हिन्दू धर्म में चैत्र शुक्ल तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला गणगौर (गौरी तृतीया) का पर्व अत्यधिक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। राजस्थान, बंगाल और असम के मरवारी समाज की महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला यह पर्व, जानिए इसके पूजा की सम्पूर्ण विधि।
होली (चैत्र कृष्ण प्रतिपदा) के एक दिन पश्चात् से प्रत्येक कुंवारी लड़कियां व विवाहित महिलाएं गणगौर की पूजा करती है और गणगौर को पानी पिलाती है। ऐसी मान्यता है कि गणगौर के दिन माता पार्वती द्वारा सुहागिनों को उनका सुहाग अखंड रहने का वरदान दिया जाता है।
चैत्र कृष्ण पक्ष एकादशी के दिन लड़कियां व महिलाएं प्रातः स्नानादि से निवृत हो गीले वस्त्रों से घर में किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की टोकरी में ज्वार बोती हैं। ज्वार को माता पार्वती और भगवान शिव का रूप माना जाता है।
इस दिन से विसर्जन तक रोजाना व्रत करने वाली महिला को केवल एक समय भोजन कर स्वच्छ मन से गणगौर का पूजन करना चाहिए। आठ दिन तक जब तक माता पार्वती का विसर्जन नहीं होता है तब तक प्रतिदिन सुबह-शाम उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर उन्हें भोग लगाना चाहिए।
माता पार्वती की स्थापना करते समय सुहाग की सामग्री जैसे – कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेहंदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि को पूजा में रखा जाता है। पूजन विधि आरम्भ करने से पूर्व पूरी सुहाग की सामग्री को चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्य आदि के साथ माता पार्वती को अर्पण किया जाता है। इसके पश्चात माता पार्वती को भोग लगाया जाता है।
इसके उपरांत स्त्रियां गौरी पूजन की कथा कहती हैं। कथा सुनने के बाद माता पार्वती पर चढ़ाए हुए सिंदूर से विवाहित स्त्रियां अपनी मांग भरती हैं।
पूजन के पश्चात कुंवारी कन्याओं और नव विवाहित महिलाओं को माता पार्वती को प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। इस समय उन्हें मनचाहा वरदान मांगना चाहिए। इस तरह रोजाना विधिवत पूजा संपन्न करें।
इसके पश्चात चैत्र शुक्ल द्वितीया (सिंजारे) को माता पार्वती को किसी नदी, तालाब या सरोवर पर ले जाकर स्नान कराकर पूजन करें। इसी प्रकार अगले दिन चैत्र शुक्ल तृतीया को भी माता पार्वती और भगवान शिव को स्नान कराकर सुंदर वस्त्रा व आभूषण पहनाकर डोल या पालने में बिठाएं।
चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन शाम को नृत्य गान करते हुए गाजे-बाजों सहित सभी महिलाएं और पुरुष समारोह या शोभायात्रा निकालें और माता पार्वती और भगवान शिव को नदी, तालाब या सरोवर में विसर्जित कर पूजा संपन्न करें।
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