अपने देश में स्त्रियों के माथे पर बिंदी और पुरुषों के ललाट पर तिलक लगाने की परंपरा एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत है। किसी धार्मिक अथवा अन्य समारोह में आगंतुकों का स्वागत सत्कार तिलक लगाकर करने की परंपरा है। विवाह अथवा किसी शुभ कार्य में स्त्रियां एक दूसरे का स्वागत हल्दी कुमकुम लगाकर करती हैं।
तिलक ईश उपासना एवं भक्ति का भी एक महत्वपूर्ण अंग है। अपनी भारतीय सनातन संस्कृति में पूजा आराधना, संस्कार विधि, मांगलिक आयोजनों, यात्रा गमन आदि का श्रीगणेश करते वक्त माथे पर तिलक लगाकर उसे अक्षत से विभूषित करने का विधान है।
भारतीय परंपरा के अनुसार अमूमन कुमकुम, हल्दी, विभूति, मिट्टी एवं चंदन का तिलक लगाया जाता है।
हमारे प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में ललाट पर पुरुषों द्वारा तिलक एवं महिलाओं द्वारा बिंदी लगाने के अनेक लाभों का उल्लेख किया गया है। तिलक और बिंदी लगाने के वैज्ञानिक फायदों पर वैज्ञानिक अध्ययन भी किए गए हैं। इन अध्ययनों में तिलक अथवा बिंदी से प्राप्त फायदों को रेखांकित किया गया है। आज हम अपनी पाठिकाओं को ललाट पर तिलक अथवा बिंदी लगाने से मिलने वाले फायदों के विषय में बताने जा रहे हैं।
तिलक मुख्यतया चंदन पाउडर से किया जाता है, जबकि बिंदी कुमकुम से लगाई जाती है। कुमकुम एक लाल रंग का पाउडर होता है, जो हल्दी एवं बुझे हुए चूने को मिलाकर बनाया जाता है। लाल रंग शरीर में पॉजिटिव ऊर्जा का संचार करता है। अतः कुमकुम अथवा बिंदी लाल रंग की होती हैं।
हमारी भारतीय परंपरा के अनुसार हमारे शरीर में 7 ऊर्जा के केंद्र होते हैं जिन्हें चक्र भी कहा जाता है। इन सात ऊर्जा के केंद्रों में से छठी ऊर्जा के चक्र को आज्ञा चक्र भी कहा जाता है। यह आज्ञा चक्र दोनों भौहों के मध्य बिंदु पर स्थित होता है। आज्ञा चक्र ही हमारा तृतीय नेत्र कहलाता है।
इस आज्ञा चक्र में हमारी नर्व्स का जाल बिछा होता है, और यह जाल पिट्यूटरी ग्रंथि एवं हाइपोथैलेमस से जुड़ा होता है। हाइपोथैलेमस हमारे मस्तिष्क का एक अंग होता है जो शरीर का आंतरिक संतुलन बनाए रखता है।
पिट्यूटरी ग्रंथि को हमारे शरीर की मुख्य ग्रंथि कहा जाता है क्योंकि यह हमारे शरीर की सभी अन्य हारमोंस का स्त्राव करने वाली ग्रंथियों को नियंत्रित करती है।
जब भी हमारी भौंहों के मध्य बिंदु यानी आज्ञा चक्र पर दबाव डाला जाता है, तब पिट्यूटरी ग्रंथि उद्दीप्त हो जाती है, और उसके परिणाम स्वरूप शरीर में हार्मोन का स्त्राव संतुलित ढंग से होता है, और शरीर की सभी गतिविधियां सुचारू रूप से होती हैं।
एक्यूप्रेशर के सिद्धांतों के अनुरूप आज्ञा चक्र का यह बिन्दु रोजाना कुछ सेकंड के लिए दबाने से हमें बहुत से स्वास्थ्य संबंधित फायदे मिल सकते हैं।
माथे पर तिलक अथवा बिंदी लगाते वक्त हम इसी आज्ञा चक्र के बिंदु पर दबाव डालते हैं जिससे हमें निम्न फायदे प्राप्त होते हैं।
आज्ञा चक्र पर कुछ सेकंड के लिए दबाव डालने से सिर दर्द में फौरन राहत मिलती है क्योंकि अनेक मुख्य नर्व्स और रक्त वाहिकाएं इस बिंदु पर आकर मिलती हैं।
हमारा पूरा चेहरा ट्रिगिमीनल नर्व की शाखा प्रशाखाओं के जाल से ढका होता है। इस नर्व को उद्दीप्त करने से हमारी त्वचा जवान दिखती है और चेहरे की मांसपेशियां मजबूत बनती है।
आज्ञा चक्र से गुजरने वाली एक नर्व हमारे भीतरी कान के एक हिस्से को उद्दीप्त करती है जिससे हमारी श्रवण शक्ति में इजाफ़ा होता है।
आज्ञा चक्र पर तिलक या बिंदी लगाने से हमारे तृतीय नेत्र का कैल्सीफ़िकेशन से बचाव होता है, जिससे यह प्रक्रिया उसे अबाधित रूप से खुला रखने में मदद करती है।
तिलक या बिंदी लगाते वक्त आज्ञा चक्र के बिंदु को उद्दीप्त करने की प्रक्रिया हमारे चेहरे और शरीर को इतना रिलैक्स करती है कि यह अनिद्रा की शिकायत दूर कर देती है, और सुकून भरी नींद लाने में मदद करती है। साथ ही यह शरीर में स्लीप हार्मोन एवं ख़ुशी का एहसास भरने वाले हार्मोन के स्राव में सहायता करती है, जिससे हम शांत, खुश और तनाव मुक्त हो जाते हैं।
तिलक या बिंदी लगाने से हमारे आज्ञा चक्र का बिंदु उद्दीप्त होता है, और परिणामस्वरुप हम रिलैक्स हो जाते हैं। हमें तनाव और थकान से राहत मिलती है।
आज्ञा चक्र को उद्दीप्त करने से स्मरण शक्ति एवं एकाग्रता में वृद्धि होती है।
आज्ञा चक्र को उद्दीप्त करने से सहज बोध, रचनात्मकता, अध्यात्म बोध, बौद्धिकता एवं बुद्धिमत्ता में बढ़ोतरी होती है।
आज्ञा चक्र के बिंदु को रोज स्पर्श करने एवं उसे उद्दीप्त करने से यह पिट्यूटरी ग्रंथि की क्षमता बढ़ाता है। परिणाम स्वरूप शरीर के आंतरिक संतुलन को मजबूती मिलती है ।
आज्ञा चक्र को उद्दीप्त करने से बाहरी नेगेटिविटी से बचाव होता है।
आज्ञा चक्र से गुजरने वाली ट्रिगिमीनल नर्व अवसाद, एपिलेप्सी जैसी समस्याओं के उपचार की प्रमुख नर्व है। अतः आज्ञा चक्र के बिंदु को उद्दीप्त करने से इन समस्याओं से निजात मिलती है ।
नेत्र स्वास्थ्य एवं दृष्टि के लिए जिम्मेदार सुप्राट्रॉक्लियर नर्व इस बिंदु पर स्थित है, जिसे उद्दीप्त करने से नेत्र स्वास्थ्य एवं दृष्टि में सुधार आता है।
आज्ञा चक्र पर स्थित ट्रिगिमीनल नर्व को उद्दीप्त करने से साइनस की समस्या से उत्पन्न सूजन एवं अवरोध में कमी आती है।
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