मनसा देवी को आदिदेव शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। मनसा देवी मंदिर के प्रकट होने का उल्लेख शिव पुराण में मिलता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब शिवजी माता सती के शव को लेकर तांडव कर रहे थे, तब सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए भगवन श्री हरि विष्णु ने माता सती के शव को छिन्न- भिन्न कर दिया। तब जिस-जिस स्थान पर देवी के शरीर के अंग गिरे थे उन स्थानों पर शक्तिपीठ के रूप पूजा की जाने लगी।
हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा में सती माता मस्तक गिरने के कारण ब्र्रिजेश्वरी देवी शक्तिपीठ, ज्वालामुखी पर जिह्वा गिरने के कारण ज्वालामुखी शक्तिपीठ, नयन गिरने से नयना देवी शक्तिपीठ, मन का भाग गिरने से छिन्न मस्तिका चिंतपूर्णी देवा मंदिर, त्रिपुरा में बाईं जंघा गिरने से जयंती देवी मंदिर, योनि गिरने से असम का कामाख्या मंदिर, कलकत्ते में दायें पैर की उँगलियाँ गिरने से काली मंदिर, शिवालिक पर्वत के पास सहारनपुर में शीश गिरने से शकुम्भरी देवी मंदिर, कुरुक्षेत्र में गुल्फ (टखना) गिरने से भद्रकाली शक्तिपीठ एवं शिवालिक पर्वतमालाओं पर देवी के मस्तिष्क का अग्र भाग गिरने से मनसा देवी शक्तिपीठ मंदिर का निर्माण हुआ।
मनसा देवी का प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार से 3 किलोमीटर दूर शिवालिक पर्वत श्रृंखला के ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ मनसा देवी की शक्तिपीठ में स्थापित मूर्ति भक्तो की सभी दुखों को हरने वाली मानी जाती हैं।
मनसा देवी को आदिशक्ति दुर्गा देवी का स्वरुप माना जाता है और नाम के अनुरूप हीं ये देवी मनोकामना पूर्ण करने वाली मानी जाती हैं। यहाँ एक वृक्ष पर मनोकामना पूर्ण होने के लिए सूत्र बाँधे जाने की मान्यता है। किन्तु मनोकामना पूर्ण होने पर सूत्र खोलना आवश्यक होता है।
हरिद्वार स्थित यंत्र त्रिकोण में देवी के तीन मंदिरों में मनसा देवी मंदिर का महत्त्व सबसे ज्यादा है। देवी माता का यह रूप तीन सिर और पाँच भुजाओं वाला है। नव दुर्गा शक्तियों में मनसा देवी को दशमी शक्ति माना जाता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार मनसा देवी को शिव की मानस पुत्री भी कहा जाता है। किन्तु कुछ धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मनसा देवी का जन्म कश्यप के मस्तक से हुआ है। कुछ धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि नाग वासुकी के बहन की इच्छा करने पर शिव जी ने उन्हें मनसा देवी को भेंट स्वरुप दिया था। किन्तु वासुकी देवी के तेज को सह नहीं पाया और नागलोक में तपस्वी हलाहल को मनसा देवी के पोषण के लिए दे आया।
मनसा देवी की पूजा नागमाता के रूप में आदिवासियों द्वारा की जाती थी। धीरे -धीरे इन्हें अन्य देवियों के साथ मंदिरों में पूजा जाने लगा और 14वीं सदी के बाद मनसा देवी को शिव परिवार के साथ मंदिरों में पूजा जाने लगा।
बंगाल क्षेत्र में मनसा देवी की पूजा विष की देवी के रूप में की जाती थी। मनसा देवी की मूर्ति को सर्पों से आच्छादित कमल पर बैठी हुई एवं सात नागों को इनकी रक्षा हेतु सदैव साथ दिखाए जाते हैं। मान्यता है कि इनके सात नामों जरत्कारू, जगतगौरी, मनसा, सियोगिनी, नाग्भागिनी, वैष्णवी,शैवी, नागेश्वरी, जगतकारुप्रिया, अस्तिकमाता और विषहरी का जाप करने से सर्प का भय नहीं रहता है।
सर्प/नाग/साँप से जुड़े हिन्दू समाज के विभिन्न विश्वास और धारणाएं
दतिया का पीताम्बरा पीठ: जहां दिन में ३ बार रूप बदलती हैं देवी
प्रातिक्रिया दे