भारत में सामान्य रूप से साल में चार नवरात्रि मनाई जाती हैं। लेकिन चैत्र और अश्विन मास में मनाए जाने वाले नवरात्रों का अधिक महत्व माना जाता है। अश्विन मास की नवरात्रि को शरद नवरात्रि भी कहा जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में हर दिन का अपना एक अलग और विशेष महत्व होता है। इस अवसर पर प्रतिदिन की जाने वाली पूजन की विधि इस प्रकार हो सकती है:
नवरात्रि की पहली रात्रि को माँ शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस दिन माँ की तस्वीर के आगे निम्न मंत्रों से षोडशोपचार पूजा करें:
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥
इसके लिए मौली, चन्दन, हल्दी, सिंदूर आदि के साथ फूलों का हार, गंगाजल, पान के पत्ते, फल और धूपदीप से माता की पूजा करें। प्रसाद के लिए कोई भी फल ले लें। नवरात्रि पूजा सामग्री पर विस्तृत जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
दूसरी रात को देवी ब्रहंचारिणी के चित्र को पंचामृत से स्नान करवा के पवित्र करें और उसके बाद मंत्रों का जाप करते हुए उन्हें सफ़ेद फूल अर्पण करें। इसके साथ इन मंत्रों से देवी की पूजा करें :
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
तृतीय रात्रि को माँ चंद्रघंटा की पूजा करने के लिए सप्तशती मंत्रों का जाप किया जाता है, जो इस प्रकार है:
या देवी सर्वभूतेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
पूजा का समापन दूध से बनी मिठाइयाँ, खीर, मावे की मिठाई, दूध और शहद आदि के प्रसाद से होता है।
नवरात्रि की चौथी रात कुष्मांडा देवी की पूजा होती है जो आठ भुजा धारी अष्टभुजा के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। इनकी पूजा करने के लिए साधक हरे रंग के कपड़े पहनकर निम्न कुंजिका स्त्रोत का पाठ करते:
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे ॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
पांचवे दिन वात्सल्य की मूर्ति देवी स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इस दिन माँ की पूजा से पहले उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती है। इस दिन देवी को लाल फूल के साथ चन्दन और कुमकुम अर्पित करते हुए इन मंत्रों के साथ पूजा करें:
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
नवरात्रि की छठी रात को माँ कात्यायनी और भगवान शिव की पूजा की जाती है। इस दिन साधक पूजा का आरंभ दुर्गा सप्तशती के 11वें अध्याय के पढ़ने से करते हैं। माँ के प्रिय रंग लाल होने के कारण साधक लाल वस्त्र पहनकर इन मंत्रों के साथ पूजा करें:
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि॥
इस दिन दुर्गा के कालरात्रि रूप की पूजा की जाती है। माँ का यह रूप रक्तबीज नाम के असुर का वध करने के लिए आया था। इसलिए इस रूप की पूजा से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं। इस दिन साधक नीला वस्त्र पहनकर निम्न मंत्रों से माँ की पूजा करते हैं:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे।
नवरात्रि के आठवें दिन दुर्गा के गौरी रूप की पूजा की जाती है। साधक इस दिन पीले वस्त्र पहन कर पूजा करते समय माँ को सफ़ेद या पीला फूल अर्पित करते हैं। इस दिन पूजा के लिए इन मंत्रों का जाप किया जाता है:
या देवी सर्वभूतेषु मां महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमस्तस्ये नमो नम॥
यह दिन दुर्गष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग इस दिन अपने नौ दिन रखे जाने वाले व्रत का भी समापन करते हैं।
नवरात्रि के अंतिम दिन देवी सिद्धिरात्रि पूजी जाती हैं। हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए साधक इनकी पूजा करने के लिए बैंगनी रंग के वस्त्र पहनकर निम्न मंत्रों के साथ पूजा करते हैं:
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
यह दिन नवरात्रि की पूजा का समापन दिवस होता है। इस दिन को महानवमी के नाम से भी जाना जाता है। अधिकतर लोग इस दिन देवी दुर्गा के नौ रूप के रूप में छोटी कन्याओं को भी जिमाते हैं और उन्हें उपहार देते हैं।
सम्पूर्ण नवरात्रि शक्ति स्वरूप माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा विभिन्न मंत्रों के जाप के साथ की जाती है। इन दिनों दुर्गा सप्तशती का पढ़ना भी बहुत महत्व रखता है। सम्पूर्ण भारत में यह पर्व पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
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