता है कि स्वयं अपनी माता के अंजुली के जल के सहारे धरती पर नाग से बालक के रूप में प्रकट हुए थे। माता गोणिका के अंजुली से पतन होने के कारण उन्होंने इनका नाम पतंजलि रखा। इनको शेषनाग का अवतार माना जाता है।
महर्षि पतंजलि का काल :
इनका काल आज से करीब 200 ई. पूर्व माना जाता है। पतंजलि के ग्रंथों में लिखे उल्लेख से उनके काल का अंदाजा लगाया जाता है कि संभवतः राजा पुष्यमित्र शुंग के शासन काल 195 से 142 ई. पूर्व इनकी उपस्थिति थी।
पतंजलि कौन थे :
पतंजलि एक प्रख्यात चिकित्सक और रसायन शास्त्र के आचार्य थे। रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अभ्रक, धातुयोग और लौह्शास्त्र का परिचय कराने का श्रेय पतंजलि को जाता है। राजा भोज ने महर्षि पतंजलि को तन के साथ हीं मन के चिकित्सक की उपाधि से विभूषित किया था। इनको आयुर्वैदिक ग्रन्थ चरक संहिता का जनक माना जाता है।
इनको योगशास्त्र के जन्मदाता की उपाधि भी दी जाती हैं। जो हिन्दू धर्म के छह दर्शनों में से एक है। इन्होंने योग के 195 सूत्रों को स्थापित किया। जो योग दर्शन के आधार स्तंभ हैं। इन सूत्रों के पढ़ने की क्रिया को भाष्य कहा जाता है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की महत्ता का प्रतिपादन किया है। जिसका जीवन को स्वस्थ रखने में विशेष महत्त्व है। इनके नाम इस प्रकार हैं –
यम
नियम
आसन
प्राणायाम
ध्यान
धारणा
प्रत्याहार
समाधि
इनमें से वर्तमान समय में केवल आसन, प्राणायाम औए ध्यान हीं प्रचलन में हैं। इनके प्रयासों के कारण हीं योगशास्त्र किसी एक धर्म का न होकर सभी धर्म और जाति के शास्त्र के रूप में प्रचलित है।
पतंजलि द्वारा रचित ग्रन्थ :
भारतीय दर्शन शास्त्र के धरोहर में इनके लिखे तीन ग्रंथों का वर्णन मिलता है। जिनके नाम हैं – योगसूत्र , आयुर्वेद पर ग्रन्थ एवं अष्टाध्यायी पर भाष्य। पतंजलि ने परिणि द्वारा रचित अष्टाध्यायी पर टिका लिखा जिसे महाभाष्य के नाम से जाना जाता है। महाभाष्य एक व्याकरण का ग्रन्थ है। जिसे वर्तमान समाज का विश्वकोश भी कहा जाता है। महाभाष्य द्वारा व्याकरण के जटिलता के रहस्य को सुलझाने में मदद मिलती है। इस ग्रन्थ के माध्यम से शब्द की व्यापकता पर प्रकाश डाल कर महर्षि पतंजलि ने स्फोटवाद नामक एक नविन सिद्धांत का प्रतिपादन किया है।
योगसूत्र की रचना महर्षि पतंजलि ने आज से लगभग 200 ई. पूर्व लिखा था। इस ग्रन्थ का अनुवाद विभिन्न देशी एवं विदेशी भाषाओं किया जा चुका है। भारतीय साहित्य के देन योगशास्त्र आज फिर से अपनी चरम पर है। अज इसका प्रचलन शरीर को स्वस्थ रखने के साथ हीं दिमाग को भी शांत करने के लिए किया जा रहा है।
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