ग्रहण एक ऐसी खगोलीय घटना है जो आम जन को तो रोमांचित करती ही है, साथ ही बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को भी उत्साह से भर देती है क्योंकि ग्रहण का दौर उनके लिए कई अनसुलझे रहस्यों को समझने का समय होता है। तो आइये, हम भी जान लें ग्रहण के पीछे का विज्ञान और बढ़ा लें अपना सामान्य ज्ञान।
चंद्रमा पृथ्वी के चक्कर काटता है और पृथ्वी सूर्य के चक्कर काटती है। इस क्रम में जब पृथ्वी चक्कर काटती हुई सूर्य और चद्रमा के बीच में आ जाती है, तो सूर्य की रोशनी बाधित हो जाने के कारण चंद्रमा तक नहीं पहुँच पाती है। इससे चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ने लगती है और चंद्रमा लगभग विलुप्त सा हो जाता है। अंतिरक्ष की इस घटना को चन्द्र ग्रहण कहते हैं।
पृथ्वी एवं चाँद की बनावट के अनुसार चंद्र ग्रहण के दौरान पृथ्वी की दो प्रकार की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। एक पृथ्वी के बीच का सबसे घना काला हिस्सा, जिसे अम्बरा कहते हैं, और दूसरा पृथ्वी की बाहरी छाया जिसे पेनम्बरा कहते हैं। चंद्रमा अपनी गति के अनुसार दो चरणों में पृथ्वी की इन दो छाया में से होकर गुजरता है। चन्द्र ग्रहण पूर्ण या आंशिक होता है।
➡ चाँद धरती से कितना दूर है और वहां पहुँचने में कितना समय लगता है?
• जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सरल रेखा में स्थित हो जाते हैं, तो ऐसी स्थिति में पूर्ण चन्द्र ग्रहण होता है।
• जब सूर्य, चाँद और पृथ्वी के एक सीध में होने पर भी आंशिक ऊँच-नीच होती है, तो ऐसी दशा में आंशिक चन्द्र ग्रहण के लगने की संभावना होती है।
• अन्तरिक्ष की घटनाओं के आधार पर एक वर्ष में अधिकतम तीन बार चंद्रमा, पृथ्वी की छाया से होकर गुजरता है। ऐसी स्थिति में ही चन्द्र ग्रहण लगता है।
• पूर्ण चन्द्र ग्रहण की स्थिति केवल पूर्णिमा की रात में हो सकती है। किन्तु चंद्रमा और पृथ्वी की कक्षा की संरचना के आधार पर हर पूर्णिमा की रात को चन्द्र ग्रहण लगना मुमकिन नहीं होता है।
• चूँकि पृथ्वी आकार में पूरी तरह से गोल नहीं है, इस कारण पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा की तुलना में आंशिक अंडाकार है। इस कारण चन्द्र ग्रहण के लिए आवश्यक सूर्य, पृथ्वी और चाँद का एक सीध में सरल रेखा में होना हर पूर्णिमा की रात को संभव नहीं हो पाता है। यही कारण है कि चन्द्र ग्रहण कभी-कभी ही लगता है।
• चन्द्र ग्रहण की अवधि ग्रहण के प्रकार (आंशिक या पूर्ण) एवं चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है। सामान्यतः चन्द्र ग्रहण कुछ घंटों के लिए ही लगता है।
सदियों पूर्व तक जब मानव सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण की घटित होने के विज्ञान से अनजान था, तब चन्द्र या सूर्य ग्रहण लगने पर भयभीत हो जाता था। इसे दैवीय प्रकोप की संज्ञा दी जाती थी।
आज भी हमारे देश के कई भागों में ग्रहण लगने पर पाप काटने के लिए दान आदि करने की मान्यता है। हमारी दादी-नानी के जमाने में तो ग्रहण लगने पर रात भर पूजा करने का चलन प्रचलित था। किन्तु विज्ञान की प्रगति के साथ आज हमें ज्ञात हो चुका है कि चन्द्र या सूर्य ग्रहण का लगना पृथ्वी और चन्द्रमा की गति के कारण होता है।
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