भारतीय सभ्यता में भगवान शिव को त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) का एक अहम हिस्सा माना जाता है। मानवजाति और प्रकृति के संहारक और पालक के रूप में भगवान शिव को पूरे भारत में अनेक रूपों में पूजा और माना जाता है। न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में शंकर भगवान को प्रसन्न करने के लिए अनेक व्रत और पूजा का आयोजन किया जाता है। ऐसा ही एक पर्व है जिसके करने से यह माना जाता है कि इसके करने से पिछले जन्म के पाप धुल जाते हैं और आगे आने वाला जीवन खुशियों से भरपूर हो जाता है। इस व्रत का नाम है चम्पा षष्ठी व्रत।
भारत के महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में मार्गशीर्ष (दिसंबर) के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर मनाए जाना वाला पर्व चम्पा षष्ठी कहलाता है। इन राज्यों में भगवान शिव को खंडोबा के नाम से भी पुकारा जाता है जिन्हें किसानों के देवता के रूप में पूजा जाता है। दक्षिणी भारत में इसे चम्पा षष्ठी व्रत कहा जाता है। दरअसल भगवान कार्तिकेय जो भगवान शिव के पुत्र हैं, इस तिथि पर देवताओं के सेनापति बने थे। उन्हें चम्पा फूल पसंद है इसलिए इस व्रत को चम्पा षष्ठी व्रत भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि मणि और मल्ला नाम के दो राक्षस थे जिन्होनें तीनों लोकों में अपना आतंक फैलाया हुआ था। इन्हें हराने के लिए देवताओं ने भगवान शिव से गुहार लगाई और तब भगवान शिव ने खंडोबा का अवतार लिया। इस रूप में भगवान शिव की चमक सोने जैसी सुनहली थी और उनका चेहरा हल्दी से पूरी तरह ढका हुआ था। इस रूप में भगवान शिव ने इन दोनों राक्षसों से युद्ध किया और छह दिनों के भयंकर युद्ध के बाद एक भाई के मारे जाने के बाद दूसरे भाई मणि ने भगवान शिव के सम्मुख आत्मसमर्पण कर दिया। उसने भगवान शिव को उपहरस्वरूप अपना सफेद घोड़ा दे दिया और भगवान ने उसे वरदान के रूप में उन्हें अपने साथ रहने की उसकी इच्छा को मान लिया। उस दिन से मणि की मूर्ति को भी खंडोबा मंदिरों में रखा जाने लगा और चम्पा षष्ठी का प्रव मनाया जाने लगा।
इस पर्व की पूजा करने के लिए भगवान शिव के पूरे परिवार अथार्थ, माता पार्वती और उनके दोनों पुत्र, गणेश अव कार्तिकेय व वाहन नंदी की पूजा की जानी चाहिए। कुछ लोग इस दिन शिवलिंग पर बाजरा और बैगन भी चढ़ाते हैं। इसी वजह से इसे बैंगन षष्ठी भी कहते हैं। शिव चालीसा का पाठ करते हुए मंदिर में कार्तिकेय जी को नीले वस्त्र अर्पित किए जाते हैं। पूजा के बाद शिवलिंग पर अर्पित बाजरे और बैंगन को बीमार और ज़रूरतमंद लोगों में बाँट देना चाहिए। इस दिन पूजा के बाद न तो तेल का सेवन करना चाहिए और न ही रात्रि पर पलंग पर सोना चाहिए।
इस व्रत को करने वालों के मान-सम्मान में वृद्धि के साथ शत्रुओं से भी रक्षा होती है। जिंदगी में सारे रुके हुए और बिगड़े काम बन जाते हैं और जिदंगी खुशहाल हो जाती है।
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