धर्म और संस्कृति

गाय का पूरा शरीर देव भूमि है जहाँ 33 कोटी देवी-देवता निवास करते हैं।

भारत देश हमेशा से कृषि प्रधान देश रहा है और इसी कारण वो सभी साधन जिसमें गाय भी प्रमुख है, कृषि कार्य में सहायक रहे, पूजनीय माने गए।  वैदिक समय से गाय को अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना गया था। गाय के आर्थिक, चिकित्सकीय और वैज्ञानिक लाभ देखते हुए , यह बहुत जरूरी था की इस निरीह पशु का सरंक्षण और संवर्धन किया जाए।  साधारण मानव के मनोमस्तिष्क में इस बात को सरलता से समझाने के लिए गाय के महत्व को धर्म के साथ संबन्धित कर दिया गया। धार्मिक दृष्टि से गाय को  सर्वोच्च स्थान दिया गया। यह माना जाता है की गाय का शरीर देवभूमि है जहां 33 कोटी देवी देवता का निवास है। आइये देखें क्या वास्तव में गाय का शरीर देवभूमि है –

 

देवस्थान या मात्र एक शरीर 

 

पूरे विश्व में केवल हिन्दू धर्म ही एक धर्म है जिसमें मानव को ही नहीं बल्कि पशु को भी मान-सम्मान दिया जाता है। इसी कारण गाय को एक साधारण पशु न मानते हुए माता का स्थान दिया जाता है। यहाँ 33 कोटी से तात्पर्य 33 प्रकार के देवी-देवता से है जो हिन्दू धर्म के आधार-स्तम्भ माने जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार गाय के पृष्ठ भाग में ब्रह्मा जी का, गर्दन में विष्णु जी का और मुख वाले भाग में महादेव का वास है। शेष सभी देव-देवता का निवास स्थान गाय के शरीर का मध्य भाग है। गाय के हर रोम में महर्षि का निवास है तो पूँछ में अनंत नाग का घर है। ब्रह्मांड के पर्वत गाय के खुरों में हैं तो गोमूत्र में गंगा और शेष नदियाँ , गोबर में लक्ष्मी जी का वास है । सूरज और चाँद दोनों नेत्र हैं। इस प्रकार गाय का शरीर सकल जगत का प्रतिरूप है।

 

वैज्ञानिक सच क्या है 

• कहते हैं की देसी गाय की गर्दन का उभरा हुआ भाग शिव लिंग है । जबकि वास्तविकता यह है की इसमें सूर्यकेतू नाम की नाड़ी होती है जो सूर्य की ऊष्मा को अपनी ओर आकर्षित करती है इससे गाय की दूध में शक्ति आती है।

• श्याम वर्ण की गाय का दूध वात संबंधी रोगों के निवारण में सहायक होता है। पीले रंग की गाय का दूध पित्त और वात रोग को दूर करने वाला माना गया है।

• गाय के गोबर से खाद और विटामिन बी 12 की प्रचुर मात्रा मिलती है। इसी गोबर के कंडे जलाने से किटाणु और मच्छर आदि का नाश होता है।

• गोमूत्र से लीवर और मधुमेह संबंधी बीमारियाँ बहुत आसानी से दूर होती हैं।

• गाय के रंभाने से वातावरण शुद्ध होता है। इसलिए इसे पर्यावरण की संरक्षिका भी कहा गया है। वैज्ञानिक इस बात पर भी सहमत हैं की गाय ही एक ऐसा प्राणी है जो न केवल ऑक्सीजन ग्रहण करती है बल्कि छोड़ती भी है।

 

• गाय के दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर से तैयार पंचगव्य अनेक रोगों के इलाज में लाभदायक होता है। इसके उपयोग से शरीर की रोग निरोधक क्षमता में विकास किया जा सकता है। इसके प्रयोग से कैंसर के इलाज के पेटेंट तो भारत ने यूएस से प्राप्त भी कर लिए हैं।

सबसे पहले गौपालक श्रीकृष्ण जी का एक नाम गोविंद भी उनके गौ प्रेम के कारण प्रसिद्ध हुआ था। शायद इसीलिए गाय की सेवा सभी देवताओं की सेवा के बराबर है।

 

 

Charu Dev

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