हमारे वार-त्योहार हम हिन्दू कलेंडर के अनुसार मनाते हैं। यह कलेंडर चांद्र वर्ष पर आधारित है (lunar calendar)। लेकिन हमारे दैनिक उपयोग का जो कलेंडर है, वो सौर्य वर्ष पर आधारित होता है (solar calendar)। जैसा कि आप जानते हैं, यह कलेंडर लगभग ३६५ दिनों का होता है। जबकि चांद्र कलेंडर lagbhag 354 दिनों का होता है। यानि इन दोनों कलेंडर में करीब ११ दिनों का फर्क है। इसी ११ दिनों के अंतराल को ठीक करने के लिए अधिकमास का प्रयोग किया जाता है।
करीब तीन वर्षों में यह फर्क बढ़कर लगभग एक महीने का हो जाता है (११ x ३ = ३३)। इसलिए करीब तीन सालों में एक बार चांद्र कलेंडर में एक मास अधिक होता है। इसे ही हम अधिक मास कहते हैं। अधिक मास का ही एक और नाम है मल मास।
अधिक मास को मल मास क्यों कहते हैं?
मल, अर्थात गंदा या मलीन। इसलिए मलमास में कई तरह के शुभ कार्य जैसे गृह प्रवेश, शादी-विवाह की मनाही होती है।
इसे खरमास (खराब महिना) भी कहा जाता है।
क्या इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है?
स्वामिविहीन होने के कारण यह मास उपहास का कारण बन गया था। यहाँ तक कि इसको मलमास या खरमास का नाम दे दिया गया। दुखी हो, यह मास भगवान विष्णु की चरणों में उपस्थित हुया। तब से भगवान विष्णु से इस महीने को अपना नाम दिया और स्वयं इस मास के स्वामी बने। तभी से इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाने लगा।
इस मास में भगवान विष्णु की आराधना करने से आपको अत्यंत पुण्य मिलेगा। इस महीने जितना हो सके अपना समय हरीकीर्तन, जप, सत्संग व सतकथा श्रवण करने में व्यतीत करें।
प्रातिक्रिया दे