भारतीय संस्कृति में लगभग प्रति माह कोई न कोई त्योहार होते हैं। इन त्योहारों की शुरुआत जनवरी माह से शुरू होती है (देखिये जनवरी 2019 के हिन्दू त्योहारों की सूची) । अँग्रेजी कैलेंडर का जनवरी माह, विक्रम संवत के अनुसार पौष मास कहलाता है। इस माह में जब सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता हुआ उत्तरायन दिशा में प्रवेश करता है तब तक इस पर्व को संक्रांति कहा जाता है।
मकर संक्रांति क्या है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष को दो भागों में बाँटा गया है। प्रथम भाग उत्तरायण व द्वितीय भाग दक्षिनायण कहा जाता है। उत्तरायन वह समय होता है जब सूर्य की स्थिति बदल जाती है और वह थोड़ा उत्तर दिशा की ओर झुक जाता है। इस कारण पृथ्वी पर आने वाली सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं जिससे उनका प्रकृति और मानव जीवन पर प्रभाव भी अच्छा होता है। इसके बाद से दिन लंबे और रातें छोटी होने लगतीं हैं।
इसी प्रकार वर्ष का दूसरा भाग दक्षिणायन है। इसके अनुसार सूर्य की दिशा बदल कर दक्षिण की ओर ढल जाता है।
सामान्य रूप से सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने को संक्रांति कहा जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस प्रकार की सूर्य संक्रांति की संख्या 12 है। लेकिन धार्मिक रूप से चार संक्रांति मेष, तुला, कर्क और मकर का अधिक महत्व माना जाता है। इस प्रकार सूर्य के कर्क राशि से मकर राशि में प्रवेश करने की तिथि को मकर संक्रांति कहा जाता है।
मकर संक्रांति का महत्व:
धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टि से मकर संक्रांति का महत्व बहुत अधिक माना गया है।
वैज्ञानिक महत्व:
खगोलीय दृष्टि से मकर संक्रांति के बाद शीत ऋतु का उतार शुरू हो जाता है। इसके बाद मौसम में गर्मी और दिनों के लंबे होने के कारण प्रकृति में नव जीवन का संचार होने लगता है। सूर्य की किरणें पृथ्वी पर सीधे होने के कारण शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार होने लगता है। इसके अतिरिक्त भारत एक कृषि प्रधान देश है।
इसलिए यहाँ के हर पर्व किसी न किसी फसल के साथ भी जुड़े रहते हैं। इस समय मक्का, चावल, दलहन, गुड, तिलहन और मूँगफली की फसल पक कर तैयार हो जाती है। इस प्रकार पकी फसल के आनंद स्वरूप भी मकर संक्रांति का पर्व पूरे भारत में विभिन्न नामों से मनाया जाता है।
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धार्मिक महत्व:
कहा जाता है कि मकर संक्रांति के पर्व पर ही महात्मा भीष्म ने अपनी देह का त्याग किया था। यही वह दिन है जब राजा भागीरथ, गंगा को स्वर्ग से अपने पितरों के तर्पण के लिए स्वर्ग से उतार कर लाये थे। भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि इस दिन के बाद देह त्याग करने वाली आत्माएँ जन्म-मरण के चक्र से मोक्ष प्राप्त कर लेती हैं। क्योंकि दक्षिणायन में देह त्याग होने पर आत्मा को अंधकार में निवास करना होता है।
मकर संक्रांति कैसे मनाते हैं?
जनवरी के तेरह, चौदह या पंद्रह (उस वर्ष के पंचांग के अनुसार) मकर संक्रांति के दिन जप, तप, स्नान व तर्पण आदि क्रियाओं का महत्व माना जाता है। वर्ष के शुरू होने वाले कुम्भ भी इसी दिन से शुरू होते हैं। विभिन्न राज्यों में मकर संक्रांति को मनाने के रूप इस प्रकार हैं:
उत्तरी भारत:
भारत के उत्तरी हिस्से में मकर संक्रांति के दिन लोग सूर्य की पूजा करके दाल-चावल की खिचड़ी और गुड का दान करते हैं। पंजाब में संक्रांति के एक दिन पूर्व लोहड़ी के रूप में यह पर्व मनाया जाता है।
मध्य भारत:
भारत के दक्षिणी भाग अथार्थ महाराष्ट्र में इस पर्व को लोग गज़क और तिल के लड्डुओं के आदान-प्रदान के द्वारा मनाते हैं।
पश्चमी भारत:
भारत के पश्चमी हिस्से जैसे गुजरात और राजस्थान में मकर संक्रांति के दिन पतंगे उड़ाई जाती हैं। इस दिन इन राज्यों में विभिन्न प्रकार के पतंगोत्सव का आयोजन किया जाता है।
दक्षिणी भारत:
दक्षिणी भारत के आन्ध्र्प्रादेश और तमिलनाडु में यह पर्व पोंगल के नाम से तीन दिन तक मनाया जाता है। इसमें घी में दाल-चावल की खिचड़ी पकाकर खाई जाती है।
मकर संक्रांति 2019:
नाम कोई भी हो, सूर्य के प्रकाश का और नयी फसल का स्वागत करने का नाम ही मकर संक्रांति कहा जा सकता है। ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद उपाध्याय के मतनुसार वर्ष 2019 में मकर संक्रांति की तिथि का आरंभ सोमवार 14 जनवरी के मध्य से शुरू हो जाएगा और 15 जनवरी मंगलवार को 12 बजे से पुण्यकल है। इस प्रकार उनका मानना है कि मंगलवार 15 जनवरी को ही संक्रांति का पर्व माना जाएगा।
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