बुद्ध जिसका अर्थ है वो “जो जाग रहा है” इस अर्थ में कि जो “वास्तविकता के लिए जगा” हो, यह पहला शीर्षक भगवान बुद्ध को दिया गया था लगभग 2500 साल पहले जब राजकुमार सिद्धार्थ गौतम ने जीवन की वास्तविकता प्राप्त करने के लिए सभी सांसारिक सुखों को छोड़ दिया और बुद्ध बन गये।घर त्यागने के केाकाफी समय पश्चात सिद्धार्थ बोध गया पहुंचे और बहुत थक के वही एक पीपल के वृक्ष के नीचे आँखें मूँद के बैठ गया। यह तब था जब उन्होंने महसूस किया कि एक दिव्य प्रकाश उनके भीतर आ रहा है यह उनके खोज में महत्वपूर्ण मोड़ था क्योंकि उन्हें पता चला कि सच में हर इंसान के भीतर और बाहर की खोज आधारहीन है। वह बुद्ध या प्रबुद्ध एक के रूप में जाने जाने लगे। जब उन्होंने सिखाया, तो उन्होंने ईश्वर बनने का ढोंग नहीं किया। उन्होंने कहा कि वह सिर्फ एक व्यक्ति थे, जिसने जीवन (ज्ञान) का अर्थ पाया था, और किसी भी व्यक्ति को जीवन का अर्थ भी मिल सकता है।
बौद्ध धर्म में मध्यम मार्ग पर जोर दिया गया है| भगवान बुद्ध के मांसाहारी या शाकाहारी होने के विषय में इतिहासकार और बुद्धिजीवी एकमत नहीं हैं| जैन धर्म की तरह बौद्ध धर्म भी अहिंसा का समर्थक है और बौद्ध धर्म में भी मांसाहार नहीं करने की सलाह दी जाती है| बौद्ध धर्म के अनुनायियों को मांस खाने के लिए एवं जीव हत्या करने से मना किया गया है| कई बौद्ध ग्रंथों से भी ये बात पता चलती है कि भगवान बुद्ध और अन्य भिक्षु मुख्य रूप से शाकाहारी थे लेकिन परिस्थितिवश मांस या मछली का सेवन कर लेते थे|
भगवान बुद्ध की मृत्यु को महापरिनिर्वाण कहा गया है| यह घटना 483 ई. पू. हुई थी| बौद्ध धर्म से संबंधित साहित्य के अनुसार 80 वर्ष की आयु में भगवान बुद्ध ने स्वयं ये घोषणा कर दी थी कि उनका अंतिम समय आ चुका है और बहुत जल्द ही वो महापरिनिर्वाण की अवस्था को प्राप्त कर लेंगे|
पाली भाषा में लिखे हुए ‘महा-परिनिर्वाण सूक्त’ नामक बौद्ध ग्रन्थ में बुद्ध की मृत्यु के विषय में विस्तार से बताया गया है| इस ग्रन्थ में उल्लेखित है कि जिस वर्ष बुद्ध की मृत्यु हुई, उस वर्ष बारिश के मौसम से पहले वह राजगृह में रहे| वहां से वो अपने भिक्षु संघ के साथ वैशाली आ गए और बारिश के मौसम में बेलग्राम में रहे| यहां वो बीमार पड़ गए| स्वस्थ होने पर कई नगरों की यात्राएं करते हुए वो पावा ग्राम पहुँच गए|
यहां उन्होंने कुंद लोहार का आतिथ्य स्वीकार किया और उसके आमों के वन में अन्य भिक्षुओं के साथ ठहरे| कुंद ने खाने के लिए बुद्ध को मीठे चावल, रोटी, और मद्दव दिया| बुद्ध ने चावल और रोटी तो अन्य भिक्षुओं को दिलवा दिया, लेकिन मद्दव खुद खाने के लिए रख लिया| ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि उन्हें लगा कि मद्दव उनके अलावा कोई और नहीं पचा पायेगा| उन्होंने थोडा सा ही मद्दव खाया और बचा हुआ मद्दव जमीन के अंदर गड़वा दिया| भोजन के तुरंत बाद वो गंभीर रूप से बीमार हो गए|
बुद्ध के बीमार पड़ जाने पर कुंद लोहार ये समझ बैठा कि उसके द्वारा दिए गए भोजन के कारण ही बुद्ध की ऐसी बुरी दशा हो गई है| इसलिए बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को कुंद लोहार को ये समझाने के लिए भेजा कि उसका कोई दोष नहीं है और उनकी बीमारी का कारण विषाक्त भोजन नहीं बल्कि वृधावस्था है| उन्होंने उसके द्वारा दिए गए भोजन को अतुल्य बताया| एक वैध्य ने भी ये प्रमाणित किया था कि बुद्ध की मृत्यु वृद्धावस्था के कारण हुई थी|
बौद्ध धर्म की थेरावदा परंपरा में ये माना जाता है कि कुंद लोहार द्वारा बुद्ध को जो मद्दव दिया गया था वो एक प्रकार का सुअर का मांस था| इसके विपरीत महायान परंपरा के अनुसार बुद्ध को कुंद द्वारा मशरूम खाने के लिए दिया गया था| मद्दव का एक अर्थ मशरूम भी होता है|
ऐसी ही बातों पर मतभेद होता आया है। पर ये तो स्वयं बुद्ध ही जानते रहे होंगे कि उन्होंने क्या ग्रहण किया। वो एक महान महापुरुष थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सत्य की खोज में बिता दिया।
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According to Panchsheel
Panati pata vrmani sikkha padam samadiyami he was pure vegetarian .
Doctor Saab, is vishay par Bauddh dharm ke vishesagyon mein kaafi matbhed hai. Kuchh visesagyaon ke anusaar Bhagvan buddh shakahari thhey lekin kai log is rai se ittefaak nahin rakhte.
So far it is not clear that budha was a non-vegetarian .... Plz... Try to clarify it.
"सुकरकंद" यानी मशरुम नाकी सुअर का मांस ! सुअर का मांस वीषेला नही होता है !
जबकी मशरुम की कई प्रजातीया वीषेली होती है.
सूकर मद्दव एक तरह का मशरूम होता है। और संस्कृत में सुअर को वराह बोलते है सूकर नही, मास को मन्स बोलते है मद्दव नही ।जबकि पाली भाषा मे मद्दव एक प्रकार की वनस्पति होती है जिसे कुकुमुत्ता या मशरूम भी बोलते है।
सोच समझकर लिखना चाहिए