अमृतसर का स्वर्ण मंदिर सिखों का पवित्र धार्मिक स्थल है। यह सिखों का सबसे बड़ा गुरुद्वारा है। इसकी नींव सूफी संत हज़रत मियान मीर ने राखी थी। सिखों के पाँचवे गुरु श्री अर्जुन देव जी ने इस इस मंदिर में गुरुग्रंथ साहेब की स्थापना की थी।
मंदिर का निर्माण कार्य 1581 में शुरू होकर 1604 में ख़त्म हुआ था। इस गुरुद्वारे को श्री हरमिंदर साहेब या श्री दरबार साहेब के नाम से जाना जाता है। एतिहासिक साक्ष्य के अनुसार 19वीं शताब्दी में अफगानी हमलावरों द्वारा स्वर्ण मंदिर को नष्ट कर दिया गया था।
इसके बाद राजा रंजित सिंह ने गुरुद्वारा के पुनः निर्माण के दौरान सोने के पत्तर से नक्काशी करवाया था। तभी से इसे स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाने लगा।
धार्मिक महत्त्व
यह सिखों का सबसे बड़ा गुरुद्वारा है। देश -विदेश से लाखों पर्यटक गुरुद्वारा के दर्शन को आते रहते हैं। इस मंदिर की सीढ़ियाँ ऊपर से नीचे की और आती हैं। इसका कारण मंदिर की सतह नीचे की और होना है। यह मंदिर सरोवर के बीच में बना हुआ है। इस पवित्र सरोवर के बारे में मान्यता है कि स्नान करने से श्रदालुओं के रोग दूर हो जाते हैं।
जिसके कारण इसे अमृत सरोवर कहा जाता है। इस मंदिर का रसोईं घर सबसे बड़ा है। इसमें बने लंगर के प्रशाद से लगभग एक लाख श्रद्धालु प्रतिदिन तृप्त होते हैं। बैशाखी, मकरसंक्रांति आदि विशेष अवसरों पर लाखों के तादाद में श्रद्धालु अमृत सरोवर में डूबकी लगाकर धार्मिक लाभ प्राप्त करते हैं।
साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतिक
स्वर्ण मंदिर साम्प्रदायिक सौहार्द एवं एकता की मिशाल का परिचय देता है। इसकी नींव सूफी संत द्वारा राखी गयी थी। सिखों का यह सबसे बड़ा गुरुद्वरा है एवं गुरुद्वारा होने के बावजूद इसे स्वर्ण मंदिर कहते हैं। इस मंदिर में चार दरवाजे हैं।
जो हमारे समाज में चार वर्णों के आगमन के दरवाजे होने के प्रतिक को दर्शाते हैं।अर्थात सभी जातियों के लिए इस गुरुद्वारे के दरवाजे खुले हुए हैं।
एतिहासिक महत्त्व
● यह मंदिर अनेक एतिहासिक घटनाओं का साक्षी है। 19 वीं शताब्दी में अफगान हमलावरों द्वारा ध्वस्त किये जाने पर पुनः 1830 में रजा रंजित सिंह द्वारा पुनः निर्माण करवाया गया।
● 1984 में आतंकवादियों द्वारा मंदिर पर कब्ज़ा कर लिया गया। जिसके पश्चात प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा आपरेशन ब्लू स्टार चलाया गया। इस आपरेशन के दौरान मंदिर के कुछ भागों को नुक्सान पहुँचा।
● सिखों के सबसे बड़ा गुरुद्वारा होने के गौरवमयी इतिहास का प्रतिक है।
● सबसे बड़े रसोईं घर होने का गौरव प्राप्त है। जिसमें बने भोजन से प्रतिदिन लगभग एक लाख श्रधालुओं द्वारा लंगर का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
प्रातिक्रिया दे