हिंदुओं का पवित्र व प्रसिद्ध त्योहार दिवाली जिसे दीपावली नाम से भी जाना जाता है, कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला त्योहार है। कहते हैं कि प्रकृति भी इस त्योहार के साथ ही शरद ऋतु के आगमन की सूचना देती है। अंधेरे पर प्रकाश की, अज्ञानता पर ज्ञान की और बुराई पर अच्छाई की जीत के महोत्सव के रूप में इस त्योहार को मनाया जाता है। अधिकतर स्थानों पर दीपावली का त्योहार धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक के पाँच दिनों के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

दीवाली का शुभारंभ व महत्व:

सामान्य रूप से दीपावली को रामायण काल से मनाने की प्रथा का वर्णन मिलता है। लेकिन पुराणों में क्षीर सागर के मंथन के बाद भी दीपावली मनाए जाने के प्रमाण मिलते हैं। कहते हैं कि सागर मंथन में जब कमल पर विराजमान श्रीलक्ष्मी बाहर आयीं, तब यह मानवता के कल्याण के लिए सबसे बड़ा वरदान माना जाता है। इसी वरदान का महोत्सव दीप जलाकर प्रति वर्ष उसी तिथि अथार्थ कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता जब श्रीलक्ष्मी जी का जगत में अवतरण हुआ था।

इसके साथ ही प्रचलित कथा के अनुसार अयोध्या के राजकुमार श्रीराम जब अपने छोटे भाई लक्ष्मण और पत्नी देवी सीता के साथ रावण का वध करके 14 वर्ष के वनवास पूरा करने के बाद अयोध्या लौटे थे। तब उनके लौटने की तिथि पर अयोध्या जनपद, जिसमें लगभग सम्पूर्ण उत्तरी भारत शामिल था, ने उनका स्वागत घी के दीप जलाकर किया था। इसी उपलक्ष्य में तब से कार्तिक मास की अंधियारी अमावस्या को दीपों की रोशनी से प्रकाशमान कर दिया जाता है।

देव पूजन:

दीपावली के पर्व पर पाँच दिन तक विभिन्न देवी-देवताओं की पूजन की विधि चली आ रही है। इस पर्व का शुभारंभ धनतेरस से होकर भाई दोज पर समापन होता है। इन दिनों में लक्ष्मी, गणेश, कुबेर, के अलावा यमदेव, देवी सरस्वती, धन्वन्तरी और भगवान कृष्ण की भी पूजा की जाती है।

धनतेरस:

दीवाली से दो दिन पहले धनतेरस या धन्वन्तरी त्रयोदशी का पूजन होता है। कहते हैं इस तिथि को सागर मंथन के समय वैद्य धन्वन्तरी अपने ज्ञान के साथ पृथ्वी लोक पर आए थे। इस दिन प्रत्येक घर में सम्पूर्ण वर्ष धन और समृद्धि बनी रहे, इसके लिए श्रीलक्ष्मी जी और धन्वन्तरी जी की पूजा की जाती है। इस दिन घर में  किसी भी धातु जैसे सोने, चांदी या पीतल से बनी वस्तु लाने की भी प्रथा चली आ रही है।

नरक चौदस:

इसे रूप चौदस व छोटी दीवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग सुबह भोर होने से पहले स्नान करके यम देव से मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं। कहते हैं कि इस दिन भगवान राम के आने की सूचना अयोध्या पहुँच गई थी । तब श्री राम के स्वागत की तैयारियां आरंभ करते हुए लोगों ने अपने उल्लास को दीप जलाकर प्रकट किया था।

दिवाली:

इस दिन को बड़ी दीवाली या लक्ष्मी पूजन दिवस भी कहा जाता है। इस दिन शुभ लगन और मुहूर्त में लोग लक्ष्मी-गणेश की पूजा करके हमेशा घर-द्वार को धन-संपत्ति से भरा पूरा करने की कामना करते हैं। पूजन में देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है। पंडितों के अनुसार वृषभ लगन स्थिर होता है इसलिए लक्ष्मी कृपा को स्थायी बनाने के लिए इसी मुहूर्त में पूजा करने का विधान है।

गोवर्धन पूजा:

दीवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा के लिए नियत किया गया है। इस दिन को अन्नकूट दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। भागवत पुराण के अनुसार एक बार देवों के राजा इन्द्र का क्रोध बहुत बारिश के रूप में पृथ्वी वासियों को झेलना पड़ा था। उस समय श्रीकृष्ण ने सभी लोगों को गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण देकर उन्हें जल प्रलय से बचाया था। इस दिन बहुत से लोग सारे दिन का वृत शाम को अन्नकूट के प्रसाद से खोलते हैं। अन्नकूट दरअसल विभिन्न प्रकार के अनाजों को मिलाकर बनाया हुआ भोज होता है।

भाई दूज:

पाँच दिन का दीपावली पर्व भाई दोज की पूजा के साथ समाप्त हो जाता है। इस दिन सभी बहनें अपने भाइयों के माथे पर मंगल तिलक करके उनकी मंगल कामना करती हैं। पुराणों में इस दिन को यम-द्वितीया भी कहा जाता है। प्रचलित कथा के अनुसार इस दिन यम देव अपनी बहन यमी से मिलने आए थे और बहन ने उनका स्वागत फूल और हार से किया था।

दीवाली कैसे मनाते हैं?

दीवाली के पाँच दिन के पर्व से पहले लोग अपने घर और कार्य स्थल को साफ-सफाई करके अच्छे से चमका लेते हैं। दीवाली की शुरुआत में ही लोग अपना घर और ऑफिस रंग-बिरंगी लाइटों और बंदनवार के साथ रंगोली से सजा लेते हैं। शाम को मुहूर्त होने पर लक्ष्मी पूजन करते हुए आपस में सभी एक दूसरे को मिठाई देकर दीवाली की शुभकामनाएँ देते हैं। इस पर्व के अंत में भाई दोज वाले दिन भाई और बहन मिलकर पूजा करते हैं जिसमें बहनें अपने भाइयों की मंगल कामना करती हैं और भाई उनकी रक्षा करने का वचन देते हुए उन्हें उपहार देते हैं।

वैसे कहते हैं कि कार्तिक मास की अमावस्या ही वह तिथि है जब श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इसके साथ ही जैन गुरु श्री महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी इसी तिथि को माना जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि कारण चाहे कुछ भी हो अपनी खुशी को दूसरों के साथ मिल बांटकर मनाना ही दीपावली होता है।

Charu Dev

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