हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध पुराण भागवत के अनुसार- सृष्टि के शुरुआत में मनु नामक राजा का राज्य था। उनके पौत्र का नाम नाभिराय था। उनके नाम पर हीं प्राचीनकाल में भारतवर्ष को अजानभवर्ष के नाम से जाना जाता था।
अजानभवर्ष के पुत्र ऋषभदेव थे जिन्हें वैदिक परम्परा के अनुसार ब्रम्हा, विष्णु और शिव का स्वरूप माना गया है। तथा जैन धर्म में उनको आदि तीर्थंकर के रूप में माना जाता है। इन्हीं ऋषभदेव के सौ पुत्रों में से एक भरत थे। जिन्होंने सर्वप्रथम छह खंड पृथ्वी को जीतकर प्रथम चक्रवर्ती राजा की उपाधि को धारण किया था और कुल के सबसे प्रतापी राजा के रूप में प्रसिद्ध हुए थे।
वैदिक, बौद्ध और जैन पुराणों एवं ग्रंथों में उल्लेखित वर्णन के अनुसार इसी प्रथम चक्रवर्ती राजा भरत के नाम पर हीं अजानभवर्ष अर्थात हमारे देश का नाम भारत पड़ा।
इसके अतिरिक्त 2000 वर्ष से भी अधिक पुरातन महाराज खारवेल के हाथी गुम्फाक शिलालेख जो भारतीय इतिहास के धरोहर के रूप में संरक्षित है में भी ऋषभदेव, उनके पुत्र भरत और भारतवर्ष के नाम का वर्णन उल्लेखित है।
भारत नाम के सम्बन्ध में ऋग्वेद में वर्णन मिलता है कि भारत एक सम्प्रदाय अथवा जाति का नाम है। जो अपने गर्त में कई पीढ़ियों/वंशजों को समाये हुए है। वेदों में मिले उल्लेख के अनुसार भारत सूर्य अर्थात सूर्यवंशी है और भारती उसकी शोभा है।
ईसा पूर्व 1150 में दशराज युद्ध आर्य और भारत जातियों के बीच हुआ था। जिसमें भारतों का नेतृत्व ऋषि विश्वामित्र द्वारा किया गया था और ऋग्वेद में वर्णन मिलता है कि महाभारत भारतीय परम्परा और संस्कृति का महागंरथ है।
अब महाभारत शब्द के कथन का उल्ल्लेख करते हुए महर्षि वेदव्यास जो कि महाभारत के रचयिता माने जाते हैं कहते हैं कि महाभारत में भारतवंशी क्षत्रियों का वर्णन किया गया है। इसके आगे 13 जातियों की वंश परम्परा का वर्णन करते हुए वेदव्यास लिखते हैं कि राजा मनु की दो पुत्र देवभ्राट और सुभ्राट थे। इनमें से सुभ्राट के तीन पुत्र थे दशज्योती, शातज्योति और सहस्त्रज्योती थे। ये तीनों हीं महाप्रतापी और विद्वान् थे।
सहस्त्रज्योति के दस लाख पुत्र एवं दशज्योति और शतज्योति के एक-एक लाख पुत्र थे। इनसे हीं भरत, ययाति, पुरु, यदु और इक्ष्वाकु वंश परम्परा का उदय हुआ। दुष्यंत और शकुन्तला का पुत्र दुष्यंत पुरु वंश की परम्परा को आगे बढाने वाला था।
इसके आगे वेदव्यास ऋग्वेद काल का भौगोलिक वर्णन करते हुए लिखते हैं कि उस समय प्रदेश कई वैदिक समूहों अथवा जातियों में विभाजित था। जिनमें गांधारी, अनुद्रुहा, पुरु, तुरवश और भारत आदि जिनमें भरत और पुरु दोनों हीं महत्वपूर्ण जातियां थीं।
वेदव्यास द्वारा ऋग्वेदकालीन वर्णन में प्रदेश की जन समूहों के नाम का उल्लेख करने में भरत और पुरु दो वैदिक समूह को वर्णित करने से प्रमाणित हो जाता है कि भारत जाति दुष्यंत के जन्म से पूर्व ऋग्वेद काल से मौजूद थी। अत: यह स्पष्ट हो जाता है कि ऋग्वेद काल के ऋषभदेव के पुत्र प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर हीं हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा।
खूबसूरत और चमकता चेहरा पाने की ख्वाहिश तो हर किसी की होती है लेकिन चेहरे…
मेथी एक ऐसी चीज़ है जो दिखने में छोटी होती है पर इसके हज़ारों फायदे…
यूं तो नवरत्न अकबर के दरबार में मौजूद उन लोगों का समूह था, जो अकबर…
वैसे तो गहरे और चटकदार रंग के कपडे किसी भी मौसम में बढ़िया ही लगते…
डैंड्रफ एक ऐसी समस्या है जो आपके बालों को तो कमज़ोर बनाती ही है, साथ…
हमारी त्वचा बहुत ही नाजुक होती है। यदि इसकी सही तरह से देखभाल नहीं की…