Most-Popular

सम्पूर्ण दुर्गा चालीसा और अर्थ

नवरात्री अब कुछ ही दिन दूर रह गई है , फिर शुरू हो जायेगा माँ के भक्तो की भक्ति का सिलसिला। कोई व्रत रख कर माँ को प्रसन्न करना चाहेगा तो कोई गरबा की धुन में रंग कर नृत्य द्वारा माँ का आशीर्वाद पायेगा , तो कोई माँ की पूजा सेवा का लाभ प्राप्त करेगा।

नवदुर्गा पूजन की बात अगर होती है तो सबसे पहले दुर्गा चालीसा का विचार मन में आता है। यह आर्टिकल दुर्गा चालीसा को समर्पित है जिसमे आपको न केवल सम्पूर्ण दुर्गा चालीसा को सम्मिलित किया गया है अपितु उसके अर्थ को भी समझाया गया है। जिससे अगली आप जब भी दुर्गा चालीसा का पाठ करे तो भक्ति का भाव ह्रदय के भीतर तक पहुंचे।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
अर्थ: माँ को प्रणाम जो सभी को सुख देती है। उस अम्बे माँ को प्रणाम जो सब के दुखों का हरण कर लेती है।

निराकार है ज्योति तुम्हारी। तिहूँ लोक फैली उजियारी॥
अर्थ: हे माँ! आपकी जो ज्योत है वह निराकार अर्थात सिमित न होकर असीम है । यह तीनों जगत में चारों और फैली हुई है

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
अर्थ: चंद्र के समान चमकने वाला आपका मुख बहुत ही विशाल है। आपके नयन लाल और आपकी भौहें विकराल है

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे॥
तात्पर्य: यह रूप माँ को बहुत अधिक जचता है और जो आपके दर्शन कर लेता है उसे परम सुख प्राप्त होता है।

तुम संसार शक्ति लय कीना। पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अर्थार्थ: इस संसार में जितनी भी शक्तिया है वह आपके अंदर विराजमान है। आप इस संसार का पालन करने हेतु धन और अन्न दोनों प्रदान करती है।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
तात्पर्य: अन्नपूर्णा होकर आप इस सरे जग को पालती है। आप अत्यंत सुन्दर है।

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
तात्पर्य: जब प्रलय होता है तो आप सबका नाश करती है। आप गौरी रूप है और शिव जी को प्रिय भी।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
योगी और शिव आपका ही गुणगान करते है। ब्रह्मा और विष्णु आपका ही ध्यान करते है

रूप सरस्वती को तुम धारा। दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा॥
अर्थ: आप ही ने सरस्वती का रूप धारण किया था। आप ही ऋषि और मुनियो के उद्धार के लिए उन्हें सद बुद्धि देती है।

धरा रूप नरसिंह को अम्बा। प्रगट भईं फाड़कर खम्बा॥
आप खम्बे को चीरते हुए नरसिंह रूप में प्रकट हुई थी।

रक्षा कर प्रह्लाद बचायो। हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
अर्थार्थ: हिरण्यकश्यप को स्वर्ग भेज कर अपने ही प्रह्लाद के प्राणो की रक्षा की।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं॥
आप ही ने लक्ष्मी स्वरूप धारण किया हुआ है और नारायण के अंग में समाई हुई है

 

क्षीरसिन्धु में करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन ॥
तात्पर्य: सिंधु समुद्र में भी आप ही विराजमान है। आप सगार है दया का , मेरे मन की आस को पूर्ण करे।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी॥
हिंगलाज की भवानी माँ आप ही है। आपकी महिमा अनंत है जिसकी व्याख्या शब्दों में नहीं की जा सकती है।

मातंगी अरु धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
धूमवती और मातंगी माँ भी आप ही है। आप बगला और भुवनेश्वरी माँ है जो सभी को सुख देती है।

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
श्री भैरव और सारे जग की तारणहरिणी आप ही है। आप छिन्नमाता का स्वरुप है जो सब के दुखो को हल कर देती है।

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी॥
आप माँ भवानी है और सिंह पर सवार होती है। आपके अगुवाई करने के लिए हनुमान आपके आगे चलते है।

कर में खप्पर-खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजे॥
आप के कर कमलो में तलवार तथा ख़प्पर विराजमान रहता है जिसे देख कर समय भी दर के भाग जाता है।

सोहै अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
अस्त्र और त्रिशूल आपके पास होते है। जिससे शत्रु का हृदय डर के मारे कापने लगता है।

नगर कोटि में तुम्हीं विराजत। तिहुंलोक में डंका बाजत॥
अर्थार्थ: नगर कोट में आप विध्यमान है। तीनो लोको में आपका ही नाम है।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे॥
तात्पर्य: आपने शुम्भ निशुम्भ जैसे राक्षशों का संहार किया था और असंख्य रक्तबीजो का वध किया।

महिषासुर नृप अति अभिमानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
महिषासुर राजा बहुत गर्वी था। जिसके विभिन्न पाप करके धरा को भर रखा था।

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
अर्थ: आपने काली माँ का स्वरुप लेकर उसका उसकी सेना सहित वध कर दिया।

परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब। भई सहाय मातु तुम तब तब॥
जब भी किसी संत पर कोई विपत्ति आयी है तब माँ आपने उनकी सहायता की है।

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहें अशोका॥
अर्थार्थ: अमरपुरी और सब लोक आपके कारन ही शोक से बहुत दूर है।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
जवालामुखी में आपकी जवाला हमेशा रहती है। और आपको हमेशा ही नर – नारी द्वारा पूजा जाता है।

प्रेम भक्ति से जो यश गावै। दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
अर्थार्थ: आपकी यश गाथा का जो भी भक्ति से गायन करता है उसके समीप कभी दुःख या दरिद्र नहीं आता।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई। जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
अर्थ:  जिसने भी एकचित होकर आपका स्मरण किया है वो जनम मरण के बंधन से मुक्त हुआ है।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
जोगी सुर नर और मुनि यही पुकार करते है की बिना आपकी शक्तियों के योग संभव नहीं है।

शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
शंकराचार्य ने कठोर तप कर काम और क्रोध पर विजय पायी।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
प्रतिदिन वह शंकर का ध्यान करते पर आपका स्मरण उन्होंने नहीं किया।

शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो॥
वह शक्ति स्वरुप की महिमा नहीं समझ पाए और जब उनकी शक्ति चली गई तब उन्हें समझ आया।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
तात्पर्य: तब आपकी शरण में आ गए और आपकी कीर्ति का गान किया। हे भवानी माँ, आपकी सदैव जय हो।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
जगदम्बा माँ प्रसन्न हुई और बिना विलम्ब किए आपने उन्हें शक्ति दे दी।

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
अर्थार्थ: हे माँ! मैं कष्टों से घिरा हुआ हूँ। आपके सिवा मेरे दुःख का विनाश कौन करे?

आशा तृष्णा निपट सतावे। मोह मदादिक सब विनशावै॥
तृष्णा और आशा मुझे सताते रहते है। मोह और गर्व ने मेरा नाश किया हुआ है।

शत्रु नाश कीजै महारानी। सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
है महारानी माँ! आप मेरे शत्रुओ का नाश कीजिये। मैं एकाग्रित होकर आपका सुमिरन करता हूँ ।

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला॥
हे दयालु माता आप आपकी कृपा करो। रिध्धि सिद्धि देकर मुझे निहाल कीजिए।

जब लगि जियउं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
अर्थार्थ: जब तक में जीवित रहु आपकी दया मुझ पर बानी रहे। और आपकी यश गाथा हमेशा गाता रहूँगा।

दुर्गा चालीसा जो नित गावै। सब सुख भोग परमपद पावै॥
तात्पर्य: जो दुर्गा चालीसा का हमेशा गायन करते है। सभी सुख को प्राप्त करते है।

देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
सब जान लेने पर देवीदास ने आपकी शरण में आया है। है जगदम्बा भवानी कृपा करो।

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥
अर्थ: यहाँ दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण हुई।

 

Jasvinder Kaur Reen

Recent Posts

चेहरे पर होने वाले छोटे-छोटे पिंपल्स को ठीक करने के घरेलू उपाय

खूबसूरत और चमकता चेहरा पाने की ख्वाहिश तो हर किसी की होती है लेकिन चेहरे…

2 वर्ष ago

मेथी से बनी हुई नाइट एंटी-एजिंग क्रीम – क्रीम एक, फायदे अनेक

मेथी एक ऐसी चीज़ है जो दिखने में छोटी होती है पर इसके हज़ारों फायदे…

2 वर्ष ago

कुणाल कपूर के अंदाज में बनी लजीज रेसिपी नवरत्न पुलाव रेसिपी

यूं तो नवरत्न अकबर के दरबार में मौजूद उन लोगों का समूह था, जो अकबर…

2 वर्ष ago

सर्दियों के लिए ख़ास चुने हुए डार्क कलर सूट के लेटेस्ट डिज़ाइन

वैसे तो गहरे और चटकदार रंग के कपडे किसी भी मौसम में बढ़िया ही लगते…

2 वर्ष ago

सर्दियों में डैंड्रफ की समस्या से बचने के असरदार टिप्स

डैंड्रफ एक ऐसी समस्या है जो आपके बालों को तो कमज़ोर बनाती ही है, साथ…

2 वर्ष ago

इंस्टेंट ग्लो के लिए टॉप 3 होममेड चावल फेस पैक

हमारी त्वचा बहुत ही नाजुक होती है। यदि इसकी सही तरह से देखभाल नहीं की…

2 वर्ष ago